पुणे के क़रीब इंदापुर के 34 वर्षीय माजिद ख़ान पठान इन दिनों काफ़ी खुश हैं. उनके यहाँ रविवार की रात यहां पहली बार देश में मोबाइल लैब तकनीक से टेस्ट ट्यूब बछड़ा पैदा हुआ है.
वो कहते हैं, "परिवार में नए सदस्य के आने की जो खुशियां होती हैं, वो हुई हैं. हम सबकी कोशिशों की जीत हुई है और डॉ विजयपत सिंघानिया की एनजीओ ने यह काम किया है इस लिहाज से हमने बछड़े का नाम ‘विजय’ रखा है."
आमतौर पर इंसानों मे इनफर्टिलिटी की समस्या हो तब आईवीएफ का सहारा लिया जाता है. लेकिन, अब गायों की देसी नस्लों को उनके मूल स्थिति में संजोने के लिए और उनकी तादाद बढ़ाने के उद्देश्य से इस तकनीक का उपयोग जेके ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है.
पठान परिवार के रचना काऊ फार्म से रतन नामक गाय के इम्मैच्युअर एग्स मोबाइल लैब की विशेष इन्क्यूबेटर में रखे गए जिसने कृत्रिम गर्भ जैसा काम किया. यहां गिर नस्ल के एक बैल से प्राप्त वीर्य से उसे ख़ास तापमान पर फलित किया गया.
ये गाय कुछ अलग हैबीबीसी हिंदी कार्टून्स-
तीन लोगों से यूं जन्मा एक बच्चा
बढ़ेगी देश में गायों की संख्या
माजिद कहते हैं, "गौसेवा उनको माता-पिता से विरासत में मिली है. पठान परिवार के पास महाराष्ट्र की जो स्थानीय नस्ल की गायें हैं, रोज़ाना दस लीटर तक दूध देती हैं. लेकिन उनके पास गिर नस्ल की कई गायें हैं, जो औसतन बीस लीटर या उससे अधिक दूध देती हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ गिर नस्ल की करीब एक लाख गायें ही देश में शेष हैं."
हालांकि, इस ऐतिहासिक पल में वे थोड़े नाउम्मीद भी हैं. वो कहते हैं, "आज देश में ज्यादा दूध देने वाली भारतीय गायों की नस्लों को यदि बचाना है तो आईवीएफ के अलावा कोई और पर्याय नहीं है. हमने आईवीएफ का फैसला लिया क्योंकि, एक गाय अपनी उम्र में ज्यादा से ज्यादा दस से बारह बच्चे दे सकती है. आईवीएफ के जरिये उसी गाय से सरोगसी के इस्तेमाल से उम्रभर में 200 बच्चे पाए जा सकते हैं. इसलिए, नस्ल को बढ़ाने के लिए कोई और चारा नहीं है. ज्यादा दूध देनेवाली गिर नस्ल की गाय को बच्ची हो, हम यह उम्मीद अब भी लगाए बैठे हैं. मोबाइल लैब तकनीक से अभी महाराष्ट्र की एक खिल्लार गाय को इसी सप्ताह डिलीवरी होनी है."
आईवीएफ हो सकता है दोगुना फ़ायदेमंद
इस साल दो हज़ार गर्भाधान का लक्ष्य
पशु चिकित्सक और वैज्ञानिक डॉक्टर श्याम झँवर जेके ट्रस्ट के सीईओ हैं और डॉ. विजयपत सिंघानिया इसके अध्यक्ष. 1974 में पशुचिकित्सा शास्त्र में ग्रेजुएट डॉ झँवर ने भेड़, बकरियों और गौवंश में भ्रूण प्रत्यारोपण (एम्ब्रायो ट्रांसफर) पर शोध पत्र लिख कर इस विषय पर देश की पहली पीएचडी पूरी की. वे बताते हैं कि, इसी वर्ष आईवीएफ के जरिये करीब दो हज़ार गर्भाधान का लक्ष्य है.
उनके अनुसार, ट्रस्ट के पास चार आईवीएफ मोबाइल लैब हैं, जिनमें हरेक की लागत करीब एक करोड़ रुपये है.
क्यों क़ीमती होते हैं आईवीएफ से जन्मे बच्चे?
पुंगनूर नस्ल की गायें बढ़ाने में जुटे
डॉ झँवर ने बताया, "हम तिरुपति के पास 33 इंच ऊंचाई वाली गाय की नस्ल ‘पुंगनूर’ की तादाद भी आईवीएफ मोबाइल लैब तकनीक से बढ़ाने में जुटे हैं जो दुनिया में गाय की सबसे छोटी नस्लों में से एक मानी जाती है. इसकी क़रीब दो हज़ार गायें ही अब दुनिया में शेष हैं. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को हमने प्रेजेंटेशन दिया जिसके बाद आंध्र विश्वविद्यालय ने हमें यह काम दिया है."
भारत सरकार ने राष्ट्रीय गोकुल मिशन के जरिये देसी गायों की गिर, थारपारकर जैसी नस्लों पर बड़ा काम शुरू किया है. अब महाराष्ट्र सरकार भी इसमें दिलचस्पी ले रही है.
इस लड़की के हैं तीन ‘माता-पिता’
देश में दूध का उत्पादन बढ़ेगा
पुणे के निकट थारपारकर नस्ल की गायों की तादाद बढ़ाने के काम में अन्ना भरेकर जुटे हैं और उन्होंने भी जेके ट्रस्ट के डॉक्टर झंवर की मोबाइल लैब तकनीक का सहारा लिया है. उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया कि इस तनकीक से उनकी एक थारपारकर नस्ल की गाय इसी सप्ताह डिलीवरी देगी.
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