झारखंड के दो बड़े अस्पतालों में इस महीने 146 बच्चों की मौत हो गई है. अगस्त महीने में राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेस (रिम्स) में 103 और जमशेदपुर के महात्मा गांधी मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल (एमजीएम) में 41 बच्चों की मौत हो गई.
दोनों अस्पतालों के प्रबंधन ने इन मौतों की पुष्टि की है.
आंकड़ों के मुताबिक, रिम्स में इस साल अब तक 660 बच्चों की मौत हुई है. वहीं, एमजीएम में पिछले चार महीने (मई-अगस्त) में 164 बच्चे और धनबाद स्थित पीएमसीएच में जनवरी से अगस्त के बीच कुल 166 बच्चों की मौत हुई है.
विपक्ष ने की सीएम के इस्तीफ़े की मांग
झारखंड के इन तीन मेडिकल कालेजों में इस साल 1000 से भी अधिक बच्चों की मौत के बाद विपक्ष ने सरकार को घेरा है.
मुख्य विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसके लिए मुख्यमंत्री से इस्तीफ़े की मांग की है. जबकि कांग्रेस पार्टी ने मुख्यमंत्री रघुवर दास और स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी के ख़िलाफ़ जमशेदपुर के एक थाने में ग़ैर इरादतन हत्या की शिकायत की है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय ने मीडिया से कहा, "बच्चों की मौत के लिए ज़िम्मेवार भाजपा सरकार को इस्तीफ़ा दे देना चाहिए. सरकारी लापरवाही के कारण झारखंड के अस्पताल बच्चों के स्लाटर हाउस में तब्दील हो चुके हैं. इसके लिए सरकार सीधे तौर पर ज़िम्मेवार है."
इस बीच डाक्टरों ने इन मौतों के लिए कुपोषण को बड़ी वजह बताया है. एमजीएम अस्पताल जमशेदपुर के अधीक्षक डा भारतेंदु भूषण ने बीबीसी से कहा, "हमारे यहां जन्म लेने वाले अधिकतर बच्चे कुपोषित हैं."
वो कहते हैं, "अब अगर कोई बच्चा 500 ग्राम के वजन के साथ पैदा हो तो उसे कैसे बचाया जा सकता है. ऐसे बच्चे साधारणतया 24 से 48 घंटे ही जिंदा रह पाते हैं."
सरकार ने दिए जांच के आदेश
इन मौतों के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी को इसकी जांच करने का निर्देश दिया है.
सरकार ने रिम्स के अधीक्षक डा एसके चौधरी को उनके पद से हटा दिया है. इस बीच रिम्स के निदेशक बी एल शेरवाल ने सरकार से वीआरएस मांगा है.
इससे पहले रिम्स निदेशक ने शिशु चिकित्सा विभाग के हेड और दूसरे वरिष्ठ डाक्टरों के साथ बुधवार की दोपहर प्रेस कांफ्रेस की.
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इसके बाद जारी प्रेस बयान में निदेशक बी एल शेरवाल ने कहा, "रिम्स में इस साल कुल 4855 बच्चों को इलाज के लिए लाया गया. इनमें से 4195 बच्चे इलाज के बाद घर भेज दिए गए."
बयान में कहा गया है, "सिर्फ 660 बच्चों की मौत हुई. जो कुल एडमिशन का सिर्फ 13.5 फीसदी है. इनकी मौत की मुख्य वजह बर्थ एस्फेक्सिया, प्री मैच्योर डिलिवरी, सेप्सिस, बहुत कम वजन वाले बच्चों का जन्म आदि है."
कुपोषण बड़ी समस्या
उल्लेखनीय है कि झारखंड के आदिवासियों में कुपोषण बड़ी समस्या है. इस कारण सरकार यहां डबल फोर्टिफाइड नमक राशन दुकानों के माध्यम से देती है.
इसमें आयरन मिलाया गया है ताकि गर्भवती महिलाओं में आयरन की कमी ना हो.
स्वास्थ्य महकमा मानता है कि क्षमता से अधिक बच्चों को भर्ती करना भी इन मौतों की बड़ी वजह है. अस्पतालों में पार्याप्त संख्या में न तो बेड उपलब्ध हैं और न इनक्यूबेटर. ऐसे मे प्री मैच्योर बच्चों की देखभाल कठिन काम है.
इस बीच मानवाधिकार आयोग ने इन मौतों पर सरकार से रिपोर्ट तलब की है. जमशेदपुर के ज़िला जज ने भी एमजीएम अस्पताल का दौरा कर प्रबंधन से इस संबंध में एक अलग रिपोर्ट मांगी है.
संभव है कि हाईकोर्ट इस मामले में स्वतः संज्ञान ले.
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