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बुलेट ट्रेन से इनकी उजड़ेगी ज़िंदगी!

जिस वक्त अहमदाबाद में देश की पहली बुलेट ट्रेन की नींव रखी जा रही थी, उस वक्त महाराष्ट्र, दादरा नगर हवेली तथा गुजरात के कुछ हिस्सों में इसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. बुलेट ट्रेन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना है. जहाँ एक ओर इस परियोजना के बारे में सुनहरी बातें कही जा […]

जिस वक्त अहमदाबाद में देश की पहली बुलेट ट्रेन की नींव रखी जा रही थी, उस वक्त महाराष्ट्र, दादरा नगर हवेली तथा गुजरात के कुछ हिस्सों में इसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे.

बुलेट ट्रेन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना है. जहाँ एक ओर इस परियोजना के बारे में सुनहरी बातें कही जा रही थीं. वहीं, दूसरी ओर इसकी वजह से होने वाले विस्थापन को अनदेखा किया जा रहा था.

सरकार दावे कर रही है कि मुंबई और अहमदाबाद के बीच चलाई जाने वाली इस बुलेट ट्रेन से गुजरात और महाराष्ट्र में उद्योग बढ़ेंगे, नौकरियां पैदा होंगी, लोगों के जीवनस्तर में बढ़ोतरी होगी लेकिन इसके साथ ही बुलेट ट्रेन के रास्ते में पड़ने वाले आदिवासी इलाकों से विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए हैं.

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आदिवासी संगठनों का विरोध

इस परियोजना के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र, दादरा नगर हवेली तथा गुजरात के आदिवासी समाज ने कई जगह विरोध प्रदर्शन किए. हालांकि केंद्र और किसी भी राज्य सरकार ने इन विरोध प्रदर्शनों पर फिलहाल कुछ नहीं कहा है.

ये आरोप लगने शुरू हो गए हैं कि अगर इस परियोजना के कई फायदे हैं तो इससे होने वाले नुक़सान को छुपाया भी जा रहा है.

आदिवासी एकता परिषद के पालघर जिला उपाध्यक्ष विनोद दुमडा कहते हैं, "महाराष्ट्र, दादरा नगर हवेली और गुजरात के जिन आदिवासी बहुल इलाकों से ये परियोजना गुज़रेगी वह अनुसूचित इलाका है. यहाँ की ज़मीन अनुसूचित है और यहाँ के निवासियों की अनुमति के बिना कोई भी परियोजना शुरू नहीं की जा सकती. यहाँ के आदिवासी पहले से ही दिल्ली मुंबई फ्रेट कोरिडोर की मार झेल रहे हैं, उस पर अब यह बुलेट ट्रेन परियोजना आदिवासियों को पूरी तरह से बर्बाद कर देगी."

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आदिवासी गांव

महाराष्ट्र, दादरा नगर हवेली तथा गुजरात के आदिवासी समाज के समर्थन में इन राज्यों के 24 अलग-अलग सामाजिक संगठन साथ आकर इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं.

दादरा नगर हवेली के रहने वाले आदिवासी एकता परिषद राष्ट्रीय समन्वयक प्रभु टोकिया कहते हैं कि यह परियोजना न सिर्फ आदिवासी बल्कि बाकी समाज के लोगों की भी जिंदगी उजाड़ देगी.

वह बताते हैं, "बुलेट ट्रेन के मार्ग में कुल 72 आदिवासी गाँव हैं, जिसमें से 12 गाँव प्रभावित होने वाले हैं. इन गावों में आदिवासियों के आलावा अन्य समाज के लोग भी रहते हैं. सबसे अहम बात यह है कि इस परियोजना के लिए कानून का धड़ल्ले से उल्लंघन किया जा रहा है. इन गावों की ग्राम सभा की अनुमति के बिना कोई भी परियोजना शुरू नहीं की जा सकती. जहां तक बुलेट ट्रेन परियोजना का सवाल है तो इसके लिए किसी भी ग्राम सभा की अनुमति नहीं ली गई है."

उन्होंने कहा कि यदि सरकार ने कानून का पालन करते हुए ग्राम सभा की अनुमति नहीं ली तो 16 नवंबर को एक लाख आदिवासी दादरा नगर हवेली में इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन करेंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को पूरा करने के लिए जहां इतनी तैयारियां हो रही हैं. वहीं, महाराष्ट्र के पालघर से लेकर गुजरात के वापी तक आदिवासी गांव इस योजना की चपेट में हैं. इससे आदिवासियों के विस्थापित होने का ख़तरा मंडरा रहा है.

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