नुसा दुआ (इंडोनिशया): म्यांमार के साथ एकजुटता दिखाते हुए भारत ने गुरुवार को यहां एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में अंगीकृत किये गये एक घोषणा पत्र का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया, क्योंकि इस घोषणा पत्र में म्यांमार के राखिन प्रांत में हुई हिंसा को लेकर जो संदर्भ दिया गया है वह ‘यथोचित’ नहीं है.
हिंसा के बाद राखिन प्रांत से करीब 1,25,000 रोहिंग्या बांग्लादेश चले गये हैं. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के नेतृत्व में एक भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने यहां सतत विकास पर विश्व संसदीय मंच ( वर्ल्ड पार्लियामेंटरी फोरम) में स्वीकृत किये गये ‘बाली घोषणा पत्र ‘ से खुद को अलग कर लिया.
इसे भी पढ़ें: म्यांमार हिंसाः 100 से अधिक लोगों की जान गयी, पढ़ें क्या है इस हिंसा के पीछे की कहानी
लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि घोषणा पत्र सतत विकास के सहमत वैश्विक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है. इसमे कहा गया कि भारत ने अपने रुख को दोहराया कि संसदीय मंच के आयोजन का उद्देश्य सतत विकास लक्ष्यों को लागू करने के लिए एक परस्पर सहमति पर पहुंचना था, जिसमे समावेश तथा व्यापक विकास प्रक्रियाओं की जरूरत होती है. विज्ञप्ति में कहा गया कि इसलिए घोषणा पत्र में राखिन प्रांत में हिंसा का प्रस्तावित संदर्भ आम सहमति के आधार पर नहीं है और जो अनुचित है.
भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपनी म्यांमार की यात्रा संपन्न करने के दिन यह रुख अपनाया है. मोदी ने राखिन प्रांत में ‘अत्यधिक हिंसा ‘ के खिलाफ म्यांमार सरकार के साथ एकजुटता जाहिर की थी. मोदी ने सभी पक्षों से इसका समाधान निकालने का आग्रह किया था, ताकि देश की एकता बनी रहे.