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तीन देवियां और नयी सरकार अम्मा,दीदी और बहनजी करेंगी नैया पार

आम चुनाव शुरू हो चुके हैं. पहले चरण का मतदान संपन्न हो चुका है. नौ चरण के मतदान की प्रक्रिया 16 मई को मतगणना के साथ संपन्न हो जायेगी. उस दिन मालूम होगा कि कौन सी पार्टी केंद्र की सत्ता पर काबिज होगी. लगातार दो बार सत्ता में रहनेवाले यूपीए एक बार फिर सत्तासीन होती […]

आम चुनाव शुरू हो चुके हैं. पहले चरण का मतदान संपन्न हो चुका है. नौ चरण के मतदान की प्रक्रिया 16 मई को मतगणना के साथ संपन्न हो जायेगी. उस दिन मालूम होगा कि कौन सी पार्टी केंद्र की सत्ता पर काबिज होगी. लगातार दो बार सत्ता में रहनेवाले यूपीए एक बार फिर सत्तासीन होती है या मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी उससे सत्ता छीन लेती है. या गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई दलों का नया गंठबंधन उभरता है और सत्ता पर काबिज होता है. चुनाव के बाद इन्हीं तीन में एक विकल्प सामने आयेगा, लेकिन सत्ता की चाबी ‘तीन देवियों’ के हाथों में होगी.

चुनाव से पहले तमाम सर्वेक्षणों में कहा जा रहा था कि देश भर में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की आंधी चल रही है. सहयोगी दलों के साथ भाजपा को बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा आसानी से हासिल हो जायेगा. लेकिन, जैसे-जैसे चुनाव के दिन करीब आ रहे हैं, आंकड़े लगातार बदल रहे हैं. दो महीने पहले तक जो भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 272 से अधिक सीटों पर बढ़त बतायी जा रही थी, अब करीब 250 सीटों तक आ गयी है. इस बीच, कांग्रेस की स्थिति धीरे-धीरे मजबूत हो रही है, लेकिन इस बार वह इस स्थिति में नहीं होगी कि लगातार तीसरी बार सरकार बना सके. यही हाल तीसरा मोरचा या फेडरल फ्रंट की है. उसे सीटें तो मिल सकती हैं, लेकिन इतनी नहीं कि वह अपने दम पर सरकार बना सके.

ऐसे में ‘तीन देवियों’ की भूमिका महत्वपूर्ण हो जायेगी. जी हां, ऐसी परिस्थिति में तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, अन्नाद्रमुक की अध्यक्ष और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती की भूमिका अहम हो जायेगी. इन तीन प्रदेशों में लोकसभा की 161 सीटें हैं. यदि इन्होंने एक तिहाई यानी 50 से अधिक सीटें जीत लीं, तो सत्ता की चाबी इनके हाथों में होगी, इसमें कोई दो राय नहीं. जैसा कि सर्वे बता रहे हैं कि भाजपा 250 सीटें जीत सकती हैं, उसे अम्मा, बहनजी और दीदी तीनों की जरूरत पड़ेगी. नरेंद्र मोदी से अम्मा की अच्छी दोस्ती है, बहनजी और दीदी भी भाजपा नीत सरकार में रह चुकी हैं. ममता ने जयललिता को प्रधानमंत्री बनाने में मदद करने की बात कही, तो अम्मा ने तत्काल दीदी को फोन कर धन्यवाद कहा. सो, यदि दीदी की जरूरत पड़ी, तो मोदी के लिए जयललिता उन्हें मना लेंगी, इसमें कोई दो राय नहीं. यानी आधी आबादी को 33 फीसदी आरक्षण न देनेवाली कांग्रेस और भाजपा दोनों इस बार आधी आबादी की तीन सशक्त नेता के आगे घुटने टेकती नजर आयेंगी.

ममता बनर्जी (दीदी)

-70 के दशक में कांग्रेस (आइ) में शामिल हुईं

-1984 में कांग्रेस के टिकट पर सबसे युवा सांसद बनीं

-1997 में कांग्रेस छोड़ तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की

-2011 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं

42 में 30 सीटें जीतने की उम्मीद

मजबूत पक्ष

-पार्टी में उनके फैसले के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाता

-मजबूती से अपनी बात रखती हैं, कड़े फैसले ले सकती हैं

कमजोर पक्ष

-जनहित में सारे फैसले दिल से लेती हैं. उसके असर पर विचार नहीं करतीं. ताबूत घोटाले के सामने आने के बाद अटल सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, तो रिटेल एफडीआइ के फैसले के कारण यूपीए सरकार का साथ छोड़ दिया.

जयललिता (अम्मा)

-60 के दशक की तमिल अभिनेत्री

-1982 में अन्नाद्रमुक में शामिल हुईं

-राज्यसभा की सदस्य बनीं

-1991 में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं

प्रदेश की 39 में अधिकतर सीटें जीतने का भरोसा

मजबूत पक्ष

-पार्टी में उनके फैसले के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाता

-कई लोकलुभावन योजनाओं से वोटरों को लुभाया है

कमजोर पक्ष

-अम्मा पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे. उन्होंने किसी की परवाह नहीं की. विरोधी ने यदि कभी उन्हें परेशान किया हो, तो वह सत्ता में आने पर बदला लेने में पीछे नहीं रहतीं.

मायावती (बहनजी)

-पेशे से शिक्षक थीं, आइएएस बनना चाहती थीं

-दलित नेता कांशीराम राजनीति में लेकर आये

-1995 में उत्तर प्रदेश की सबसे युवा मुख्यमंत्री बनीं

-सपा और भाजपा की मदद से तीन बार फिर 2007 में बहुमत के साथ अकेले सत्ता में आयीं

सत्ता से दूर रहने के बावजूद वोटरों में अच्छी पैठ

मजबूत पक्ष

-अपनी पार्टी की सबसे बड़ी और एकमात्र

नेता हैं

-ब्यूरोक्रेट्स को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने देतीं

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