देश में अब तक 15 बार लोकसभा के चुनाव हुए हैं. लोकतांत्रिक कसौटी पर हम खरा उतरने की कोशिश करते रहे हैं. इस कोशिश का ही नतीजा है कि अब करीब-करीब प्रत्येक मतदाता निर्भय हो कर मतदान करने लगा है. इसने बाहुबल को बहुत हद तक कमजोर किया है, लेकिन चुनाव में धनबल अब भी कायम है. इसके कई रूप हैं. इस पर अंकुश लगाने के लिए चुनावी खर्च के लेखा परीक्षण की व्यवस्था है. यह व्यवस्था तभी सफल होगी, जब आम आदमी का इसे सहयोग मिलेगा. हम इस बार इसी विषय की चर्चा कर रहे हैं.
सामान्यत: लेखा परीक्षा का अर्थ किसी संगठन या व्यक्ति के खाते का वित्तीय स्थिति का औपचारिक एवं व्यवस्थित परीक्षण तथा समीक्षा करना होता है़ इसी संदर्भ में चुनावी लेखा परीक्षण का अर्थ चुनाव प्रक्रिया की व्यवस्थित परीक्षण और समीक्षा करना है़ इसका उद्देश्य क्या है़
वर्तमान में चुनाव प्रणाली मुख्यत: तीन एम यथा मनी पावर, मसल पावर एवं मिनिस्टिरियल पावर से ग्रस्त है़ इसमें मनी पावर का प्रभाव काफी है़ इन्हीं पावर पर नजर रखने के लिए चुनाव आयोग ने लेखा परीक्षा आर्थात चुनावी ऑडिट को अपनाया है़ इस प्रकार चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों के खर्च पर
नजर रखने के उद्देश्य से लेखा परीक्षा की प्रणाली को अपनाया है़
14 वीं लोक सभा चुनाव में उम्मीदवारों द्वारा आय-व्यय का हिसाब नहीं देने की बात उजागर हुई थी़ इसी मद्देनजर तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने राजनीतिक दलों द्वारा अपनी चुनावी आय और व्यय का अनिवार्य रूप से हिसाब रखने और उसका लेखा परीक्षा कराने की सिफारिश किया था़ इसी आलोक में चुनाव आयोग ने यह भी आदेश दिया कि उम्मीदवार अपनी नामजदगी के परचे भरते समय दिये जाने वाले शपथ पत्र में अपनी, पत्नी और आश्रितों की कुल चल और अचल संपत्ति और देनदारियों का विवरण देग़े
राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों द्वारा चुनाव कार्यो पर खर्च किये जाने वाले धन पर नजर रखने के लिए चुनाव आयोग द्वारा व्यय प्रेक्षेकों की नियुक्ति की जाती है, जो सभी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होते है तथा ये सामान्यत: अखिल भारतीय सेवाओं से होते है़ ये चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों या उनके ऐजेटों के द्वारा किये जाने व्यय पर अंकुश लगाते है़ इनके सहयोग के लिए जिला में अभ्यर्थी व्यय कोषांग का अलग से गठन किया जाता है, जो चुनाव के दौरान चुनाव खचरें पर नजर रखते है़ं इसके अलावे खर्च पर नजर बनाये रखने के लिए माइक्रो आब्जर्वर को प्रतिनियुक्त किया जाता है. इनकी प्रतिनियुक्ति जिला निर्वाचन पदाधिकारी के द्वारा की जाती है़ राज्य एवं जिला स्तर पर व्यय पर निगरानी करने के लिए अलग से नोडल पदाधिकारी प्रतिनियुक्त होते है़
लेखा परीक्षा में ये बातें होती हैं शामिल
चुनावी लेखा परीक्षा में निम्नवत बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है़
सभी मतदाताओं को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से मतदान करने का मौका मिला है या नहीं इसका आकलन किया जाना़
समस्त राजनैतिक गतिविधियों, जो प्रचलित, कार्यरत एवं संगठित अवस्था मे हो, का अवलोकन करना़
राजनीतिक प्रक्रिया पर नजर रखते हुए स्पर्धात्मक गतिविधि का परीक्षण करना
मतदाता सूचियों की शुद्धता, प्रामाणिकता एवं व्यापकता की जांच करना़
राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों की कार्य पद्धति का परीक्षण करना़
काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगाना़
चुनावी खर्च की सीमा को ध्यान में रख कर कार्रवाई करना़
उम्मीदवारों की तड़क-भड़क वाले खर्चो पर रोक लगाना़
नामजदगी (नोमिनेशन) की तिथि से उम्मीदवारों एवं उनके ऐजेंटों के व्यय की निगरानी़
डमी प्रत्याशियों का पता लगाना.
चुनावी ऑडिट के समक्ष चुनौतियां
निर्वाचक सूची में अशुद्धि के कारण बोगस मतदान एवं चुनाव में अप्रत्यक्ष रूप से बेहिसाब व्यय पर अंकुश लगाने में चुनाव आयोग पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाया है़ हालांकि काबू पाने के लिए लेखा परीक्षण के तरीकों को भी अपनाया गया, लेकिन पूर्णत: काबू नहीं किया जा सका है़ इसका कारण चुनावी लेखा परीक्षा के समक्ष मौजूद कुछ चुनौतियों का होना है़, जो निम्नवत है :
मतदाता सूची त्रुटिविहीन और अद्यतन न होना़ निर्वाचन संबंधी कतिपय अनियमितताएं यथा बोगस मतदान एवं छद्मवेशीकरण (इमपरसनाजेशन) आदि त्रुटिपूर्ण निर्वाचक सूची के ही परिणाम होते है़ ऐसी स्थिति में लेखा परीक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता़
चुनाव पूर्व मतदाता सूची का पुनरीक्षण एवं अद्यतन करने के लिए चलाये जाने वाले अभियान लोकप्रिय नहीं होना़ इस साल नौ मार्च को लोकसभा आम चुनाव 2014 के लिए वोटर बनने का अंतिम मौका दिया गया था, लेकिन प्रचार-प्रसार की कमी एवं कुछ प्रशासनिक कमी के कारण कई मतदाताओं का नाम सूची में नहीं जुड़ सका़
मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने के समय प्रशासनिक लापरवाही के कारण कई मृतक व्यक्ति का नाम सूची में रह जाता है तो कई का नाम गायब हो जाता है़
चुनाव के पूर्व के अवधि में राजनैतिक दलों एवं उम्मीदवारों द्वारा किये गये खर्च पर अंकुश नहीं लग पाता है, जबकि उनके द्वारा आचार संहिता लगने के पूर्व भी चुनाव के मद्देनजर आम सभाओं, पोस्टर, बैनर आदि पर लाखों खर्च किया जाता है़
राजनैतिक दलों द्वारा किये जाने वाले खर्च की कोई सीमा न होना भी लेखा परीक्षा के समक्ष एक बड़ी चुनौती है़ इसके अलावे उन पर न विनियमन करना वाला कोई नियम है़
चुनावी खर्च का अधिकांश लेन-देन नगदी होना भी एक चुनौती है़ राजनैतिक दलों एवं उम्मीदवारों द्वारा चुनाव के दरम्यान नगद भी लेन-देन किया जाता है़ जिस कारण लेखा परीक्षा के दौरान उनकी खर्च पकड़ में नहीं आ पाती है़
इस प्रकार इन चुनौतियों से निपटने एवं स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मतदान तथा निर्वाचन संबंधी अनियमितताओं को कम करने के लिए निर्वाचक पंजीकरण प्रक्रिया तथा निर्वाचक सूची की गुणवत्ता में सुधार किया जाना चाहिए ताकि निर्वाचकों की अधिकाधिक भागीदारी सुनिश्चित हो सके, लेकिन इसके लिए मतदान केंद्रीय स्तरीय पदाधिकारियों आर्थात बीएलओ को स्थानीय निवासियों के सलाहकार, मार्गदर्शक और मित्रस्वरूप होना चाहिए़