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कांग्रेस के गढ़ में भाजपा की सेंध!

-किसके खाते में जायेंगी पूर्वोत्तर राज्यों की 25 सीटें- ।। कोलकाता से सुबीर भौमिक।। एक वक्त था जब पूर्वोत्तर भारत में मौजूद लोकसभा की 25 सीटों पर किस दल का कैसा प्रदर्शन है, यह किसी के लिए खास मायने नहीं रखता था. मगर, तब भारतीय राजनीति इतनी प्रतिस्पर्धात्मक नहीं थी. न ही पहले राष्ट्रीय स्तर […]

-किसके खाते में जायेंगी पूर्वोत्तर राज्यों की 25 सीटें-

।। कोलकाता से सुबीर भौमिक।।

एक वक्त था जब पूर्वोत्तर भारत में मौजूद लोकसभा की 25 सीटों पर किस दल का कैसा प्रदर्शन है, यह किसी के लिए खास मायने नहीं रखता था. मगर, तब भारतीय राजनीति इतनी प्रतिस्पर्धात्मक नहीं थी. न ही पहले राष्ट्रीय स्तर की बड़ी-बड़ी पार्टियों के लिए चुनाव में जीत हासिल करने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर गंठबंधन की राजनीति की कोई महत्वपूर्ण भूमिका थी. पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में से लोकसभा की सबसे ज्यादा 14 सीटें, असम में हैं. साल 2009 में कांग्रेस ने असम में लोकसभा की सात सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा ने चार सीटें जीतीं. यहां साल 2001 से कांग्रेस लगातार जीतती रही. असम गण परिषद् (अगप), असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एयूडीएफ) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट जैसे छोटे क्षेत्रीय दलों ने अपने-अपने गढ़ में एक-एक सीट जीती थी.

अप्रत्याशित परिणाम : भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह का कहना है कि उन्हें इस बार पूर्वोत्तर भारत से अप्रत्याशित चुनाव परिणाम की उम्मीद है. हालांकि, भाजपा अगप के साथ गंठबंधन को बहाल करने में नाकाम रही है, फिर भी चुनाव जीतने के पीछे दिख रहे उनके आत्मविश्वास के दो कारण हो सकते हैं. भाजपा नेता प्रद्युत बोरा कहते हैं, ‘कांग्रेस सरकार की विफलता के कारण यहां कांग्रेस विरोधी लहर चल रही है.’ वैसे कांग्रेस अपनी सत्ता के खिलाफ असंतोष के बावजूद असम विधानसभा चुनाव में तीन बार जीती. लेकिन नेतृत्व में मतभेदों और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण वह लगातार घिरती रही है.

एयूडीएफ का उभार : कांग्रेस नेतृत्व मतभेदों और भ्रष्टाचार के आरोपों से नहीं, बल्किकिसी दूसरी वजह से परेशान है. वह वजह है मौलाना बदरु द्दीन अजमल के नेतृत्व में एयूडीएफ का उभार. असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एयूडीएफ के उभार ने मुसलमान मतदाताओं के बीच कांग्रेस के जनाधार को तेजी से काटा है. असम की आबादी का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों का है. एयूडीएफ के साथ चुनावी गंठबंधन में सफलता नहीं मिलने के कारण आशंका जतायी जा रही है कि कांग्रेस को आगामी चुनाव में इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है. जहां-जहां मुसलमान मतदाता महत्वपूर्ण स्थिति में हैं वहां कांग्रेस की सीटों को नुकसान पहुंच सकता है.

बंटे हुए मत : साल 2009 में कांग्रेस के बुजुर्ग नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष मोहन देव भाजपा के कबींद्र पुरकायस्थ के खिलाफ सिलचर सीट हार गये थे.मगर इससे भी बुरा ये हुआ था कि वे चुनावी मुकाबले में तीसरे नंबर पर आये. दूसरे नंबर पर एयूडीएफ के उम्मीदवार ने जगह ली थी. कांग्रेस और एयूडीएफ उम्मीदवार को संयुक्त रूप से 400,000 से ज्यादा मत मिले. चूंकि उनके मत आपस में बंट गये, इसलिए भाजपा के पुरकायस्थ ने 200,000 मत मिलने के बावजूद जीत हासिल कर ली. चुनाव विेषक नानी गोपाल महंत कहते हैं, ‘यह गणित कई दूसरे निर्वाचन क्षेत्रों में भी दोहराया जा सकता है.’ एयूडीएफ की स्थिति इस चुनाव में इतनी मजबूत नहीं है कि वह एक या दो से ज्यादा सीटें जीत सके. मगर इतना जरूर है कि वह कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती है. इससे भाजपा को अप्रत्यक्ष तरीके से मदद मिल सकती है.

धार्मिक ध्रुवीकरण : स्थानीय मीडिया का कहना है कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने हाल ही में पूर्वोत्तर में, खासकर असम में, अपनी रैलियों के दौरान मजबूत छाप छोड़ी है. मोदी ने यूपीए सरकार और कांग्रेस पर जम कर हमला बोलते हुए बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ को रोकने का मुद्दा उठाया और बांग्लादेश से विस्थापित हिंदुओं के साथ सहानुभूति भरे व्यवहार का वादा किया. मोदी चाहते थे कि यहां धार्मिक ध्रुवीकरण हो, जबकि मौजूदा लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान वे भारत के दूसरे हिस्सों में इससे बचते नजर आये. असम में यदि धार्मिक ध्रुवीकरण होता है, तो मुसलिम एयूडीएफ की ओर जबकि हिंदू भाजपा की ओर जा सकते हैं, जबकि कांग्रेस के हाथ कुछ नहीं आयेगा. अरुणाचल के पूर्व मुख्यमंत्री गेगोंग अपांग को अपने पाले में लेने के बाद भाजपा को भी भरोसा है कि वह अरुणाचल की दो सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करेगी. अभी राज्य में कांग्रेस का शासन है और उसने ये दोनों सीटें साल 2009 में जीती थीं- और इस बार कांग्रेस के नेता दावा कर रहे हैं कि वे इन सीटों को इस बार फिर से जीतेंगे.

क्षेत्रीय दलों का असर : मिजोरम और मणिपुर में कांग्रेस के मुख्यमंत्री हैं. मिजोरम की एक सीट पर और पड़ोसी मणिपुर की दो सीटों पर पार्टी की पकड़ मजबूत है. मगर कहा जा रहा है कि मेघालय, जहां कांग्रेस की ही सरकार है, की दो सीटों पर इसकी स्थिति अच्छी नहीं है. नगालैंड और सिक्किम में क्षेत्रीय दलों की सरकार है. यहां उनकी एक-एक सीट है, और उन्हें भरोसा है कि वे इन सीटों को फिर से हासिल कर लेंगे. यही हाल त्रिपुरा का है. यहां माकपा के नेतृत्व वाली वाम मोरचा सरकार को उम्मीद है कि वह पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस से मिल रही चुनौतियों के बावजूद दोनों सीटों पर फिर से जीत दर्ज करेगी.

(साभार: बीबीसी)

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