दुनिया की सबसे मुश्किल रेस में से एक मानी जाने वाली रेस अक्रॉस अमरीका (RAAM) को पूरा करने वाले डॉ. श्रीनिवास गोकुलनाथ पहले भारतीय हैं.
भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल डॉ. श्रीनिवास गोकुलनाथ ने ये सफलता दूसरी बार में हासिल की. वह सातवें स्थान पर रहे. उन्होंने कहा कि यह उनका जुनून है.
डॉ. श्रीनिवास ने बीबीसी को बताया , ‘रेस अक्रॉस अमरीका दुनिया की सबसे कठिन अल्ट्रा साइकिल रेस है. इसमें 5000 किलोमीटर साइकिल चलानी होती है. यह अमरीका के पश्चिमी किनारे कैलिफ़ोर्निया से शुरू होती है और पूर्वी किनारे पर मैरीलैंड के एन्नापोलिस पर ख़त्म होती है.’
12 दिनों में इस रेस को पूरा करना होता है और इस दौरान अमरीका के 12 राज्यों से होकर गुजरना होता है. रेगिस्तान और चढ़ाइयां भी पार करनी पड़ती हैं.
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श्रीनिवास बताते हैं, ‘मैंने 11 दिन, 18 घंटे और 45 मिनट में यह रेस पूरी की और ऐसा करने वाला पहला भारतीय बन गया.’
सेना में होते हुए यह रेस पूरी करने वाले श्रीनिवास ने कहा कि वह जो भी हैं, उसमें सेना का बड़ा योगदान है.
उन्होंने कहा, ‘मैं जो भी हूं भारतीय सेना की वजह से हूं. रिस्क लेने का बल मुझे सेना से ही मिला. मुझे हमेशा समय पर छुट्टी मिली और छुट्टियों के दौरान मैं ट्रेनिंग करता था.’
‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में नाम
ट्रेनिंग को लेकर उन्होंने बताया कि पिछले आठ साल से वो रेस अक्रॉस अमरीका पूरा करने का सपने देख रहे थे.
वो बताते हैं, ‘मुझे ट्रेनिंग के लिए कम से कम दो साल लगे. हर दिन मैं तीन से पांच घंटे ट्रेनिंग करता था और रविवार को 10 घंटे ट्रेनिंग में बिताता था. मैंने ट्रेनिंग के दौरान 40,000 किमी साइकिल चलाई.’
डॉ. श्रीनिवास ने कहा कि अल्ट्रा-साइकिलिंग उनका जुनून है और अनुभव बेहतरीन है. इससे वह अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर आए और आत्मविश्वास बढ़ा.
अपने आत्मविश्वास को मज़बूत करने के लिए उन्होंने लेह से कन्याकुमारी तक साइकिल से सफ़र किया. यह सफ़र 15 दिन और 17 घंटों में ख़त्म हुआ. इसके लिए उनका नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में दर्ज है.
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वह बताते हैं, ‘इस सफ़र के लिए मैंने ख़ुद पैसे जुटाए. बचत की. क्योंकि दूसरे खेलों के मुक़ाबले इस रेस के लिए प्रायोजक मिलना थोड़ा मुश्किल है. यह मेरे लिए चुनौती थी. इसे पूरा करने के बाद मेरा ख़ुद पर भरोसा बढ़ गया और गर्व हुआ.’
इसके बाद वह पुणे से गोवा तक हुई 460 किमी की डेक्कन क्लिफहैंगर अल्ट्रा साइकिलिंग रेस में भी शामिल हुए. यह रेस 32 घंटे में पूरी करनी होती है. इसे पूरा करने वाले प्रतिभागी RAAM में क्वालिफाई करते हैं. उन्होंने बताया कि इसके अलावा वह बंगलुरु में होने वाली छोटी-छोटी रेस में भी हिस्सा लेते रहे.
पत्नी ने बढ़ाई हिम्मत
साल 2016 में भी श्रीनिवास रेस अक्रॉस अमरीका में हिस्सा लेने पहुंचे. लेकिन रेस पूरी नहीं कर पाए. उन्होंने 10 दिन और 21 घंटे उस रेस में बिताए लेकिन 2460 किमी. पूरा कर पाए.
हालांकि वह कहते हैं, ‘मैं निराश नहीं था. मैंने ठान लिया था कि मैं अगली बार फिर आऊंगा. मेरी पत्नी साथ में थी उन्होंने भी मेरी हिम्मत बढ़ाई. मैंने अपनी असफलता का इस्तेमाल कामयाबी पाने के लिए किया है.’
इस साल हुई रेस के बारे में दिलचस्प वाकया बताते हुए श्रीनिवास कहते हैं, ‘रेस के शुरुआती 30 घंटों में डीहाइड्रेशन की वजह से मैं बहुत पीछे हो गया था. मेरे क्रू के साथी भी परेशान हो रहे थे. तब मैंने और अपनी पत्नी ने बात की. हमने तय किया कि इसे किसी तरह पूरा करना है, अधूरा नहीं छोड़ना. तब मैं पिछड़कर 27वें पायदान पर पहुंच गया था.’
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उन्होंने कहा, ‘मैंने ख़ुद को मानसिक तौर पर तैयार किया. ख़ुद को भरोसा दिलाया कि ये मैं कर सकता हूं. मुझे एक बार भी नहीं लगा कि मैं पीछे रह जाऊंगा. मैंने फिर से एनर्जी जुटाई और सातवें नंबर पर रेस पूरी की.’
श्रीनिवास ने बताया कि रेस के दौरान क़रीब 15 देशों के प्रतिभागी उन्हें मिले. इस दौरान कई लोग उन्हें फॉलो करते थे. वह बताते हैं, ‘अमरीका, फिनलैंड, डेनमार्क से आए लोग मुझे रेस के दौरान फॉलो करते थे. क्योंकि शुरुआत में मैं पिछड़ गया था लेकिन रेस का दूसरा हिस्सा मैंने बहुत तेजी से पूरा किया.’
प्रायोजक की तलाश
साइकिलिंग के सपने को लेकर श्रीनिवास कहते हैं कि वह अपनी कहानी के ज़रिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं. चाहे वह बच्चे हों, साइकिलिस्ट हों या फिर कॉर्पोरेट जगत के लोग हों, वह हर किसी से अपनी कहानी साझा करना चाहते हैं. ताकि हर व्यक्ति अपने सपने को खुलकर जीने के लिए मानसिक तौर ख़ुद को तैयार करे.
श्रीनिवास का कहना है अल्ट्रा साइकिलिंग में अपने सपने को वह आगे ले जाना चाहते हैं. इसके लिए अभी उन्हें प्रायोजक की तलाश है.
कश्मीर में पोस्टिंग के दौरान अपनी ट्रेनिंग को लेकर श्रीनिवास बताते हैं, ‘जैसा माहौल यहां नासिक में है, वैसा वहां नहीं रहा. थोड़ी मुश्किलें तो रही हैं. वहां ढाई किलोमीटर का कैंप का दायरा रहा है जिसके अंदर ही ट्रेनिंग करता था. वहां हम बाहर कहीं जा नहीं सकते.’
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