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परमानंद ने नवोदितों को तराशा ही नहीं

सिलीगुड़ी : आजादी के बाद से अब तक की रचना पर आलोकपात करना जटिल व श्रम साध्य कार्य है. समकालीन कविता, कहानियों को समझना और वहां से कवि व कथाकारों के कहे गये मर्म को पाठक तक पहुंचाना आसान नहीं. कारण इन 67 वर्षो में विविध विषयों पर विपूल मात्र में लिखे गये. काव्य–शास्त्रीय परिपाटी […]

सिलीगुड़ी : आजादी के बाद से अब तक की रचना पर आलोकपात करना जटिल श्रम साध्य कार्य है. समकालीन कविता, कहानियों को समझना और वहां से कवि कथाकारों के कहे गये मर्म को पाठक तक पहुंचाना आसान नहीं. कारण इन 67 वर्षो में विविध विषयों पर विपूल मात्र में लिखे गये.

काव्यशास्त्रीय परिपाटी चौखटे से बाहर होकर ,अपनी दृष्टि से रचना और समय को देखने की शक्ति व्यास सम्मान से सम्मानित परमानंद श्रीवास्व में थी. पांच नवंबर को उनका निधन हो गया. उनकी स्मृति में रविवार को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. यह आयोजन सृजनपथ की संपादक रंजना श्रीवास्तव के निवास स्थान पर आयोजित किया गया. आलोचक देवेंद्र नाथ शुक्ल ने उनकी आलोचना के विषय में कहा कि वह किसी का अनुशरण नहीं करते थे.

उनकी आलोचना से प्रतीत होता है कि वह कवि के सहयात्री हों. उसके सारे उथलपुथल, विसंगतियों के साथ आलोचक उसे देख और बहुत गहरे स्तर वह उसके बोध और भावना से संवेदित है. संपादिका कवयित्री रंजना श्रीवास्तव ने कहा कि परमानंद बड़े उदारवादी थे. नव लेखकों को खूब हौसला बढाते थे.

वें बारिकी से नये रचनकारों का पढ़ते थे. वें खुद नव लेखकों को उनकी कृति पर आलोचना करने की बात कहते थे. उन्होंने मेरी रचना देह के लोकतंत्र और जीवन, जीवन के बाद पर भी आलोचना करने की बात की थी. अत्यधिक लिखने के कारण उनके साथी इष्र्यालु प्रकृति के साहित्यकार कहा करते है कि उन्हें छपास की बीमारी है.

महिलाओं के साथ उन्हें जोड़ा जाता था, कारण वें महिला लेखिकाओं को हौसलाअफजाई करते थे. इतना बड़ा व्यक्तित्व होने के बावूजद भी, उनमे रत्ती भर भी अहंकार नहीं. जिस पत्रिका की सकुलेशन नहीं, उनके लिए भी अपना लेख भेजते थे.

भोजपुरी राज्य विकास परिषद के राज्य अध्यक्ष रमेश साह ने कहा कि रचनाकार, कलाकार एक ही बिरादरी के होते है. अकेलेपन को लेकर उनकी सूक्ष्म दृष्टि और तुलना देखने योग्य है. कुंवर नारायण और त्रिलोचन की कविता में अकेलापन को उन्होंने बहुत करीब से जांचापरखा.

कुंवर नारायण का अकेलेपन पर लिखी कविता इन दिनों में कवि कहते हैवैसे सच तो यह है कि मेरे लिए/बाजार एक ऐसी जगह है, जहां मैंने हमेशा पाया है/एक ऐसा अकेलापन जैसा मुझे बड़ेबड़े जंगलों में भी नहीं मिला. वहीं दूसरी और त्रिलोचन मेरा घरशीर्षक कविता में अकेलेपन के विषय पर कहते है आज मैं अकेला/अकेला रहा नहीं जाता/जीवन मिला है कि रतन मिला यह/धूल में कि फूल में/मिला है तो मिला है/मोलतोल इसका अकेले कहा नहीं जाता. दोनों का अकेलापन अलगअलग है.

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