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चाय बागान के इलाकों में कम हुआ मतदान
जलपाईगुड़ी : सोमवार को संपन्न त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में इस बार चाय-वलय से मतदान का प्रतिशत कम रहा. इसको लेकर विभिन्न राजनैतिक दलों के नेता चिंतित हैं. हालांकि राज्य सरकार ने मतदान के दिन को सवैतनिक छुट्टी की घोषणा कर दी थी. चाय श्रमिक संगठन के नेताओं का मानना है कि न्यूनतम मजदूरी का लागू […]
जलपाईगुड़ी : सोमवार को संपन्न त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में इस बार चाय-वलय से मतदान का प्रतिशत कम रहा. इसको लेकर विभिन्न राजनैतिक दलों के नेता चिंतित हैं. हालांकि राज्य सरकार ने मतदान के दिन को सवैतनिक छुट्टी की घोषणा कर दी थी.
चाय श्रमिक संगठन के नेताओं का मानना है कि न्यूनतम मजदूरी का लागू नहीं होना और सत्तासीन दल की ओर से चुनाव के पहले और बाद में हिंसा का माहौल के चलते कम श्रमिकों ने इस बार मतदान किया. वहीं, बेहतर काम की तलाश में काफी संख्या में श्रमिक अन्य राज्यों को चले गये हैं. मतदान के लिये इन्हें घर लौटना गवारा नहीं हुआ. यही वजह है कि इस बार वर्ष 2013 की तुलना में कम मतदान हुआ है.
जलपाईगुड़ी जिले में 2013 में हुए पंचायत चुनाव में माल ब्लॉक में 84.20 प्रतिशत मतदान हुआ था. लेकिन इस बार यहां 79.70 प्रतिशत मतदान हुआ. वहीं, 2013 में माटियाली ब्लॉक में 82.53 प्रतिशत मतदान हुआ था जबकि इस बार 80.14 प्रतिशत मतदान हुआ. नागराकाटा में इसके पहले 80.97 प्रतिशत मतदान हुआ था जबकि इस बार 78.14 प्रतिशत मतदान हुआ. उधर, अलीपुरद्वार जिले के कुमारग्राम ब्लॉक में इसके पहले 84.01 प्रतिशत मतदान हुआ था जबकि इस बार 83.51 प्रतिशत मतदान हुआ. मदारीहाट ब्लॉक में इसके पहले 80.24 प्रतिशत मतदान हुआ था जबकि इस बार यह 75.75 प्रतिशत रहा. कालचीनी ब्लॉक में इसके पहले 80.58 प्रतिशत मतदान हुआ था जबकि इस बार यह 77.54 प्रतिशत रहा.
मतदान के पूर्व व बाद में हिंसा व न्यूनतम मजदूरी भी बनी वजह
चाय बागान इलाकों में हुए कम मतदान के बाबत कांग्रेस की एनयूपीडब्लू के राज्य महासचिव मणिकुमार दर्नाल ने बताया कि वामफ्रंट के कार्यकाल में आज की तुलना में कम संत्रास हुआ था. चुनाव से पहले खूनी संघर्ष, बमबाजी और नामांकन जमा देने में बाधा देने जैसी घटनाओं के चलते भी श्रमिक इस बार कम संख्या में मतदान देने पहुंचे. हालांकि न्यूनतम मजदूरी दर का लागू नहीं होना भी एक अहम कारण रहा है. उधर, माकपा के राज्य सचिव मंडलीय सदस्य और सीटू के राज्य नेता जियाउर आलम ने बताया कि सत्तासीन दल की ओर से संत्रास इसकी एक प्रमुख वजह है.
लेकिन उससे भी बड़ी वजह श्रमिकों का अन्य राज्यों को चले जाना है. भाजपा से मदारीहाट के विधायक मनोज तिग्गा ने माकपा की व्याख्या की पुष्टि करते हुए कहा कि हजारों की संख्या में चाय श्रमिक सपरिवार भूटान, नेपाल, दिल्ली, केरल जैसे राज्यों को चले गये है. वे अब मतदान के लिये वापस नहीं आना चाहते हैं. अन्य राज्य में उन्हें न्यूनतम मजदूरी 400-550 रुपए मिल रहे हैं. ऐसी कमाई को छोड़कर वे क्यों चाय बागान की नौकरी करना चाहेंगे जहां न्यूनतम मजदूरी तक निश्चित नहीं है.
उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले और मतदान के दिन जिस तरह से हिंसा का तांडव हुआ उससे भी श्रमिक कम संख्या में बूथों तक पहुंचे. इस व्याख्या का तृणमूल से विधायक और चाय बागान तृणमूल कांग्रेस मजदूर यूनियन के केंद्रीय महासचिव शुक्रा मुंडा ने भी समर्थन करते हुए कहा कि राज्य सरकार डुवार्स के बंद और रुग्ण चाय बागानों में दो रुपए प्रति किलो चावल व गेंहू के अलावा नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवा, पेयजल की सुविधाएं दे रही है. इसके बावजूद बहुत से श्रमिक अब अन्य राज्यों में काम कर रहे हैं. इसका भी असर रहा है.
इंडियन टी एसोसिएशन की डुवार्स शाखा के सचिव सुमंत्र गुहा ठाकुरता और इंडियन टी प्लांटर्स एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार अमृतांशु चक्रवर्ती ने बताया कि जब बागान बंद थे तब काफी तादाद में श्रमिक बाहर चले गये हैं.
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