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पांडुलिपियों व किताबों का डिजिटलीकरण
1784 में हुई थी एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना इसके पास 100 साल से भी ज्यादा पुरानी लगभग 52,000 पांडुलिपियां कोलकाता : महानगर में 233 साल पुरानी एशियाटिक सोसायटी ने समय के साथ चलने के लिए अपनी 50 हजार से ज्यादा पांडुलिपियों, एक लाख से अधिक पत्रिकाओं तथा प्रकाशनों का डिजिटलीकरण करना शुरू कर दिया है. […]
1784 में हुई थी एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना
इसके पास 100 साल से भी ज्यादा पुरानी लगभग 52,000 पांडुलिपियां
कोलकाता : महानगर में 233 साल पुरानी एशियाटिक सोसायटी ने समय के साथ चलने के लिए अपनी 50 हजार से ज्यादा पांडुलिपियों, एक लाख से अधिक पत्रिकाओं तथा प्रकाशनों का डिजिटलीकरण करना शुरू कर दिया है. एशियाटिक सोसायटी के महासचिव डॉ सत्यब्रत चक्रवर्ती ने कहा कि गत वर्ष दिसंबर में शुरू हुई डिजिटलीकरण की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी की जायेगी. श्री चक्रवर्ती ने कहा कि पहले चरण में केवल पुरानी पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जायेगा. कोलकाता की इस प्रमुख संस्था ने किताबों और पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण करने में देरी कर दी. यहां तक कि मुंबई की 211 वर्ष पुरानी एशियाटिक सोसायटी ने 2015 में ही एक लाख किताबों और 2,500 पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण शुरू कर दिया था.
एशियाटिक सोसायटी की स्थापना सर विलियम जोन्स ने 15 जनवरी 1784 को थी. इसके पास 100 साल से भी ज्यादा पुरानी करीब 52,000 पांडुलिपियां हैं, जिनका पहले चरण में डिजिटलीकरण किया जायेगा. इनमें कुरान की पांडुलिपि और पादशानामा पांडुलिपि भी शामिल हैं, जिन पर शहंशाह शाहजहां का हस्ताक्षर है. एशियाटिक सोसायटी के पास ऐतिहासिक और भारत से संबंधित अन्य कामों का बडा संग्रह है, जिसमें संस्कृत, अरबी, पर्शियन और उर्दू की पांडुलिपियां भी शामिल हैं. श्री चक्रवर्ती ने कहा कि पहले चरण के डिजिटलीकरण के जून में समाप्त होने की संभावना है और दूसरे चरण का काम जुलाई के अंत तक शुरू होगा.
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