बिजली वितरण कंपनी की निगरानी के अभाव में जंगल से सटे इलाके के खेतों इस तरह की प्रवणता काफी बढ़ी है. जंगली जानवरो से फसलो को बचाने के लिये किसान गैरकानूनी रूप से बिजली का प्रयोग कर रहे हैं. वन्य प्राणियो के साथ इंसान भी इसकी चपेट आ रहे हैं. वन विभाग का कहना है कि किसान अपनी खेतो की सुरक्षा के लिये तार का घेरा लगाते हैं. रात होते ही इस घेरे में बिजली का करंट प्रवाहित कर देते हैं. खाने की तालाश में रात के समय निकले वन्य प्राणी इस बिजली के झटके से घायल होते हैं और कई बार जानवरों की मौत भी हो जाती है. इसके अलावा रात के समय वन कर्मी भी जंगल व निकटवर्ती क्षेत्रों में गश्ती पर रहते हैं. कइ बार वनकर्मी भी करंट की चपेट में आने से बाल-बाल बचे हैं. बिजली कंपनी को बार-बार इस विषय की जानकारी देने के बाद भी कोई कदम नहीं उठाया गया है.
जंगल से सटे इलाको में बसने वाले लोगो का मुख्य पेशा खेती है. साथ ही इन्हें जंगली जानवरों का भी भय सताता है. फसल को बचाने के लिये ये लोग विभिन्न तरह की तरकीबें निकालते रहते है. फसल को बिजली के घेरे से सुरक्षित रखना सबसे कारगर सिद्ध हो रहा है. पहले किसान फसल की रक्षा के लिये गुट बनाकर पहरेदारी किया करते थे, लेकिन हाथियों के आक्रमण को रोक नहीं पाये. मुख्य रूप से हाथियों से फसल को बचाने के लिये तार के घेरे में शाम के बाद बिजली का करंट प्रवाहित कर दिया जाता है. इसकी वजह से कइ बार हाथियों की मौत हो चुकी है. इसके अतिरिक्त एक दो किसान भी इसकी चपेट में आ चुके हैं. कुछ दिनों पहले ही बिजली के इस घेरे के संपर्क में आ जाने से एक किसान की मौत हो गयी थी. उस किसान ने स्वयं ही फसल की रक्षा के लिये बिजली करंट का तार लगाया था, लेकिन सुबह खेत पर जाने से पहले बिजली का करंट हटाना भूल गया गया. खेत में कदम रखते ही उसकी मौत हो गयी थी.
इस समस्या के संबध में उत्तर बंगाल की मुख्य वनपाल सुमिता घटक ने बताया कि इसके लिए एक कमिटी गठित की गयी है. बिजली चोरी की समस्या बिजली विभाग की है. उसके बाद भी विभाग की ओर से अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है. वन कर्मचारियों द्वारा इस समस्या का समाधान करना संभव नहीं है. बिजली घेरा से सिर्फ वन्य प्राणियो या वन कर्मचारियों को ही खतरा नहीं है बल्कि स्थानीय लोगों को भी खतरा है. इस समस्या के समाधान के लिये अगले माह बिजली विभाग, पुलिस प्रशासन आदि के साथ उच्चस्तरीय एक बैठक होने की संभावना है.