अनुज कुमार सिन्हा
भारतीय जनता पार्टी के झंडे का बड़ा हिस्सा आज भले ही केसरिया रंग का हो लेकिन इसकी नींव 1977 में रख दी गयी थी. जनता पार्टी का जब गठन हो रहा था और उसका झंडा बन रहा था, उसी दौरान लाल कृष्ण आडवाणी की सलाह पर मोरारजी देसाई ने झंडे में केसरिया रंग भी डालने की अनुमति दी थी. यह वह जनता पार्टी थी जिसने पहली बार कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर किया था. ऐसी बात नहीं है कि जनता पार्टी का झंडा आसानी से बन गया था. इसके लिए सभी दलों के शीर्ष नेताओं की राय ली गयी थी. इस पूरी घटना का उल्लेख आडवाणी ने अपनी किताब मेरा देश,मेरा जीवन में किया है.
23 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने देश में चुनाव की घोषणा की थी. आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी को रिहा कर दिया गया था. उसी दिन जयप्रकाश नारायण ने जनता पार्टी बनाने की घोषणा कर दी थी. जनसंघ, कांग्रेस (ओ), सोशलिस्ट पार्टी और लोकदल का जनता पार्टी में विलय कर दिया गया था. जगजीवन राम कांग्रेस से इस्तीफा देकर जनता पार्टी में शामिल हो चुके थे. अब बारी थी पार्टी का झंडा तैयार करने की. समय कम था. 23 जनवरी को घोषणा और मार्च में चुनाव था. घटक दलों के नेता मोरारजी देसाई के घर पर जमा हुए. जनसंघ की ओर से वाजपेयी और आडवाणी गये थे. स्वतंत्र पार्टी की ओर से पीलू मोदी ने कहा-झंडा नीला होना चाहिए. वहां चरण सिंह भी थे. उन्होंने कहा कि झंडा का रंग तो एक होना चाहिए लेकिन नीला नहीं बल्कि हरा, क्योंकि हरा रंग कृषि को दर्शाता है और किसानों के प्रति प्रतिबद्धता को भी. उसी बैठक में सिकंदर बख्त भी थे. वे कांग्रेस (ओ) से आये थे. हरा रंग का उन्होंने विरोध किया और कहा कि आपका झंडा हरा कैसे हो सकता है? हरा रंग तो पाकिस्तान के झंडे का है. अब बारी थी आडवाणी की. उन्होंने कहा कि झंडा का रंग केसरिया होना चाहिए. हर दल का सुझाव अलग-अलग था. सवाल था कि झंडा बने तो किस रंग का.
आडवाणी केसरिया रंग पर अपना तर्क दे रहे थे. कहने लगे कि 1931 में कांग्रेस झंडा समिति ने भी नीले चरखे के साथ भगवा झंडे का सुझाव दिया था. मोरारजी देसाई आडवाणी के तर्क से कुछ सहमत हुए. उन्होंने बीच का रास्ता निकाला और कहा कि झंडा दो रंग को मिला कर बनेगा. ये दो रंग होंगे केसरिया और हरा. झंडा का दो-तिहाई हिस्सा भगवा और एक तिहाई हिस्सा हरा होगा. इसके भगवा खंड में हलधारी किसान का चित्र होगा. यही हलधारी किसान का चिन्ह जनता पार्टी का चुनाव चिन्ह भी बन गया.