झगड़ू यादव ने शायद ही सोचा होगा कि आधार कार्ड उनके आंगन की सिसकी को ख़त्म कर देगा. पिछले चार महीनों से उनके आंगन में सन्नाटा पसरा था लेकिन आधार की वजह से अब गुलजार हो गया है. 15 साल का उनका खोया बेटा आधार के कारण मिला.
दरअसल, हरदोई के बेनीगंज इलाक़े में चार महीने पहले द्रोण शुक्ला नाम के एक व्यक्ति को पंद्रह साल का एक मूक बधिर बालक रोता हुआ मिला था.
वो बालक अपने बारे में न तो कुछ बता सकता था और न ही उसके पास कोई ऐसा दस्तावेज़ था जिससे उसके बारे में किसी को कुछ पता चल सके.
ऐसी स्थिति में द्रोण शुक्ला उस बच्चे को अपने घर ले आए और घर के अन्य सदस्यों की तरह वह भी वहां रहने लगा.
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द्रोण शुक्ला बताते हैं, "हमें लगा कि इस बच्चे को छोड़ देंगे तो न जाने ये कहां जाए. चूंकि ये बोल भी नहीं पाता है और न सुन पाता है तो हमें लगा कि इसे अपने साथ ही ले चलें. हो सकता है कि वहीं इसकी परवरिश हो जाए."
फिर एक दिन द्रोण शुक्ला अपने परिवार के कुछ सदस्यों का आधार कार्ड बनवाने के लिए पास के सेंटर पर ले गए तो साथ में वो उस बच्चे को भी ले गए.
और फिर यहीं से उस बच्चे के बिछड़े माँ-बाप से मिलने की कहानी शुरू हो गई.
आधार कार्ड सेंटर की संचालिका नेहा मंसूरी बताती हैं, "बच्चे की डिटेल्स तो कुछ थीं नहीं. हमने पंडित जी यानी द्रोण शुक्ला जी के ही पते पर आधार कार्ड बनाने के लिए इसका फिंगर प्रिंट लिया और फिर ये जानने की कोशिश की कि कहीं इसका आधार कार्ड किसी दूसरी जगह पर बना तो नहीं है?"
नेहा मंसूरी बताती हैं कि तीन-चार दिन बाद पता चला कि इस बच्चे का आधार कार्ड बना हुआ है. वो कहती हैं, "लेकिन जिस पते पर नितेश नाम से इसका आधार कार्ड बना था उसमें कोई मोबाइल नंबर नहीं लिखा था. फिर हमने उस पते पर एक चिट्ठी भेजी और साथ में अपना नंबर दिया कि यदि यह बच्चा उनका हो तो संपर्क करें."
बिहार के पश्चिमी चंपारण के रहने वाले झगड़ू यादव तो पिछले चार महीने से अपने बच्चे की ही तलाश कर रहे थे. पत्र पाकर उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा.
दिहाड़ी मज़दूरी करने वाले झगड़ू यादव ने बीबीसी को बताया, "हम तो उम्मीद ही खो चुके थे, लेकिन ये लोग भगवान बनकर हमें मिले. हम बच्चे को लेकर यूपी के शाहजहांपुर मज़दूरी करने गए थे.”
उन्होंने कहा, ”अभी छह-सात दिन ही हुए थे कि नितेश किसी काम से बाहर गया और फिर शायद वो अपना घर भूल गया. हमने भी बहुत ढूंढ़ा लेकिन मिला नहीं. थक कर हम वापस बिहार आ गए."
पत्र पाकर झगड़ू यादव ने नेहा मंसूरी के पास फ़ोन किया और जब दोनों लोगों को इत्मिनान हो गया कि ये बालक नितेश ही है और ये झगड़ू का ही बेटा है तो उन लोगों ने झगड़ू यादव को हरदोई बुलाया.
नेहा मंसूरी बताती हैं कि झगड़ू को हमने स्थानीय पुलिस की मौजूदगी में नितेश को सौंप दिया. वो कहती हैं, "चूंकि ये बहुत ही ग़रीब हैं इसलिए हम लोगों ने इनसे ये भी पूछा कि यदि किसी तरह की आर्थिक मदद की ज़रूरत हो तो बताएं, लेकिन झगड़ू को तो बेटे के रूप में जैसे ख़जाना मिल गया था."
झगड़ू यादव कहते हैं कि वो गए तो थे कमाने लेकिन बच्चे के ग़ायब होने के बाद न तो कुछ काम कर सके और न ही कमाई, उल्टे हज़ारों रुपए बच्चे की खोज में लग गए. फिर भी बच्चा मिलने की ख़ुशी उन्हें बहुत है.
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