मिथिलेश झा
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. चुनाव में एक सीट से कई प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं. कोई जीतता है, तो कोई हारता है. कुछ लोग निराश होकर चुनाव से तौबा कर लेते हैं, तो कुछ अगली बार फिर किस्मत आजमाते हैं. यह जानते हुए कि जीतेंगे नहीं, वे चुनाव लड़ते रहते हैं.
ऐसे ही एक शख्स हैं के पदमराजन. चुनाव हारने का इनका रिकॉर्ड लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस में दर्ज है. वर्ष 1988 से शुरू हुआ उनका चुनाव लड़ने और हारने का सिलसिला थमा नहीं है. 25 साल में देश के विभिन्न हिस्सों से 157 बार चुनाव लड़े. नगर निगम, विधानसभा से लेकर लोकसभा और राष्ट्रपति चुनाव भी लड़े. केंद्रीय मंत्रियों, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के विरुद्ध चुनाव लड़े. हर बार हारे. हर बार जमानत जब्त हुई, पर हौसले बुलंद हैं. होमियोपैथ के डॉक्टर से व्यवसायी बने पदमराजन इस बार भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी को टक्कर देंगे. कन्नूर के रहनेवाले 55 वर्षीय पदमराजन 17 अप्रैल को मोदी के खिलाफ नामांकन दाखिल करने वाराणसी जायेंगे. बाबा विश्वनाथ की नगरी में कदम रखने से पहले वह सबरीमाला मंदिर जायेंगे. अब तक 12 लाख रुपये से अधिक की जमानत गंवा चुके पदमराजन कहते हैं कि वह देश को बताना चाहते हैं कि लोकतंत्र और भारत के संविधान ने उन्हें कितनी ताकत दी है. हम चुनाव के रास्ते देश के सबसे ताकतवर शख्स को भी चुनौती दे सकते हैं.
पदमराजन का रिकॉर्ड
11 मुख्यमंत्रियों के विरुद्ध लड़े चुनाव
13 केंद्रीय मंत्रियों को दी है टक्कर
14 राज्य मंत्रियों के खिलाफ भी लड़े
बड़े-बड़ों के खिलाफ लड़े
केआर नारायणन (1997), एपीजे अब्दुल कलाम (2002), प्रतिभा पाटील (2007), प्रणब मुखर्जी (2012), हामिद अंसारी (2007), अटल बिहारी वाजपेयी (2004), पीवी नरसिंह राव (1996), मनमोहन सिंह (2007, राज्यसभा), एके एंटनी, एम करुणानिधि, जे जयललिता, वाइएस राजशेखर रेड्डी व अन्य
ऑल इंडिया इलेक्शन किंग
कई बार तकनीकी कारणों से डॉ के पदमराजन का नामांकन परचा रद्द भी हुआ, लेकिन उनके चुनाव लड़ने की हॉबी पर इसका कोई असर नहीं हुआ. नामांकन भरने का सिलसिला आज भी जारी है. उनकी इच्छा है कि उनकी हॉबी गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस में दर्ज हो. डॉ पदमराजन खुद को नामांकन दाखिल करनेवाले ‘ऑल इंडिया इलेक्शन किंग’ की संज्ञा देते हैं.