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दामन में लगे दाग को अपने दम से धोया
रोटी व अच्छे कपड़ों की चाह ने देह व्यापार के दलदल में पहुंचा दिया था अब कैंटीन चला कर अपना परिवार पाल रही मल्लिका कोलकाता की संस्था जबाला ने दिखाई जीने की नयी राह कोलकाता : घर आखिर घर होता है. चाहे अपने घर में सूखी या बासी रोटी ही खाने को क्यों न मिले. […]
रोटी व अच्छे कपड़ों की चाह ने देह व्यापार के दलदल में पहुंचा दिया था
अब कैंटीन चला कर अपना परिवार पाल रही मल्लिका
कोलकाता की संस्था जबाला ने दिखाई जीने की नयी राह
कोलकाता : घर आखिर घर होता है. चाहे अपने घर में सूखी या बासी रोटी ही खाने को क्यों न मिले. माता-पिता की डांट या भाई की फटकार भी अपने घर में अच्छी होती है. यह सबक जब सीखा तो बहुत देर हो गयी, जिंदगी तब तक अंधेरे गलियारों में घसीटती रही. इन अंधेरी गलियों में मान-अपमान का मतलब समझ में आया. अच्छा खाना व महंगे कपड़े पहनने की चाहत में क्या से क्या हो गया. यह दास्तां सुनाते-सुनाते मल्लिका बेग (नाम बदला हुआ, उम्र 22 साल) की आंखें भर आयीं. उसके चेहरे से पछतावा झलक रहा था. अपने आंसूओं को पोंछते हुए उसने कहा कि उसका घर बारासात के दूरदराज इलाके में है. उसके पिताजी दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, जिससे मात्र 100-150 रुपये ही रोज की आमदनी होती थी. वे अक्सर घर में मारधाड़ पर उतारू रहते थे. घर में 4 बहन व 2 भाई हैं. अच्छा भोजन, अच्छे कपड़े, गहने पहनने के लिए मन तरस जाता था.
अभाव के कारण मन को काफी मारना पड़ता था. ऊपर से पिताजी के खराब व्यवहार के कारण उसे घर छोड़ना पड़ा. घर आने वाली पड़ोस की एक महिला अक्सर उसे कहती थी कि तुम मेरे साथ चलो, तुम्हें अच्छा काम दिलाऊंगी. तुम्हें सब कुछ मिलेगा. उसके बहकावे में आकर वह घर से निकली अाैर पहुंच गयी सीधे मुम्बई. काम पाने व अपनी ख्वाइशों को पूरा करने की उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी. मल्लिका कहती है कि पड़ोसन को अपनी दोस्त समझकर वह उसके साथ चली गयी लेकिन वहां जाकर वह दलदल में फंस गयी. जिस पर यकीन किया उसी ने उसे गलत काम करने के लिए मजबूर किया. वह ऐसी विवश हो गयी कि उसे लाैटने के लिए फिर कोई रास्ता नजर नहीं आया. वह अपना घर छोड़ चुकी थी, मुम्बई (अंधेरी) में किसी को जानती नहीं थी.
मजबूरन उसे वहां नर्क की जिंदगी जीनी पड़ी. उल्लेखनीय है कि मानव तस्करी, विशेषकर महिलाओं की तस्करी देश की सबसे बड़ी समस्या है. इसमें बंगाल भी अछूता नहीं है. पश्चिम बंगाल की सीमा बांग्लादेश और नेपाल को छूती हैं. ऐसे ही जाल की शिकार मल्लिका जैसी कई लड़कियां आये दिन बनती हैं, जिसे नाैकरी व शादी के प्रलोभन दिखाकर देह व्यापार में झोंक दिया जाता है, जहां से उनका लाैटना नामुमकिन हो जाता है. मल्लिका ने अब अपने जीवन को एक नया मकसद दिया है
ट्रैफिकिंग से बचायी गयी लड़कियों के पुनर्वास के लिए काम कर रही संस्था जबाला की निदेशक बैताली गांगुली ने बताया कि उनकी संस्था एंटी-ट्रैफिकिंग अभियान चलाने के साथ बच्चों के संरक्षण, विशेषकर लड़कियों के सशक्तीकरण के लिए काम कर रही है. देह व्यापार के चंगुल से बचायी गयी लड़कियों के पुनर्वास के लिए उन्हें शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य व कल्चर थेरेपी के जरिये एक सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए तैयार किया जाता है, जिससे वे फिर से उस दलदल में न पड़ जाएं. कई ऐसी लड़कियां हैं, जो पुलिस संरक्षण के बाद घर नहीं जाना चाहती हैं.
उन्हें समाज दुत्कार देता है. संस्था की ओर से उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाती है. मल्लिका भी उन्हीं में से एक है. पुलिस व कोर्ट कस्टडी के बाद जब उसे यहां लाया गया तो वह काफी तनाव में थी. वह जीवन के प्रति काफी निराश थी. जबाला में काउंसेलिंग के बाद उसे कैटरिंग, ज्वेलरी डिजाइन व कराटे की ट्रेनिंग दी गयी. आज वह अपने पैरों पर खड़ी है. वह अपनी कैन्टीन चलाकर अपने पूरे परिवार का खर्च वहन कर रही है. मल्लिका कहती है कि जो लड़कियां पढ़ी-लिखी नहीं हैं आैर बहुत गरीबी की जिंदगी जीती हैं, वे दलालों के चंगुल में आसानी से आ जाती हैं.
लड़कियों से मेरा यही संदेश है कि कभी भी भी किसी के बहकावे में या प्रलोभन में न आएं. ज्यादा चाहत रखने से भी व्यक्ति कुचक्र में पड़ जाता है. अगर घर में झगड़ा भी हो तो किसी अन्य पर वे भरोसा न करें, क्योंकि अपने घर जैसा सम्मान कहीं नहीं है. अपने हुनर पर भरोसा करें व खुद कुछ करने की काबिलीयत अपने अंदर पैदा करें. मैं चाहती हूं कि कोई भी लड़की इस दलदल में न फंसे. आज वह कमा रही है, परिवार को देख रही है तो उसका परिवार भी उसकी काफी इज्जत करता है. जीवन को बदलने में जबाला ने काफी सपोर्ट किया.
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