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एक बार फिर से विस्थापित होने के कगार पर हैं उत्तरकन्या के विस्थापित

सिलीगुड़ी. सिलीगुड़ी के फूलबाड़ी में राज्य मिनी सचिवालय उत्तरकन्या के निर्माण के दौरान जमीन लिये जाने से जो चौबीस परिवार विस्थापित हो गये थे, वह सभी एक बार फिर से विस्थापित होने के कगार पर हैं. वर्ष 2011 में राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद जब तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी, तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी […]

सिलीगुड़ी. सिलीगुड़ी के फूलबाड़ी में राज्य मिनी सचिवालय उत्तरकन्या के निर्माण के दौरान जमीन लिये जाने से जो चौबीस परिवार विस्थापित हो गये थे, वह सभी एक बार फिर से विस्थापित होने के कगार पर हैं.

वर्ष 2011 में राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद जब तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी, तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य सचिवालय को सिलीगुड़ी में भी बनाने का निर्णय लिया, ताकि उत्तर बंगाल के लोगों को विभिन्न कार्यों के लिए बार-बार कोलकाता न जाना पड़े. इस मिनी सचिवालय का नाम मुख्यमंत्री ने ही उत्तरकन्या दिया है. इसे बनाने के क्रम में यहां से चौबीस परिवारों को विस्थापित कर दिया गया था और इनके पुनर्वास की व्यवस्था राज्य सरकार को करनी थी. उत्तरकन्या से विस्थापित चौबीस परिवारों को फूलबाड़ी एक नंबर ग्राम पंचायत के अधीन साहूडांगी में साहू नदी के किनारे खाली पड़ी जमीन पर बसाया गया.

जहां इनके पुनर्वास की व्यवस्था की गई, उस स्थान का नाम अधिकारपल्ली रखा गया है. पुनर्वास पाने के अधिकार को दर्शाने के लिए ही विस्थापितों के कालोनी का नाम अधिकारपल्ली रखा गया. अब करीब तीन साल बाद अधिकारपल्ली के लोग लगता है एक बार फिर से विस्थापित होने के कगार पर हैं. भारी संख्या में स्थानीय लोग यहां आकर बस गये हैं. अधिकारपल्ली इलाके की जमीन पर भूमाफियाओं की नजर पड़ गई है और बाहरी लोगों को यहां बसाया जा रहा है. चौबीस विस्थापित परिवार बाहरी लोगों की भीड़ में एक तरह से अल्पसंख्यक हो गये हैं. विस्थापितों में से रजिया खातून, सुखलाल राय आदि का कहना है कि भूमाफिया के लोग 25 से 30 हजार रुपये कट्ठा जमीन बेचकर बाहरी लोगों को यहां बसा रहे हैं. इसके अलावा इन लोगों ने राज्य सरकार तथा उत्तर बंगाल विकास मंत्री गौतम देव पर वादाखिलाफी का भी आरोप लगाया है. इन लोगों ने कहा कि अधिकारपल्ली बनने के बाद मंत्री गौतम देव ने यहां बिजली, सड़क, स्वास्थ्य तथा शिक्षा आदि जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात कही थी. अधिकारपल्ली बनने के बाद बिजली तो दो-तीन महीने में आ गई, लेकिन सड़क दो-तीन साल बाद भी नहीं बना है. स्वास्थ्य सेवाएं भी नदारद है. यहां वादे किये जाने के बाद भी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना नहीं की गई.

बीमार होने के बाद इलाज कराने के लिए सिलीगुड़ी जाना पड़ता है. सुखलाल राय ने आगे कहा कि बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल तक की व्यवस्था नहीं है. एक शिक्षक यहां बच्चों को पढ़ाने जरूर आते हैं, लेकिन उन्हें स्कूल भवन के अभाव में दूसरे के बरामदे पर बच्चों को पढ़ाना पड़ता है. अधिकारपल्ली में रहने वाले एक अन्य विस्थापित कैजुल रहमान ने यहां मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था करने के साथ ही एक मस्जिद बनाने की भी मांग की. उन्होंने कहा कि विस्थापन से पहले मंत्री गौतम देव ने मस्जिद बनाने का भी आश्वासन दिया था. रमजान आने को है और मुस्लिम इस दौरान रोजा रखेंगे. नमाज पढ़ने के लिए आसपास में कहीं भी मस्जिद नहीं है. ऐसे में यथाशीघ्र यहां मस्जिद का निर्माण हो जाना चाहिए. अधिकारपल्ली के अलावा नदी के उस पार शिवगंगा आश्रमपाड़ा में भी बाहरी लोगों की भरमार है. यहां भी करीब डेढ़ सौ से दो सौ बाहरी परिवारों को बसा दिया गया है. भूमाफिया के लोग पैसे लेकर यहां भी बाहरी लोगों को बसा रहे हैं.

आरोप है कि सरकारी जमीन की बिक्री की जा रही है. शिवगंगा आश्रमपाड़ा में तो हल्दीबाड़ी, गाजलडोबा आदि स्थानों से लाकर लोगों को बसाया गया है. हल्दीबाड़ी से यहां आये सूर्यदेव राय का कहना है कि उन्होंने एक लाख 20 हजार में तीन कट्ठा जमीन बीरेन राय नामक एक व्यक्ति से खरीदी है. कुछ इसी तरह की बातें रूनु मंडल बारीबासा से आये परितोष राय, कालिपद आदि ने कही. बीरेन राय को यहां भूमाफिया माना जाता है. स्थानीय लोगों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार पहले वह यहां भाजपा नेता कहलाते थे. मुख्य रूप से वही इस इलाके में जमीन की खरीद बिक्री के काम में लगे हुए हैं.

दूसरी तरफ बीरेन राय ने इन आरोपों से इंकार किया है. उन्होंने कहा है कि वह किसी प्रकार की सरकारी जमीन की बिक्री नहीं कर रहे हैं. जो जमीन उनकी है, वही बेच रहे हैं. उनके पास जमीन के कागजात भी मौजूद हैं. इस मामले में कोई भी सरकारी अधिकारी कुछ भी नहीं कहना चाह रहा है. जिस अधिकारी से बातचीत की कोशिश की गई, उन्होंने चुनाव आचार संहिता का हवाला देकर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया.

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