- ‘कभी इस बात से परेशानी नहीं हुई कि मैं एक मुसलमान हूं. जो देश का अभी माहौल है, जैसे कुछ ‘लिंचिंग’ की घटनाएं ही ले लीजिए.
- छद्म राष्ट्रवाद का जो एक प्रचलन चला रखा है उस चीज़ को सोच के मुझे लगा कि उस वक्त अगर पता चलता कि मैं एक मुसलमान हूं तो लोग इसे एक अलग कलर दे सकते थे.
- इसलिए चुप रहा. मैंने पीछे मुड़कर देखा कि जिन लोगों ने मुझे ‘पाकिस्तानी’ कहा था. उनके चेहरे पर एक अजीब किस्म की हंसी थी मानो मुझे ‘पाकिस्तानी’ कह कर उन्होंने अपना राष्ट्रीय कर्तव्य पूरा कर लिया हो.’
यह कहना है व्हीलचेयर से बंधे और विकलांग लोगों के अधिकार के लिए काम करने वाले अरमान अली का.
हाल ही में गुवाहाटी के एक मल्टीप्लेक्स में अरमान अपने भतीजे-भतीजियों के साथ सिनेमा देखने गए थे. अरमान को उस समय कुछ लोगों ने कथित तौर ‘पाकिस्तानी’ कहा, जब वे राष्ट्रीय गान बजने पर खड़े नहीं हो पाए.
पहले अरमान एल्बो क्रैच के सहारे थोड़ा बहुत चल पाते थे लेकिन 2010 से वे पूरी तरह व्हीलचेयर पर हैं.
‘एक पाकिस्तानी बैठा हुआ है’
सिनेमा हॉल में हुई इस घटना के बारे में अरमान ने बीबीसी से कहा, ”28 तारीख़ मैं अपने भतीजे-भतीजियों के साथ मल्टीप्लेक्स में फरहान अख्तर की फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’ देखने गया था. हम लोग खुश थे. फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजा.
- सरकार के जो नियम है उसी अनुसार मैं पूरी तरह अपनी कुर्सी पर अलर्ट होकर बैठ गया और बच्चों के साथ राष्ट्रगान गाया.
- जैसे ही राष्ट्र गान खत्म हुआ पीछे से किसी ने आवाज दी कि सामने एक पाकिस्तानी बैठा हुआ है. जब मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वहां 40 से 45 साल के दो व्यक्ति बैठे हुए थे और उनके चेहरे पर एक अजीब किस्म की हंसी थी.
- मैंने बात की अनदेखी की. क्योंकि मुझे लगा कि अगर मैं कुछ बोलूंगा तो वहां एक असहज तर्क हो सकता है और मैं बच्चों के साथ गया था.
- मैं नहीं चाहता था कि माहौल खराब हो और उसका गलत असर बच्चों पर पड़े. लेकिन यह काफी दुखद था. मुझे नहीं मालूम कि ये कौन लोग थे और कहां से आए थे और इनके दिमाग यह बात कैसे आई.
- मैं यही सोचता रहा कि इन लोगों ने मुझे अमेरिकन या बर्मीज क्यों नहीं कहा. चाइनीज क्यों नहीं कहा. ‘पाकिस्तानी’ ही क्यों कहा?”
विकलांगों के प्रति समाज का रवैया
अरमान आगे कहते है, ”सिनेमा देखना या आम लोगों की तरह जब मन चाहा गाड़ी पकड़ी और कहीं चले गए, यह सबकुछ मेरे लिए आसान नहीं हैं. मैं एक विकलांग व्यक्ति हूं. उस दिन भी चार लोग मुझे उठाकर सिनेमा हाल के भीतर ले गए थे, तब जाकर मैं सीट पर पहुंचा.
- मैं आम लोगों की तरह जब चाहूं फिल्म देखने की योजना नहीं बना सकता. लोगों को किसी भी तरह की बात कहने से पहले यह देखना चाहिए कि मेरी तकलीफें क्या हैं.
- अगर कोई बैठा हुआ है तो उसका कारण बीमारी हो सकती है. विकलांगता हो सकती है. बिना कुछ देखे आप सीधे किसी को ‘पाकिस्तानी’ कैसे कह सकते हैं. यह कैसा माहौल बन रहा है.”
अरमान को वाजपेयी से मिला था सम्मान
इस घटना की शिकायत पुलिस में क्यों नहीं की? इस सवाल पर अरमान कहते हैं, ”यह किसी अपराध को रोकने की लड़ाई नहीं है. यह विकलांग लोगों के प्रति समाज के एक वर्ग का नजरिया है. लोगों में जागरूकता की कमी है और कुछ लोगों में संवेदना की भी.
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्र गान को लेकर जो आदेश दिए हैं, उसके पीछे एक बहुत अच्छी सोच है राष्ट्र प्रेम की, एकता की. लेकिन विकलांग लोगों के साथ जो ऐसी घटनाएं हो रही है शायद अदालत ने भी फैसला सुनाते वक्त इस तरह की बात नहीं सोची होगी.”
अरमान 1998 से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकलांग बच्चों के लिए काम कर रही गैर सरकारी संस्था शिशु सारथी से जुड़े हुए हैं और इस समय वे संस्था के कार्यकारी निदेशक हैं.
मस्तिष्क पक्षाघात के साथ जन्मे 36 साल के अरमान राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली पैरा-शूटिंग में भी भाग ले चुके हैं. इसके अलावा साल 1998 में अरमान को उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों ‘सर्वश्रेष्ठ विकलांग कर्मचारी’ का अवॉर्ड भी मिला था.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में सभी सिनेमाघरों को फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्र गान बजाना का एक फैसला सुनाया था और 52-सेकंड तक चलने वाले जन गण मन के दौरान सिनेमा देखने गए लोगों से खड़े होने का आदेश दिया था.
हालांकि बाद में अदालत ने अपने फैसले में थोड़ा संशोधन करते हुए शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को खड़े होने से छूट दी थी.
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