सिलीगुड़ी. अभी देश के करीब सभी केंद्रीय एवं राज्यों के शिक्षा बोर्ड के नतीजे आ चुके हैं. इसमें बच्चों ने शानदार सफलता हासिल की है. यहां तक कि 100 प्रतिशत नम्बरों के साथ भी काफी बच्चे पास हुए हैं. यह निश्चित ही अपने आप में एक मिशाल है. इसके अलावा काफी संख्या में छात्र – छात्राओं ने 90 प्रतिशत या इसके अधिक नंबर हासिल किये हैं.
खास बात यह भी है कि छात्रों के मुकाबले छात्राओं को ज्यादा सफलता मिल रही है. कुछ दिनों पहले आइएएस फाइनल परीक्षा के नतीजे में भी देश की बेटी एक नंबर पर रही है.यह दर्शाता है कि बेटियों को अगर हम ज्यादा मौका दें तो वह बेटों के मुकाबले ज्यादा सफल हो सकती है. यह बहुत ही जबरदस्त खुशी एवं उम्मीद की स्थिति है.यह बातें सिलीगुड़ी इंफोलाइन के संस्थापक अशोक अग्रवाल ने कही.वह प्रभात खबर से विशेष बातचीत कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि जहां एक ओर बच्चों को बड़ी सफलता मिल रही है, वहीं दूसरी और जिन बच्चों के परिणाम निराशाजनक रहे उनके लिए हमें सोचने की अत्यन्त आवश्यकता है.परीक्षा में विफलता की पीड़ा असहनीय होती है. कई विद्यार्थी इसे बर्दाश्त नहीं कर पाने पर आत्महत्या तक कर लेते हैं. हम आत्महत्या जैसी दुखदायी खबरें रोजाना सुन रहे हैं. श्री अग्रवाल ने आगे कहा कि इस समस्या का हल निकल सकता है. बच्चों के लालन-पालन एवं बड़े होने के बीच बच्चे, शिक्षक एवं अभिभावक तीन महत्वपूर्ण कड़ी हैं. इन तीनों में एक भी कड़ी ढीली होने पर पूरी स्थिति ही गड़बड़ा जाती है. प्ले स्कूल में दाखिले के समय से ही बच्चों में तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है. अभिभावकों में कम उम्र में ही बच्चों को दाखिला करवाने की होड़ सी लगी रहती है. आपस में माता – पिता एक दूसरे से पूछते रहते है कि तुम्हारा बच्चा कितने साल का है. उन्होंने कहा कि मैंने कई माता-पिताओं को सलाह दी कि इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता की आपका बच्चा 16 साल में 10वीं की परीक्षा दे या 17 में. हम उनकी उम्र कभी नहीं पूछते हैं. अभिभावकों में दिन रात एक दूसरे के बच्चे से तुलना करना,उस पर दबाव बनाना आदि से बच्चे में तनाव होना स्वाभाविक ही है. शिक्षक भी कभी – कभी बच्चे के साथ तालमेल बैठाने में पूरी तरह सक्षम नहीं पाते हैं.
उन्होंने कहा कि अभिभावकों को यह जरूर समझना होगा कि छात्र के जीवन से बढ़कर कोई भी परीक्षा इतनी बड़ी नहीं होती है.परीक्षा जीवन का एक पड़ाव मात्र है. ऐसी बहुत सी परीक्षाऐं हमें जीवनभर देनी पड़ती है. सिर्फ पढ़ाई ही सब कुछ नहीं है. यह भी हो सकता है कि ईश्वर ने आपको किसी और बड़े उद्देश्य के लिए बनाया हो. यह उद्देश्य आपको अपने दिल पर हाथ रखकर ढूंढ़ना होगा. सबसे बड़ी बात यह है कि आपकी रूचि किसमें है. यह आप अपने दिल से पूछें. आपको क्या करना अच्छा लगता है, यह आप पर निर्भर है न कि आपके माता- पिता या दोस्तों पर. श्री अग्रवाल ने कहा कि ज्यादातर छात्र अपने दिल की आवाज़ न सुनकर दूसरे से प्रभावित होकर गलत विषय में दाखिला ले लेते है एवं असफल हो जाते हैं. दुर्भाग्यवश हमारे यहां अभी तक कैरियर काउंसलिंग की अच्छी व्यवस्था नहीं है.
उन्होंने कहा कि किसी एक परीक्षा में असफलता को चैलेंज के हिसाब से लेना चाहिए. यह जानने की कोशिश करें कि आपकी रूचि किस काम में है. ऐसा भी हो सकता है आपकी पढ़ाई में रूचि ही न हो और आप पढ़ाई में ही उलझे रहते हैं. यदि आपकी रूचि खेलकूद, म्यूजिक, एक्टिंग या गाने आदि के क्षेत्र में है तो आप उसी क्षेत्र में आगे बढ़ें. यह आपको सफलता के रास्ते में आगे ले जाएगी. ऐसा हो ही नहीं सकता है कि किसी व्यक्ति में अपनी कोई रूचि न हो. अगर आप अपने रूचि के अनुसार कैरियर चुनेंगे तो जिंदगी में बहुत तेजी से आगे बढ़ेंगें.माता पिता अपने बच्चों पर अपनी खुद की इच्छा पूरी करने के लिए उसे डॉक्टर, इंजीनियर,सीए या आइएएस बनने के लिए दवाब न डालें. मैं कुछ ऐसे विख्यात व्यक्तियों के बारे में बताना चाहूंगा जिन्होंने अपनी रूचि के अनुसार कार्य करने के जूनून में पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दी. एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स स्कूल ड्रॉपआउट रहे. क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर सिर्फ 10th क्लास, विराट कोहली 12th क्लास, बॉक्सिंग में ओलिंपिक पदक विजेता मैरी कॉम स्कूल ड्राप आउट, कटरीना कैफ दसवीं पास हैं.
आमिर खान 12वीं तक ही पढ़े. इसका मतलब यह कदापि न समझे की सफलता के लिए उच्च शिक्षा जरुरी नहीं है. बल्कि मेरे कहने का मतलब है कि किसी कारणवश अगर पढ़ाई में सफलता न भी मिले तो निराश होने की बिलकुल भी आवश्यकता नहीं है. समाज के शिक्षित व्यक्तियों की भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे सप्ताह में या महीने में एकबार अतिथि शिक्षक के रूप में किसी स्कूल या कॉलेज में जाकर बच्चों में अपने अनुभव बाटें एवं उन्हें प्रेरणा दें. माता- पिता एवं शिक्षकों की जिम्मेदारी है की वे विशेष रूप से असफल छात्रों से सकारात्मक बातें करें एवं उन्हें समझाएं. ऐसा कर हम सही मायने में मानसिक अवसादग्रस्त बच्चों की मदद कर सकते हैं.