उन्होंने कहा कि 2007 से पहले पहाड में दागोपाप था और उसी समय अलग राज्य गोरखालैंड की मांग को लेकर गोजमुमो का गठन हुआ. उस वक्त परोक्ष रूप में दागोपाप का संचालन गोजमुमो ही कर रहा था. 2011 में मोरचा ने जीटीए समझौता किया. पहाड़ में जब मोरचा की स्थिति ठीक नहीं थी, तब उसे क्रामाकपा की याद आयी. लेकिन मोरचा जब मजबूत हो गया, तो वह क्रामाकपा को ही तोड़ने लगा. मोरचा नेतृत्व के ऐसे आचरण के कारण ही मोरचा के लोग अब उसे छोड़ तृणमूल कांग्रेस का झंडा थाम रहे हैं.
श्री घतानी ने कहा, गोरखालैंड मुद्दे को दबाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार जुटी हुई है. लेकिन यह मुद्दा किसी स्प्रिंग की तरह दबा हुआ है. सरकार को न्यूटन का नियम पढ़ना जरूरी है. जिस दिन दबी हुई स्प्रिंग छूटेगी, गोरखालैंड विरोधियों की बुरी दशा होगी. उन्होंने कहा कि क्रामाकपा का सफाया करने की साजिश कोलकता के साथ-साथ लाल कोठी ओर पातलेबास में भी चल रही है. लेकिन यह इतना आसान नहीं है. सभा को नरबु लामा, शेखर छेत्री आदि ने भी संबोधित किया.