कोलकाता: मौलाना अबुल कलाम आजाद को देश की गंगा-जमुनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व था. वह न केवल हिंदू-मुसलिम एकता के सूत्रधार थे, बल्कि स्वतंत्र भारत के शैक्षणिक ढांचा को गढ़ने वाले एक महानायक भी थे.
शनिवार को ईरानी सोसाइटी द्वारा मौलाना अबुल कलाम आजाद की 125वीं जन्मशती कार्यक्रम के उद्घाटन भाषण में पूर्व मुख्य न्यायाधीश अल्तमश कबीर ने ये बातें कहीं. उन्होंने कहा कि वे एक प्रसिद्ध भारतीय मुसलिम विद्वान के साथ कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भी थे. उनका जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का में हुआ था. श्री कबीर ने आजाद के कार्यो पर प्रकाश डालते हुए बताया कहा कि स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कलाम बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे.
स्वतंत्रत भारत में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना उनके अविस्मरणीय कार्यो मे से एक है. सोसाइटी के अध्यक्ष आर एम चोपड़ा ने कहा कि मौलाना आजाद महात्मा गांधी के सिद्धांतों का समर्थन करते थे. उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के काफी कार्य किया. श्री चोपड़ा ने ईरानी सोसाइटी के कार्यो पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी सोसाइटी का उद्देश्य ईरानी कला व संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना है. मौके पर पूर्व विधानसभा स्पीकर व ईरानी सोसाइटी के प्रेट्रोन हाशीम अब्दुल हलीम ने स्वागत भाषण में कहा कि सोसाइटी ने अपने प्रयासों से एक अच्छी पुस्तकालय बनाया है, जिसमें ईरानी सभ्यता व संस्कृति की दुर्लभ पुस्तकें उपलब्ध है.
ये पुस्तकें शोध करने वाले छात्रों के लिए काफी उपयोगी होती है. धन्यवाद ज्ञापन सोसाइटी के महासचिव मो. मनसूर आलम ने किया. कार्यक्रम में अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति नाजिरुद्दीन साह, मौलान अबुल कलाम आजाद इंस्टीच्यूट ऑफ एशियन स्टडीज, कोलकाता के चेयरमैन सीताराम शर्मा, पूर्व जस्टिस अशोक गांगुली सहित बड़ी संख्या में संस्था से जुड़े लोग उपस्थित रहे. कार्यक्रम की शुरुआत में हेरिटेज स्कूल की छात्र-छात्रओं ने आमार जन्म भूमि गीत प्रस्तुत किया.