नागराकाटा : डुआर्स के नागराकाटा ब्लॉक स्थित बंद धरनीपुर चाय बागान में रहने वाली दो मेधावी बहनें अत्यंत निर्धनता में जीवन-यापन करने को विवश हैं. इसका दुनिया में अपना कोई नहीं है. एक का इस परिवार में कोई नहीं है, जबकि दूसरी की मां के रहते हुये कई वर्ष पहले पिता का देहांत हो चुका है.
इलाके में इन दोनों बहनों को सरस्वती का अवतार माना जाता है. डुआर्स के नागराकाटा ब्लॉक स्थित बंद धरनीपुर चाय बागान खाता कलम में पिछले आठ वर्षों से बंद पड़ा हुआ है. किसी तरह दो वक्त का भोजन जुटाने के लिए चाय बागान से कच्ची पत्तियां तोड़कर किसी तरह चाय बागान को बचाये रखा है. चाय बागान में एक दिन काम करने पर 150 रोज मिलता है. उसी चाय पत्तियों को तोड़कर घर और संसार के साथ पढ़ाई-लिखाई करती है राधिका और रेनुका सार्की.
दोनों बहन वर्तमान में कॉलेज प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रही है. राधिका सार्की बानरहाट कार्तिक उरांव सरकारी हिंदी विद्यालय में अध्यनरत हैं, जबकि दुसरी बहन रेनुका सार्की मालबाजार परिमल मित्र स्मृति माहविद्यालय में अध्यनरत है. राधिका और रेंनुका का घर बंद धरनीपुर चाय बागान के पानीखट्टा लाईन में है. वहां से दोनों बहनों को कॉलेज जाने के लिए पांच किलोमीटर रास्ते तय कर बस पकड़ना पड़ता है.
जिसके पास कुछ करने की इच्छा शक्ति हो उस पर लाख बाधा आनेपर भी वह नहीं झुकता है, यह बात दोनों बहनों सिद्ध कर दिया है. काम छोड़ने का कोई सवाल ही नहीं होता. यदि काम छोड़ दिया तो परिवार में खाने के लाले पड़ जायेंगे. इसलिए कॉलेज में अनुपस्थित रहकर भी दोनों बहन काम में जाती है. फिर भी दोनों ने पढ़ाई नहीं छोड़ी है.
राधिका और रेंनुका दोनों के पिता दादा भाई है. राधिका छोटे भाई की लड़की है, जबकी रेंनुका बड़े भाई की. रेंनुका भले ही राधिका से बड़ी हो लेकिन दोनों बहनों में गहरा प्रेम है. रेंनुका जब छोटी थी तब उसके पिता राजकुमार सार्की गुजर गए थे. उस समय चाय बागान खुला ही था. पिता की मृत्यु के बाद घर का सारा बोझ रेनुका की मां मंजु के ऊपर आ गया.
मां के भी अस्वस्थ होने के कारण घर की मझली लड़की रेंनुका पर घर संभालने का सारा दायित्व आ जाता है. एक ओर चाय बागान का काम तो दूसरी ओर चेंगमारी उच्च विद्यालय में पढ़ाई-लिखाई दोनों काम एक साथ पूरा करना सभी के लिए असमर्थ होता है. लेकिन रेंनुका ने इस जिम्मेबारी को भी बड़े कुशलता के साथ पूरा करते हुए चेंगमारी चाय बागान उच्च विद्यालय से उच्च माध्यमिक परीक्षा पास करती है.
उच्च माध्यमिक परीक्षा पास करने के बाद वर्तमान में रेंनुका माल कॉलेज में प्रथम वर्ष में अध्ययन कर रही है. दूसरी ओर रेंनुका के चाचा की लड़की राधिका का जीवन यात्रा और भी कठिन दौर से गुजर रहा है. राधिका को अपने पिता राजू का कब देहांत हुआ तो वह भी उसे ठीक से याद नहीं है. परिवार ने बताया कि पिताजी की मृत्यु के बाद मां भी दूसरे के साथ शादी कर चल गयी. उसके बाद राधिका और उसकी भाई राज का घर दीदी रेंनुका का घर है.
रेंनुका की अस्वस्थ मां मंजू ने बताया कि मैं दोनों बच्चों का बड़ी मां हूं. इसलिए मैं इन्हें कहीं फेक नहीं सकती. पति के गुजर जाने के बाद तीन लड़की और देवर की एक लड़की और लड़के को लेकर किसी तरह गुजारा कर रही हूं. वह भगवान को सिर्फ पता है. राधिका और रेंनुका हाईस्कूल पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ बागान में काम के लिये जाती हैं. यदि दोनों काम में नहीं जाती है तो परिवार में गहरा संकट आ जाता है. रोज सुबह होते ही दोनों बहन चाय बागान में कच्ची पत्तियां तोड़ने के निकल जाती है.
काम समाप्त कर ही घर लौट आती है. उसके बाद दोनों ही कॉलेज जाने के लिए दौड़-धूप करती हैं. रेंनुका कहती है जिस दिन चाय बागान में लंबी समय तक कम होता है अथवा किसी दिन दूर होता है तो हम कॉलेज नहीं जा सकती. लेकिन कुछ नहीं किया जा सकता. काम नहीं करने से संसार नहीं चल पाता. दूसरी बहन राधिका कहती हैं कि सभी किताब खरीद नहीं कर पाती हूं.
कॉलेज में एडमिशन के समय एक साथी से उधार लेकर कॉलेज एडमिशन किया था. प्रतिदिन बानरहाट कॉलेज जाने के लिए कम से कम 50 रुपया खर्च होता है. स्कूल में अध्यन करते समय कन्याश्री का पैसा भी हमदोनों बहन को नहीं मिला. कन्याश्री फॉर्म फिलअप के लिए स्कूल में फॉर्म मांगने पर हमें बोला गया कि जिस-जिस ने टी बोर्ड से छात्रवृति के लिये फार्म भरा है. उसे कन्याश्री नहीं मिलेगा. हमें टी बोर्ड से भी कोई पैसा नहीं मिला.
अब आपका लक्ष्य क्या है? इस प्रश्न का उत्तर करने पर चाय बागान में कुदाल लेकर साफ-सफाई कर रहीं दोनों बहनों ने आगे तक पढ़ाई लिखाई करते रहने की इच्छा व्यक्त की. लेकिन इस तरह कबतक कर पाएगें यह किसी को पता नहीं है. चाय बागान के एक श्रमिक भोला नाथ नट्टो ने कहा कि दोनों बहन का संघर्ष सभी के लिए प्रेरणा है. माल महकमा शासक सियाद एन ने कहा कि एक दुखदायक घटना है. प्रशासन दोनों लड़कियों के साथ होगा.