कोलकाता. महारास लीला जीवात्मा और परमात्मा की मिलन लीला है. महारास में जो रस था, वह सामान्य रस नहीं था. वो कोई सामान्य नाचनेवालों का काम नहीं था, जिसको प्राप्त करने के लिए गोपियों को सर्वस्व त्यागना पड़ा था. सर्वस्व का अर्थ: धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थों का त्याग. मनुष्य जीवन में संसार के सभी प्रकार के रस के आनंद को भोगता है किंतु जब वही आनंद प्रभु के प्रति स्वयं को समर्पण करने के भाव को ही ‘महारास’ कहा गया है.
शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं, जो भगवान कृष्ण-गोपियों के महारास लीला का श्रद्धा के साथ सुनता है, उसे भगवान के चरणों में पराभक्ति की प्राप्ति होती है और वह बहुत शीघ्र ही हृदय रोग-काम-विकार से छुटकारा पा जाता है. महारास के पश्चात् लाभ के अवतार कंश का वध कर भगवान कृष्ण ने अपने माता-पिता व राजा अग्रसेन एवं उनके साथियों को कारावास से मुक्त करवाया.
भगवान की अलौकिक लीलाओं को जब रुक्मिणी ने सुना तब प्रभु श्री कृष्ण को ही पति स्वरूप में प्राप्त करने की इच्छा रखी व अपने मन के भाव को गुरु द्वारा श्रीकृष्ण तक पहुंचाया की. मेरे भ्राता श्री के दबाव से मेरे पिता मेरा विवाह शिशुपाल के संग कर रहे हैं किंतु आप के चरित्र को श्रवण कर मैंने मन ही मन आपको ही पति रूप में स्वीकार कर लिया व धर्म कर्म अनुसार कन्या जीवन में विवाह एक बार ही करती है इस जन्म में आपको पति रूप में मान लिया, चूंकि आप तो जगत पति हो व मैं साधारण मनुष्य, किंतु भक्तों को स्वीकार करना आपका भी कर्तव्य है अर्थात है प्रभु आप मुझे स्वीकार करें अन्यथा मैं किसी और की नहीं हो सकती. प्रभु ने समस्त राजाओं को परास्त कर रुक्मिणी का हरण कर उससे विवाह किया, भगवान ने शिक्षा दी की जो स्वयं को पूर्ण रूप से मेरे प्रति समर्पित कर दें मैं उसके लिए युद्ध कर भी उसे स्वीकार कर लेता हूं. ये बातें टैगोर कैसल टेनेंट एसोसिएशन, राजबाड़ी एकता संघ, टैगोर कैसल निवासी वृंद, त्रिमूर्ति महिला समिति व पचीसिया एेकेडमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा पर प्रवचन करते हुए पथुरिया घाट स्थित बिन्नानी सभागार में पंडित गोपालजी व्यास ने कहीं. इस अवसर पर वरिष्ठ उद्योगपति व उषा मार्टिन के प्रबंध निदेशक राजीव झवर व्यासपीठ से विशेष आशीर्वाद प्राप्त किया. मंच पर गोपाल जी के पूज्य गुरूवर भागवत केशरी श्री गोकुल जी-पार्वती व्यास माता पिता श्री शिव कुमार-कमला देवी का स्वागत कर यजमान द्वारा सम्मान किया गया. श्री कृष्ण-रुक्मिणी विवाहोत्सव प्रसंग झांकी पेश की गयी. प्रसंग में श्री कृष्ण रूप में आचार्य श्री राजीव-अंजू किराड़ू पुत्री सुकुमारी हर्षिता व विजय-चंद्रा पुत्री सुकुमारी आसिकार ने रुक्मिणी रूप में नाट्य कर विवाहोत्सव में श्रद्धालुओं का मन भक्तिमय लुभाया. आचार्य पंडित राजीव किराडू (ज्योतिषाचार्य) के आचार्यत्व में 111 विद्वान ब्राह्मणों द्वारा भागवत के मूल पाठ आरंभ किया गया. मंत्र शिरोमणि पंडित विमल किशोर किराड़ू (गोपू), पंडित राहुल, पंडित पंकज थानवी जी के सानिध्य में पूजन आरंभ हुआ. कार्यक्रम को सफल बनाने में घनश्याम-शोभा लाखोटिया, विनोद माहेश्वरी, विजय व्यास (मनू), मनीष व्यास, नन्द किशोर किराडू, अरविन्द किराड़ू, बल्लभ थानवी, रामकुमार व्यास, बिट्ठल थानवी व अन्य भक्तगण सक्रिय रहे.