।। दक्षा वैदकर।।
दुकान पर चाय पीते वक्त नैनो गाड़ी दिखी, तो उस पर चरचा छिड़ गयी. बहुत देर तक चली चरचा के बाद मैंने तय किया कि यू-ट्यूब पर ‘मेकिंग ऑफ नैनो’ देखूं. नेशनल जियोग्राफिक की एक फिल्म में नैनो का आइडिया आने से लेकर उसकी लॉन्चिंग तक की सारी चीजें, सारे पल, सारे संघर्ष बताये गये हैं. ‘टाटा नैनो प्रोजेक्ट’ टीम वर्क का एक बेहतरीन उदाहरण है. रतन टाटा ने इसमें बताया कि यह कभी भी एक लाख की कार नहीं होने वाली थी. वह तो हालात ने इसे बना दिया.
जिनेवा मोटर शो में ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने उनका इंटरव्यू लिया और उन्होंने भविष्य के इस प्रोजेक्ट को कम कीमत की कार कह दिया. उन्होंने उनसे पूछा कि लागत कितनी होगी? रतन टाटा ने कह दिया करीब एक लाख.
अगले दिन अखबार की हेडलाइन थी कि टाटा एक लाख की कार बनायेंगे. क्योंकि अब यह बात हर तरफ फैल गयी थी और वे अपने वादे से मुकरना नहीं चाहते थे, उन्होंने इसे एक लाख में बनाने का फैसला किया. कड़ी मेहनत, डिजाइनिंग में संघर्ष, फैक्ट्री की लोकेशन चेंज होना, नये-नये चैलेंजेस आना.. जैसे कई पड़ावों को उनकी टीम ने पार किया. कई बाहरी एक्सपर्ट्स ने कहा कि इस लागत में कार को बनाना नामुमकिन है. कई लोग इस फैसले पर हंसे भी, लेकिन रतन टाटा अपने फैसले पर अड़े रहे.
इस फिल्म में टीम के सदस्य कहते हैं कि उस दौरान हमने एक दिन-रात एक करके काम किया. आखिरकार कार लॉन्च हुई, तो सैकड़ों कैमरे, रिपोर्टर्स वहां मौजूद थे. रतन टाटा खुद कार ड्राइव करते हुए स्टेज पर आये. उनकी टीम के प्रमुख सदस्य भी मंच पर आये. इस मौके पर हर सदस्य की आंखों में खुशी के आंसू ङिालमिला रहे थे. उनकी जिंदगी का यह सबसे अनमोल पल था. सभी ने कहा कि वैसा पल न तो उनकी जिंदगी में पहले कभी आया था और न आगे आयेगा. नैनो प्रोजेक्ट को हम कभी नहीं भूल सकते. रतन टाटा ने कहा कि मेरे प्रोजेक्ट के असली हीरो मेरी टीम के सदस्य हैं, जिन्होंने मेरे सपने को साकार किया.
बात पते की..
यह फिल्म हर उस व्यक्ति को देखनी चाहिए, जो ऑफिस में काम करता है, किसी टीम का हिस्सा है. इसे देख काम करने का जोश आ जायेगा.
एक अकेला इनसान उतना आगे नहीं बढ़ सकता, जितनी आगे एक बंधी हुई टीम बढ़ सकती है. टीम को साथ ले कर चलें, उसका सम्मान करें.