दार्जिलिंग के जीएनएलएफ प्रवक्ता वाइ लामा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि 2005 के 6 दिसंबर को केंद्र सरकार, राज्य सरकार व सुभाष घीसिंग के प्रयास से छठी अनुसूची को लेकर एक बिल पर हस्ताक्षर भी हुआ था. इसके बाद 2007 में तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने जब इस बिल को संसद में इसे पेश किया तब पहाड़ पर कुछ नेताओं ने छठी अनुसूची को लेकर आपत्ति जताई थी. इसके बाद से अबतक यह बिल राज्यसभा व लोकसभा में लटका हुआ है. उन्होंने बताया कि छठी अनुसूची लागू नहीं होने से पहाड़ के लोगों को काफी नुकसान पहुंचा है.
बागराकोट इलाके के जीएनएलएफ के कार्यकारी अध्यक्ष गोमड़े लामा ने कहा कि पहाड़ की जनता समझ चुकी है कि मोरचा एवं जाप के लिए पहाड़ के लोगों को सुरक्षा या अधिकारी दिलाना आसान नहीं है. केवल जीएनएलएफ ही छठी अनुसूची के माध्यम से सभी को अधिकार दिला सकेगी. विभिन्न इलाकों में जनता के साथ जन संपर्क बढ़ाया जा रहा है एवं छठी अनुसूची के लाभ के बारे में समझाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि छठी अनुसूची के माध्यम से हम अलग राज्य की मांग पर आगे बढ़ सकेंगे. जीएनएलएफ नेता विकास थापा, दीपक अधिकारी ने कहा कि पहाड़ के निमंग सांतार व चुईखिम आदि इलाकों से कार्यकर्ता इस सभा में शामिल हुए. इन्होंने बताया कि छठी अनुसूची किसी जाति या पार्टी के लिए नहीं है. छठी अनुसूची के माध्यम से पहाड़ का विकास होगा. आमलोगों का भी विकास होगा. इस जनसभा में जीएनएलएफ ने अपनी ताकत दिखायी. यहां भारी संख्या में पार्टी समर्थक आये थे.