आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले की जहरा बी व उनके बेटे मदरसा साहेब दोनों स्वयं सहायता समूह से जुड़े हैं. पिछले कुछ दिनों से ये झारखंड में हैं और यहां एसएचजी से महिलाओं को जोड़ने के अभियान में लगी हैं.
मदरसा पुस्तक संचालक (बही-खाता का हिसाब रखने वाले) हैं, तो उनकी मां कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन. दोनों झारखंड में महिलाओं को एसएचजी से संबंधित जानकारी देने की खुशी साझा करते हुए कहते हैं : इसके माध्यम से हम गरीबों की पहचान कर व उन्हें संगठित कर समूह के माध्यम से आर्थिक उन्नति के बारे में जानकारी देते हैं. दोनों मां-बेटे रांची जिले के नामकुम प्रखंड के रामपुर कलस्टर में महिलाओं को प्रशिक्षण दे रहे हैं. इनके कार्यक्षेत्र के लिए तीन गांव चुने गये हैं और हर गांव की महिलाओं को इन्हें 15-15 दिन का प्रशिक्षण देना है. हर गांव में आठ-आठ समूह का गठन किया गया है और प्रत्येक समूह में 10 से 15 तक महिलाएं हैं.
जहरा बी बताती हैं : हम महिलाओं की छिपी हुई क्षमता को बाहर निकालते हैं. उन्हें पूंजी देकर छोटे रोजगार से जोड़ने की इसके तहत पहल की जाती है. महिलाओं को सामाजिक समस्याओं के संबंध में भी समूह में जानकारी दी जाती है और बताया जाता है कि वे कैसे उनसे बाहर निकलें. आंध्रप्रदेश से आये वहां के राज्य आजीविका मिशन के प्रोजेक्ट मैनेजर सुरेंद्र रेड्डी कहते हैं कि आंध्रप्रदेश में यूएनओ के सहयोग से 1995 में यह कार्यक्रम शुरू हुआ. 2000 में विश्व बैंक से इसे मदद मिली. वर्तमान में वहां के 22 जिलों में 10 लाख एसएचजी हैं, जिसके एक करोड़ सदस्य हैं.
आंध्र में 33 हजार विलेज ऑरगाइनेजेशन हैं, जो एसएचजी के कार्यक्रमों की निगरानी रखते हैं. इसी तरह 1100 कलस्टर लेवल का फेडरेशन हैं. बैंक लिंकेज करा कर वहां शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर समूह को ऋण उपलब्ध कराया जाता है. आंध्रप्रदेश से आयी महिलाएं झारखंड में वहां के इस कार्यक्रम की सफलता को दोहराने के लिए मशक्कत कर रही हैं