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30 अप्रैल 1954 गोरखाओं के लिए काला दिन

दार्जिलिंग : 30 अप्रैल 1954 गोरखाओं के लिए काला दिन है. यह कहना है दीपक भारती का. आज स्थानीय गोरखा दु:ख निवारक सम्मेलन भवन के लाइब्रेरी हाल में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि 30 अप्रैल 1954 में केंद्रीय रक्षा कानून में दार्जिलिंग के भूभागों को शामिल किया गया था. उक्त कानून व एक्ट […]

दार्जिलिंग : 30 अप्रैल 1954 गोरखाओं के लिए काला दिन है. यह कहना है दीपक भारती का. आज स्थानीय गोरखा दु:ख निवारक सम्मेलन भवन के लाइब्रेरी हाल में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि 30 अप्रैल 1954 में केंद्रीय रक्षा कानून में दार्जिलिंग के भूभागों को शामिल किया गया था.

उक्त कानून व एक्ट की तौहिन कर राज्य सरकार दार्जिलिंग में अपना कानून बनाने की कोशिश कर रही है, जो गलत बात है. उन्होंने कहा कि किसी हालत में राज्य सरकार केंद्रीय एक्ट को तोड़ नहीं सकती. उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी राजनीतिक दल व नेता के विरोधी नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि 1962 में बिहार सरकार ने दार्जिलिंग को बिहार में मिलाने की मांग की थी.

लेकिन 30 अप्रैल 1954 के केंद्रीय रक्षा कानून व एक्ट के तहत उक्त मांग को खारिज कर दिया गया.1954 के बाद से दार्जिलिंग से चुनाव में हिस्सा लेना दार्जिलिंग व गोरखा समुदाय के लिए दुर्भाग्य की बात है.

विभिन्न कानून बनाकर दार्जिलिंग के भूभाग को बांधकर रखने के कारण आज गोरखालैंड की प्राप्ति नहीं हो रही है. गोरखालैंड प्राप्ति के लिए सही नेतृत्व की जरूरत है. गोरखालैंड आंदोलन के बाद किसी व्यवस्था पर हस्ताक्षर व समझौता करना ही हिल्स नेताओं की सबसे बड़ी भूल थी. जीटीए समझौते के कारण ही आज गोरखालैंड पाने में इतनी समस्याएं हो रही है.

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