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वन विभाग बना रहा है आयुर्वेदिक उत्पाद

जलपाईगुड़ी : प्राकृतिक पौधों से वन विभाग द्वारा तैयार आयुर्वेदिक सामग्री पश्चिम बंगाल के अलावा बाहरी राज्य में भी निर्यात किये जा रहे हैं. वन दफ्तर के नॉन-टिंबर फॉरेस्ट प्रोड्यूस के अंतर्गत 40 प्रजाति की आयुर्वेदिक सामग्रियां तैयार की जा रही है. जिससे हर साल वन विभाग की आय बढ़ने के साथ ही इससे लोगों […]

जलपाईगुड़ी : प्राकृतिक पौधों से वन विभाग द्वारा तैयार आयुर्वेदिक सामग्री पश्चिम बंगाल के अलावा बाहरी राज्य में भी निर्यात किये जा रहे हैं. वन दफ्तर के नॉन-टिंबर फॉरेस्ट प्रोड्यूस के अंतर्गत 40 प्रजाति की आयुर्वेदिक सामग्रियां तैयार की जा रही है. जिससे हर साल वन विभाग की आय बढ़ने के साथ ही इससे लोगों को स्वनिर्भर होने का मौका भी मिल रहा है.

चालू साल से वन विभाग ने एंटीसेप्टिक क्रिम, कॉसमेटिक व हर्बल प्रोडक्ट तैयार करना शुरू किया है. इस बारे में नॉन टिंबर फॉरेस्ट प्रोड्यूस के डीएफओ (एनटीएफपी) डी एस शेरपा ने कहा कि आयुर्वेदिक सामग्रियों की मांग दिनों दिन बढ़ रही है. इसके साथ ही वन की आय व वनांचल इलाके के फॉरेस्ट प्रोटेक्शन कमेटी की आय बढ़ रही है. वन विभाग सूत्रों के अनुसार, वन दफ्तर के नॉन-टिंबर फॉरेस्ट प्रोजेक्ट के तहत 2006 से आयुर्वेदिक सामग्रियों को तैयार करने का काम शुरू हुआ था.

जंगल से तुलसी, काला मेघ, ऐलोविरा, अर्जुन , अर्शगंधा, सिंकोना समेत विभिन्न पौधों के पत्ते व अन्य अंश संग्रहित कर उससे त्रिफला,आंवला,अर्शगंध समेत 40 तरह के पाउडर और विभिन्न सामग्रियां तैयार की जा रही है. वन विभाग के एनटीएफपी के माध्यम से सिलीगुड़ी के बैंगडूबी के ताइपु में इसकी प्रक्रियाकरण का काम शुरू हुआ. उत्तर बंगाल के दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी व कूचबिहार के वनांचल के फॉरेस्ट प्रोटेक्शन व दक्षिण बंगाल के 36 फॉरेस्ट प्रोटेक्शन कमेटियों से उक्त पौधों के विभिन्न अंश संग्रहित किये जाते है. इसके अलावा उद्यान व पालन विभाग एवं चाय बागान से भी विभिन्न उपादान संग्रहित किये जाते हैं.

फॉरेस्ट प्रोटेक्शन कमेटी के सदस्य उद्यान व पालन विभाग की सहायता से विभिन्न इलाके में सिंकोना अर्शगंधा की खेती कर रहे हैं. इससे वे स्वनिर्भर भी हो रहे हैं. उनकी आय बढ़ रही है. 2011-12 में 45 लाख रुपये व 2012-13 में 65 लाख रुपये की आय वन विभाग को हुयी है. 2013-14 के जनवरी तक 42 लाख रुपये की आय हुयी है.

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