दार्जिलिंग से लौटकर विपिन राय
दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर जारी बेमियादी बंद दो महीने पूरे करने की ओर बढ़ रहा है. इतने लंबे बंद के बाद भी किसी प्रकार की कोई ढील कहीं नहीं दिखने को मिल रही है. सिलीगुड़ी से यदि आप दार्जिलिंग के लिए रवाना हों तो सुकना के बाद से ही बंद का असर दिखना शुरू हो जायेगा. सुकना में इक्का-दुक्का दुकानें खुली मिल जाती हैं, लेकिन रोहिणी पार करने के बाद आपको एक भी दुकान खुली नहीं मिलेगी.
आम लोगों के लिए यह भले ही आश्चर्य हो कि 50-55 दिन बाद भी आखिर कोई हड़ताल या बंद इतना जोरदार कैसे हो सकता है, लेकिन गोजमुमो तथा आंदोलनकारियों द्वारा पूर्ण बंद की जो रणनीति बनायी गयी है, उसे देखते हुए आश्चर्य जैसा कुछ भी नहीं है. दुकानें कहीं भी खुली नहीं मिलेंगी. पुलिस व प्रशासन की गाड़ियों को छोड़ दिया जाये, तो वाहनों की आवाजाही ठप है. बीच-बीच में एम्बुलेंस अथवा शव वाहन लिखे इक्का-दुक्का वाहन आते-जाते देखे जा सकते हैं. इसके अलावा कोई गाड़ी पहाड़ पर नहीं चल रही है.
ऐसे माहौल में दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में किसी भी स्थान पर जाना इतना आसान नहीं है. कर्सियांग, कालिम्पोंग, मिरिक के साथ ही पहाड़ पर कहीं भी आने-जाने के लिए एक विशेष ‘पास’ की जरूरत पड़ती है. इस पास को गोजमुमो द्वारा जारी किया जाता है. विमल गुरूंग के नेतृत्व वाले गोजमुमो ने जरूरतमंदों को पास जारी करने के लिए अपने पातलेबास स्थित कार्यालय में एक विशेष सेल का भी गठन कर रखा है. जब हम पातलेबास पहुंचे, तो वहां काफी लोग पहाड़ से नीचे यानी सिलीगुड़ी आने के लिए विशेष पास पाने हेतु चक्कर काट रहे थे. गोजमुमो नेताओं से जब इस बारे में बातचीत की गयी तो उन्होंने बताया कि जरूरतमंदों को आवश्यकतानुसार गोजमुमो के पैड पर यह पास जारी किया जाता है. न केवल दार्जिलिंग, बल्कि कर्सियांग तथा कालिम्पोंग जैसे पहाड़ के बड़े शहरों में स्थानीय गोजमुमो नेतृत्व को भी पास जारी करने का अधिकार है. इस मुद्दे पर गोजमुमो के सहायक सचिव विनय तामांग ने कहा कि वे लोग सिर्फ जरूरतमंदों को ही पास दे रहे हैं. किसी को इलाज के लिए बाहर जाना पड़े या कोई बच्चा पढ़ाई के लिए बाहर जाना चाह रहा हो, तो उन्हीं को स्थानीय गोजमुमो नेतृत्व की अनुशंसा पर पास जारी किया जाता है.
बंद की कमान नारी मोर्चा के हाथों में
इधर, दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में बंद को सफल बनाने का यदि पूरा श्रेय किसी को जाता है, तो वह गोजमुमो के महिला संगठन नारी मोर्चा को है. दरअसल सड़क पर कहीं भी गोजमुमो द्वारा पिकेटिंग ही नहीं की जा रही है. बंद की कमान मुख्य रूप से नारी मोर्चा के हाथों में है. यदि कोई वाहन आता-जाता दिख जाये, तो नारी मोर्चा की महिलाएं तुरंत गोजमुमो का झंडा तथा राष्ट्रीय झंडा लेकर पहुंच जाती हैं. कर्सियांग में पिकेटिंग कर रही नारी मोर्चा की नेता रीतू रोका ने बताया है कि बगैर गोजमुमो के पास के किसी भी वाहन को आने-जाने की अनुमति नहीं है. इतना ही नहीं, जिस वाहन को गोजमुमो द्वारा पास जारी किया जाता है, उसमें गोजमुमो का झंडा लगाना भी अनिवार्य है. प्रेस के वाहनों की भी कड़ी जांच की जाती है. जब तक नारी मोर्चा की सदस्य संतुष्ट न हो जायें, तब तक किसी को आगे जाने की अनुमति नहीं मिलती है. दरअसल, नारी मोर्चा ने वाहनों पर नजर रखने के लिए हरेक 10 किलोमीटर में एक कमेटी का गठन कर दिया है. एक कमेटी में 30 से 40 महिलाएं होती हैं. इसके अलावा महिलाओं के समय को भी बांट दिया गया है. नारी मोर्चा द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार एक ग्रुप की महिलाओं द्वारा छह घंटे की पिकेटिंग की जाती है. उसके बाद दूसरे ग्रुप की महिलाएं मोर्चे पर डट जाती हैं. 24 घंटे पिकेटिंग की जाती है. इसके अलावा सड़क पर विभिन्न स्थानों पर बेरिकेट भी लगाये गये हैं. गोजमुमो तथा राष्ट्रीय झंडे को बीच सड़क पर लगाकर सड़क को बंद कर दिया गया है. सिलीगुड़ी से रोहिणी के आगे तक किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती है. रोहिणी के बाद कर्सियांग से ठीक पहले से नारी मोर्चा की पिकेटिंग देखने को मिल जायेगी.
अभी खत्म नहीं हुआ राशन-पानी
पहाड़ पर 54 दिनों से बेमियादी बंद के कारण राशन-पानी की किल्लत की बात भले ही होती रही हो, लेकिन पहाड़ के लोग ऐसा नहीं मानते. चौरास्ता पर जब लोगों से बातचीत की गयी तो सभी ने कहा कि खाने-पीने की कोई कमी नहीं है. आखिर खाद्य सामग्री कहां से आ रही है? इस सवाल पर काफी लोगों ने कहा कि सब महाकाल की कृपा है. ऐसा कह कर लोग इस प्रश्न को टालने की कोशिश कर रहे थे. हालांकि कुछ लोग ऐसे भी मिले जो पुराने अनुभवों की दुहाई दे रहे थे. इसी में से महेंद्र गट्टानी तथा पवन अग्रवाल का नाम शामिल है. वर्षों से यह लोग दार्जिलिंग में रह रहे हैं. इनका कहना है कि पहाड़ पर कब बंद का आह्वान हो जाये, कोई नहीं कह सकता. इससे पहले भी कई बार लंबा बंद चला है. इन अनुभवों को ध्यान में रखते हुए पहाड़ पर सभी लोग सब्जी को छोड़ कर चार से पांच महीने का खाने-पीने का स्टॉक अपने घर में रखते हैं. इस बार भी जब बंद का आह्वान हुआ तो उनके घर में भी चार से पांच महीने का खाने-पीने का स्टॉक था. दोनों ने कहा कि अभी और एक-डेढ़ महीने खाने-पीने की समस्या नहीं रहेगी.
दवा दुकानों को छोड़ सभी दुकानें बंद
पहाड़ पर सिर्फ दवा दुकानें ही आपको खुली मिलेंगी. बंद का आलम यह है कि मोटरसाइकिल तक नहीं चलने दी जा रही है. चाय की दुकानें भी खुली नहीं मिलेंगी. बंद के ऐसे माहौल में भी दार्जिलिंग का चौरस्ता गुलजार बना हुआ है. यहां हमेशा ही लोगों की भीड़ लगी रहती है. चौरस्ता के खुले मंच पर ही गोजमुमो के तीन सदस्य आमरण अनशन कर रहे हैं. मंच के आसपास गोजमुमो समर्थकों के अलावा आम लोगों की भीड़ लगी रहती है. अगर कहा जाये तो बंद के इस माहौल में चौरस्ता टाइमपास का अड्डा बन गया है. यहां आगंतुकों के लिए काफी कुर्सियां लगायी गयी हैं. कार्यालय तथा दुकानें बंद होने से यहां के सभी लोगों के पास काफी वक्त है. ऐसे लोग यहां पहुंचते हैं और देर तक डटे रहते हैं.