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चीनी मीडिया के निशाने पर डोभाल, डोकलाम गतिरोध के लिए ठहराया जिम्मेदार

बीजिंग : राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के दौरे से पहले चीन की सरकारी मीडिया के सुर अलग-अलग नजर आ रहे हैं. चाइना डेली ने जहां उनके दौरे से भारत के साथ चल रहे गतिरोध के समाधान की उम्मीद जतायी, वहीं चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि उनके दौरे से बीजिंग नहीं […]

बीजिंग : राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के दौरे से पहले चीन की सरकारी मीडिया के सुर अलग-अलग नजर आ रहे हैं. चाइना डेली ने जहां उनके दौरे से भारत के साथ चल रहे गतिरोध के समाधान की उम्मीद जतायी, वहीं चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि उनके दौरे से बीजिंग नहीं डिगेगा. चाइना डेली ने अपने संपादकीय में लिखा है कि ‘अपना रास्ता सुधारने में भारत के लिए कभी भी विलंब नहीं है.’ उसने संघर्ष से बचने का रास्ता तलाशने पर जोर दिया है.

ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा है, ‘डोभाल के दौरे से सीमा पर चल रहे गतिरोध में चीन का रुख नहीं बदलेगा.’ इसने कहा कि जब तक भारतीय सैनिक नहीं हटते, तब तक बीजिंग वार्ता नहीं करेगा. डोभाल ब्रिक्स देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के एनएसए के साथ बैठक के लिए 27-28 जुलाई को चीन की यात्रा पर जानेवाले हैं. वह अपने चीनी समकक्ष यांग जाइची के साथ गतिरोध पर चर्चा कर सकते हैं. भूटान ट्राइजंक्शन के पास चीनी सेना द्वारा सड़क निर्माण का प्रयास करने के बाद 16 जून को सैन्य गतिरोध शुरू हुआ. भारत ने सड़क निर्माण का विरोध करते हुए कहा कि इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से चीन हमारा संपर्क आसानी से काट सकता है.

ग्लोबल टाइम्स ने भारत सरकार, सेना के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल को निशाने पर लिया है. अखबार ने लिखा है कि चीनी सेना और भारतीय सेना में चल रहे विवाद के पीछे डोभाल ही हैं. भारतीय मीडिया इस तरह का माहौल बना रहा है कि जैसे उनकी यात्रा से सब ठीक हो जायेगा. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि अगर भारत डोभाल की यात्रा से उम्मीदें लगाये बैठा है और सोच रहा है कि सब कुछ सही हो जायेगा तो ये बिल्कुल गलत है. सीमा विवाद सुलझाने के लिए डोभाल की यात्रा का समय ठीक नहीं है. इस यात्रा में भारत की इच्छा के मुताबिक कुछ नहीं होगा.

अखबार में यह लेख चीनी रक्षा मंत्रालय के बयान के एक दिन बाद आया है. चीन के रक्षा मंत्रालय ने धमकी भरे अंदाज में भारत को चेतावनी दी है. चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वू कियान ने कहा कि भारत को किसी भी तरह का भ्रम नहीं पालना चाहिए. कियान ने कहा कि ‘पहाड़ को हिलाया जा सकता है, लेकिन चीनी सेना को नहीं.’

सोमवार को चीनी विदेश मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि चीनी एनएसए और अजीत डोभाल के बीच बातचीत हो सकती है, लेकिन साथ ही उन्होंने डोकलाम पर कोई सकारात्मक बात की उम्मीद जतायी थी. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने दावा किया कि भारत ने चीनी क्षेत्र में घुसने की बात ‘स्वीकार’ की है और इस गतिरोध का समाधान निकालने के लिए उसे सिक्किम क्षेत्र के डोकलाम क्षेत्र से अपने जवानों को ‘ईमानदारी से वापस बुलाना’ चाहिए. वांग ने दोनों देशों की सेनाओं के बीच गतिरोध पर पहली बार टिप्पणी करते हुए सोमवार को बैंकॉक में कहा, ‘सही और गलत बहुत स्पष्ट है और यहां तक कि वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों ने खुले तौर पर कहा कि चीनी सेना भारतीय क्षेत्र में नहीं घुसी.’

चीन के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर मंगलवारको पोस्ट किये गये संक्षित बयान में उन्होंने कहा, ‘दूसरे शब्दों में भारतीय सेना ने चीनी क्षेत्र में घुसने की बात स्वीकार की. इस समस्या का समाधान बेहद आसान है : ईमानदारी से सेना को वापस बुलायें.’ तिब्बत के दक्षिणी छोर पर यह गतिरोध शुरू हुआ. चीनी सेना ने विवादित इलाके में सड़क निर्माण की कोशिश की, जिसके बाद भारत के सहयोगी देश भूटान ने भी इस इलाके पर अपना दावा जताया. भारत ने कहा कि भूटान, चीन और भारत की सम्मिलित सीमा के समीप यथास्थिति बदलने के लिए चीन की ‘एकतरफा’ कार्रवाई से भारत की सुरक्षा को खतरा पैदा होता है.

गत सप्ताह राज्यसभा में अपने संबोधन में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने चीन पर बुलडोजर का इस्तेमाल कर सड़कों का निर्माण करने का आरोप लगाया था. भूटान ने लिखित में चीन से इस पर विरोध दर्ज कराया है. चीन के रक्षा मंत्रालय ने सोमवार को कहा था कि देश ‘किसी भी कीमत’ पर चीन के सुरक्षा हितों की रक्षा करेगा. इसमें कहा गया है कि भारत का बॉर्डर से अपनी सेना को हटाना ही दोनों देशों में अच्छी बातचीत का एकमात्र कारण है. उन्होंने कहा है कि बीजिंग का ये दायित्व नहीं है कि वह दिल्ली के साथ बात करे और सेना हटाने या सड़क निर्माण रोकने की अपील करे.

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि भारत की सेना हटे बगैर इस मुद्दे पर कोई बातचीत संभव नहीं है. अखबार ने ब्रिक्स बैठक को एक रूटीन बताया और कहा कि यह चीन-भारत के बॉर्डर मसले को सुलझाने की सही जगह नहीं है. सरकारी अखबार ने एक बार फिर 1962 की जंग का उदाहरण दिया और लिखा कि अगर भारत सेना नहीं हटाता है तो चीन इस पर कड़ा एक्शन लेगा. लेख में कहा गया है कि चीनी सेना ऐसा ऐक्शन लेगी कि भारतीय सरकार और उसकी सेना सोच भी नहीं सकती है. हमें नहीं लगता कि भारत चीन के साथ सैन्य संघर्ष के लिए तैयार है. अगर वह इस रास्ते को चुनता है तो चीन अपनी रक्षा करने के लिए पूरी तरह सक्षम है, दिल्ली को इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी होगी.

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