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संभव नहीं है ‘यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ इंडिया’

।। आर रोजगोपाल ।। वरिष्ठ पत्रकार तमिलनाडु में सभी दल खेल रहे ‘तमिल’ कार्ड भाजपा गंठबंधन में सहयोगी एमडीएमके के नेता वाइको ने अपने चुनावी घोषणापत्र में केंद्र में सरकार बनाने पर भारत का नाम बदल कर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफइंडिया रखे जाने की घोषणा की है. साथ ही तमिल को देश की राष्ट्रीय भाषाओं में […]

।। आर रोजगोपाल ।।

वरिष्ठ पत्रकार

तमिलनाडु में सभी दल खेल रहे ‘तमिल’ कार्ड

भाजपा गंठबंधन में सहयोगी एमडीएमके के नेता वाइको ने अपने चुनावी घोषणापत्र में केंद्र में सरकार बनाने पर भारत का नाम बदल कर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफइंडिया रखे जाने की घोषणा की है. साथ ही तमिल को देश की राष्ट्रीय भाषाओं में शामिल करने और लिट्टे पर से बैन हटाने की मांग भी उनके घोषणापत्र में शामिल है. तमिलनाडु के सभी बड़े स्थानीय दल चुनावों में तमिल कार्ड को खेलने से पीछे नहीं हट रहे. आज पढ़ें एमडीएमके के चुनावी घोषणापत्र का विश्‍लेषण..

तमिलनाडु की पार्टी एमडीएमके ने अपने घोषणापत्र में राज्यों को अधिक अधिकार देने के लिए भारत का नाम यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ इंडिया करने की घोषणा की है. पार्टी अध्यक्ष वाइको ने शनिवार को घोषणापत्र जारी करते हुए कहा कि भारत की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए ऐसा करना जरूरी है. लेकिन वाइको का मकसद इस संवेदनशील मुद्दे का चुनावी फायदा लेना है. तमिलनाडु और श्रीलंका के तमिलों के बीच पारिवारिक रिश्ते रहे हैं. लेकिन 2009 में जिस प्रकार श्रीलंका में तमिलों के खिलाफ कार्रवाई हुई, उससे तमिलनाडु के लोगों में काफी गुस्सा है.

स्थानीय स्तर पर यह काफी भावनात्मक मुद्दा है. वाइको ने इस मांग को आगे बढ़ा कर इस वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है. यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ इंडिया में श्रीलंका का जाफना भी शामिल है. हाल के वर्षो में केंद्र सरकारें तमिलनाडु में तमिल मुद्दों को लेकर संवदेनशील नहीं रही है. तमिलों में इस बात को लेकर गहरी नाराजगी रही है.

श्रीलंका द्वारा तमिल मछुआरों की गिरफ्तारी का मुद्दा हो या फिर श्रीलंका में तमिलों के साथ हो रहे भेदभाव के मसले पर केंद्रीय सरकार का रवैया, निराश करनेवाला रहा है. साथ ही देश में संघीय ढांचे को मजबूत करने और राज्यों के विकास को लेकर केंद्र के रुख को लेकर बढ़ती नाराजगी को देखते हुए वाइको ने ऐसी बात कही है, लेकिन इसे अमलीजामा पहनाना काफी मुश्किल काम है. वाइको की मांग है कि श्रीलंका में तमिलों के लिए एक अलग देश का गठन होना चाहिए और भारत को इसका समर्थन करना चाहिए. यही नहीं वाइको ने आतंकवादी संगठन एलटीटीइ (लिट्टे) के खिलाफ प्रतिबंध हटाने की भी वकालत की है.

उनकी इस मांग को पूरा करना मुश्किल है. एलटीटीइ पर राजीव गांधी की हत्या करने का आरोप है और किसी भी सरकार के लिए इस पर प्रतिबंध हटाने की कोशिश करना मुश्किल है. जहां तक भारत का नाम बदलने की बात है तो एमडीएमके इस मुद्दे को संघीय ढांचे के साथ जोड़ कर तमिल हितों के नाम पर वोट हासिल करना चाहती है. अक्सर देखा गया है कि केंद्र सरकार तमिल मुद्दों को उतनी अहमियत नहीं देती है, जबकि केंद्र सरकार के गठन में तमिलनाडु की भूमिका पिछले दो दशकों से काफी प्रभावी रही है. वाइको का मकसद देश के संघीय ढांचे में राज्यों को और अधिकार देने की बात करना है.

लेकिन उनकी इस मांग को शायद ही राष्ट्रीय पार्टियों का समर्थन मिले. वैसे भी देश का नाम बदलने मात्र से व्यवस्था में बदलाव संभव नहीं है और यह मांग मौजूदा समय में पूरा करना संभव नहीं है. वाइको की सहयोगी भाजपा इस मांग का समर्थन नहीं कर सकती है. घोषणापत्र में शमिल सभी मुद्दों को प्रभावी तरीके से लागू करना किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल काम है. खासकर भारत जैसे विविधता पूर्ण देश में. हमें ध्यान रखना चाहिए कि अमेरिका और भारत के राजनीतिक परिदृश्य में काफी फर्क है और भारत को यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ इंडिया की तर्ज पर खड़ा करना काफी मुश्किल और जटिल काम है. इसलिए मेरा मानना है कि यह महज एक राजनीतिक नारा है.

अन्नाद्रमुक का घोषणापत्र : तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के अन्नाद्रमुक ने भी अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा है कि लिट्टे के साथ गृह युद्ध के दौरान क्रूरता के दोषी पाये श्रीलंकाइओं को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा सजा मिले. साथ ही अन्नाद्रमुक ने अपने चुनावी घोषणापत्र में श्रीलंका के तमिलों को न्याय दिलाने और पूरे विश्व के तमिलों को एक जुट हो कर तमिल ईलम (देश) बनाने का आह्वान किया है. जयललिता ने अपने घोषणापत्र में तमिलनाडु के बाद अब पूरे देश में मुफ्त की मिक्सी, ग्राइंडर, दुधारू गाय, बकरियों और लैपटॉप बांटने का वादा किया है.

केंद्र की सरकार में मुख्य भूमिका निभाने की आस लगाये बैठी मुख्यमंत्री जयललिता ने अपने घोषणापत्र में गरीबी हटाने और 10 करोड़ नौकरियां देने की बात भी कही है.

द्रमुक के चुनावी वादे : प्रदेश के दूसरे बड़े दल द्रमुक ने अपने घोषणापत्र में मांग की है कि केंद्र सरकार को तमिल बहुतायत देशों में तमिल भाषी सरकारी आयुक्त और अन्य अधिकारी भेजने चाहिए. एक स्वतंत्र जांच की मांग की गयी है, जो श्रीलंका में तमिल लोगों पर हुए अत्याचारों की जांच और खुलासा कर सके और मानव अधिकारों की रक्षा की जा सके.

(साथ में चेन्नई से शिप्रा शुक्ला की रिपोर्ट)

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