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सही फैसले के लिए जरूरी है ऊहापोह

मार्क्‍सवादी दर्शन के विकास में सबसे बड़ा योगदान माना जाता है, हेगेल के द्वंद्ववाद के सिद्धांत का. हेगेल के अनुसार विश्व निरंतर होते विकासों का प्रवाह है और ये विकास उसके भीतर उपस्थित अंतर्विरोधों के कारण हैं. इसके लिए उन्होंने वाद, प्रतिवाद और संवाद (thesis, antithesis and synthesis) की प्रक्रिया बतायी. यानी पहले एक अवयव, […]

मार्क्‍सवादी दर्शन के विकास में सबसे बड़ा योगदान माना जाता है, हेगेल के द्वंद्ववाद के सिद्धांत का. हेगेल के अनुसार विश्व निरंतर होते विकासों का प्रवाह है और ये विकास उसके भीतर उपस्थित अंतर्विरोधों के कारण हैं. इसके लिए उन्होंने वाद, प्रतिवाद और संवाद (thesis, antithesis and synthesis) की प्रक्रिया बतायी.

यानी पहले एक अवयव, फिर उसका विरोधी अवयव और फिर दोनों के सामंजस्य या सेंषण से तीसरी चीज जो मूल वस्तु से बिलकुल अलग है. मार्क्‍स ने हेगेल के दर्शन के इस ‘द्वंद्ववाद’ का उपयोग किया और इसे भौतिकवाद से जोड़ कर क्रांतिकारी दर्शन ‘द्वंद्वात्मक भौतिकवाद’ में तब्दील कर दिया.

विपरीत तत्वों की एकता और संघर्ष की धारणा किसी न किसी रूप में दुनिया के अनेक प्राचीन दर्शनों में मौजूद है. इसी का एक रूप है, भारतीय दर्शन में वर्णित ‘ऊहापोह’. संस्कृत का ऊहापोह: शब्द ‘ऊह:’ और ‘अपोह:’ के योग से बना है. आप्टे के संस्कृत कोश के अनुसार, ऊह: के अर्थ हैं- अटकल या अंदाज लगाना; किसी चीज का परीक्षण या निर्धारण करना; समझ-बूझ; तर्कना, युक्ति देना. संपूर्णता में देखें, तो ऊह का अर्थ हुआ किसी विषय के सभी पहलुओं पर चिंतन करना, उन पर विचार करना. लेकिन किसी विषय पर एक राय बनाने के लिए जरूरी है कि ऊह के बाद अपोह की प्रक्रिया अपनायी जाये.

अपोह, ऊह का उलटा है. यह अप और ऊह् के योग से बना है. किसी शब्द में अप उपसर्ग लगने से उलटा, विरुद्ध तथा अधिक का भाव आ जाता है. आप्टे शब्द कोश में अपोह: का अर्थ है- हटाना, दूर करना; निषेधात्मक तर्कना यानी एक तर्क के खंडन के लिए विपरीत तर्क करना; और ज्यादा तर्क करना. यानी, तर्क द्वारा शंका निवारण की प्रक्रिया है अपोह. बौद्ध दर्शन में जो कुछ अपना या अपने काम का हो, उसके अतिरिक्त अन्य सब चीजों या बातों का त्याग अपोह है. एक तरह से कहें, तो अपोह विचारों की छांट-बीन की प्रक्रिया है.

ऊह और अपोह बुद्धि के गुण माने गये हैं. गृहीत विषयों व विचारों को मन में उठाना ऊह है और विपरीत तर्क कर सही का चुनाव अपोह है. इस तरह द्वंद्ववाद के सिद्धांत में जहां विपरीत विचारों के सेंषण की बात है, वहीं ऊहापोह में छलनी की तरह विचारों को छानने की. इस तरह ऊहापोह का अर्थ है- संपूर्ण चर्चा, अनुकूल व प्रतिकूल स्थितियों पर पूरा सोच-विचार. इसे असमंजस और दुविधा के अर्थ में छोटा नहीं बनाना चाहिए. इसी ऊह से एक अन्य शब्द बना है दुरूह. यह दरूह और ऊह् के योग से बना है. यानी ऐसा विषय जिसे समझना मुश्किल हो, जो दुबरेध हो. बहुत से लोग दुरूह रास्ते या दुरूह कार्य जैसे प्रयोग करते हैं जो गलत है. इसकी जगह दुर्गम रास्ते और दु:साध्य कार्य का प्रयोग ही उचित है.

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