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बिहार के रास्ते पर दूसरे भी चलेंगे

।। मोहन गुरुस्वामी।। (वरिष्ठ अर्थशास्त्री) राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों की इस श्रृंखला में आप अब तक कांग्रेस, माकपा, भाकपा, अन्नाद्रमुक, भाकपा (माले), तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र पर विशेषज्ञ की राय पढ़चुके हैं. आज पढ़िए जदयू के चुनावी घोषणापत्र पर टिप्पणी. जदयू के घोषणा पत्र में बहुत सारे मुद्दे हैं, […]

।। मोहन गुरुस्वामी।।

(वरिष्ठ अर्थशास्त्री)

राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों की इस श्रृंखला में आप अब तक कांग्रेस, माकपा, भाकपा, अन्नाद्रमुक, भाकपा (माले), तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र पर विशेषज्ञ की राय पढ़चुके हैं. आज पढ़िए जदयू के चुनावी घोषणापत्र पर टिप्पणी.

जदयू के घोषणा पत्र में बहुत सारे मुद्दे हैं, जो आज की जरूरत और मांग भी है. पंचायत और नगर निगम चुनाव में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण, गरीब राज्यों को विशेष राज्य का दरजा, केंद्रीय योजनाओं को बंद करना, सांप्रदायिक सद्भाव और पारदर्शिता, भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने वाली नीतियों की घोषणाओं पर देश भर में अमल की जरूरत है. पंचायती राज जिसे हम स्थानीय सरकार कहते हैं वह आम लोगों से संबंधित है. इसलिए पंचायत या नगर निगम में 50 फीसदी महिला कोटा पूरे देश में लागू करने की बात जदयू ने अपने घोषणा पत्र में कही है, वह पूरी तरह से सही और समय के अनुकूल है. यदि राज्य सरकार खुद ऐसा नहीं की होती और तब इस तरह के मांग या इसकी वकालत करती तो इसे गंभीरता से शायद नहीं लिया जाता, लेकिन बिहार ऐसा पहला राज्य है, जिसने अपने यहां इस प्रावधान को लागू किया है.

कुछ और राज्यों ने भी इस दिशा में पहल की है, लेकिन यह प्रावधान यदि पूरे देश में लागू हो, तो यह बहुत ही अच्छा रहेगा. क्योंकि घरों में सबसे ज्यादा कठिनाई महिलाओं को ही ङोलनी पड़ती है. घर से लेकर बाहर तक के काम को महिलाओं को मैनेज करना पड़ता है. इसलिए महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, तो योजना बनाने से लेकर आम जनता के जरूरत के हिसाब से योजना बनेगी. महिलाओं को सरकार में अधिकार के साथ ही आरक्षण होना चाहिए, क्योंकि जब तक आरक्षण नहीं होगा तबतक उनका प्रतिनिधित्व नहीं होगा. हां यह सही है कि आरक्षण की समय-सीमा भी जरूर तय की जानी चाहिए. चाहे वह जितने वर्षो का हो.

जदयू के घोषणा पत्र में ऐसी कई बातें है, जिसे देश भर में लागू करने की जरूरत है. हमलोग विश्व बैंक से पैसा लेने जाते हैं, तो अपने हिसाब से योजना बनाकर देते हैं. हमारे योजना के हिसाब से विश्व बैंक पैसा मंजूर करता है. यही नियम राज्यों पर भी लागू होना चाहिए. राज्य अपनी योजना बनाकर केंद्र को दें और उस हिसाब से केंद्र सरकार राशि मंजूर करें. लेकिन अपने देश में उल्टा होता है. दिल्ली में बैठे लोग यहीं से किशनगंज जिला का भी योजना तैयार कर देते हैं. जबकि योजना बनाने वाले को यह भी पता नहीं होता है कि किशनगंज में क्या जरूरत है. केंद्र सरकार राज्यों पर अपनी योजना थोपता है. नीतीश कुमार ने पार्टी के घोषणा पत्र में केंद्र प्रायोजित योजना को बंद करने की बात कही है वह शत प्रतिशत सही है. आखिर आप(केंद्र) किस आधार पर राज्यों पर अपनी योजना को थोप देते हैं.

राज्यों की जरूरतें और आवश्यकताएं अलग है. केंद्र सरकार का काम पिछड़े राज्यों को फंड उपलब्ध कराना है, न कि अपनी योजना को लागू करवाना. राज्य और वहां की जनता के हित में क्या अच्छा हो सकता है, यह वहां की निर्वाचित सरकार से बेहतर कौन जान सकता है. राज्य के विकास के लिए अपनी योजना बनाने का अधिकार राज्यों को मिलना ही चाहिए. केंद्र सरकार का काम है कि उन योजनाओं के क्रियान्वयन में राज्य सरकार का सहयोग करें. देश में सैकड़ों योजनाएं है. किसी न किसी के नाम पर योजना चल रही है. किसी को खुश करने के लिए योजना बना दी गयी है, तो किसी का नाम चलता रहे इसलिए योजना चल रही है. योजना समाज के विकास के लिए आम आदमी के फायदे के लिए बनानी चाहिए, व्यक्ति विशेष को खुश करने के लिए नहीं.

घोषणा पत्र में कई बातें राजनीतिक भी होती है. हर दल को जनता के बीच जाना है और उनसे वोट लेना होता है, इसलिए कुछ वैसी बातों को भी शामिल करने का प्रयास किया जाता है, जिससे उनका जनाधार बढ़े. जो लोग उनसे कट रहे हैं, वह दोबारा वापस आयें. चूंकि राजनीतिक दल का घोषणा पत्र है, तो इसमें ऐसी बातें रहेगी ही. सवर्ण आयोग का गठन, निजी क्षेत्र में आरक्षण आदि ऐसे मुद्दे हैं, जिसे लगभग हर दल उठाते रहते हैं. लेकिन मेरा मानना है कि ऐसे मामलों पर विस्तार से विचार-विमर्श कर ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिए.

(अंजनी कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित )

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