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तप के तेज बिना रूप का महत्व नहीं : राजनजी

जिसकी जवानी सध गयी हो, उसका बेड़ा पार है अपनी जवानी भगवान को चढ़ा दें, आप का कल्याण होगा हम रामजी के रामजी हमारे हैं सेवा ट्रस्ट की कोलकाता शाखा की ओर से नौ दिवसीय रामकथा पांचवें दिन भोजपुरी गायक भरत शर्मा के भजनों पर झूमे भक्त कोलकाता. तप से ही जीवन में निखार आता […]

जिसकी जवानी सध गयी हो, उसका बेड़ा पार है
अपनी जवानी भगवान को चढ़ा दें, आप का कल्याण होगा
हम रामजी के रामजी हमारे हैं सेवा ट्रस्ट की कोलकाता शाखा की ओर से नौ दिवसीय रामकथा
पांचवें दिन भोजपुरी गायक भरत शर्मा के भजनों पर झूमे भक्त
कोलकाता. तप से ही जीवन में निखार आता है. जब तक लोहे को आग पर तपाया नहीं जाता, उससे उपयोग लायक वस्तु नहीं बनायी जा सकती. यही कारण है कि आकार पाने के लिए लोहे को तपना ही पड़ता है. ‘बिनु तप तेज न रूप गोसाई.’ यानी कोई कितना भी सुंदर हो, लेकिन जब तक उसके चेहरे पर तप का तेज नहीं होता, उसके रूप का कोई महत्व नहीं होता.
तप की तीन अवस्थाएं होती हैं. बचपन, जवानी और बुढ़ापा. बचपन में पूरी ऊर्जा पांव में होती है. यही कारण है कि बच्चे शांत नहीं बैठते. वे घूमते ही रहते हैं. जवानी में पूरी ऊर्जा आलस में चली जाती है और वृद्धवस्था में पूरी ऊर्जा जिह्वा में चली आती है.
यदि युवा अवस्था में युवा आलस का त्याग कर अपना कर्त्तव्य करता है, तो उसका यही तप है, और यदि वृद्धावस्था में यदि मौन आ गया, तो समझियेगा कि आप के जीवन में तप आ गया. यदि आप के जीवन में कोई सदगुरु मिल गये, तो निश्चित ही आप उस ओर अग्रसर हो सकते हैं. आप को दिशा तो सदगुरु ही देंगे. रामकथा के पांचवें दिन अयोध्याकांड की कथा सुनाते हुए प्रेम मूर्ति पूज्य संत श्री राजनजी महाराज ने उक्त बातें कहीं. हम रामजी के रामजी हमारे हैं सेवा ट्रस्ट की कोलकाता शाखा द्वारा आयोजित नौ दिवसीय रामकथा में भक्तों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मानस के मध्य भाग की कथा आयोध्या कांड है, जो महत्वपूर्ण है.
बचपन में मन बस में नहीं रहता है और बुढ़ापे में शरीर बस में नहीं होता. जिसको जो बनना है, वह जवानी में ही बनता है और जिसको बिगड़ना है, वह जवानी में ही बिगड़ता है. जिसकी जवानी सध गयी हो, उसका बेड़ा पार है. एक गुलाब का फूल जब खिलता है, तभी भगवान पर चढ़ाने लायक होता है. मुरझाये हुए फूल या अधखिले फूल को कभी भगवान पर चढ़ाया नहीं जाता. इसलिए मेरा आग्रह है कि आप अपनी जवानी भगवान को चढ़ा दें, आप का कल्याण होगा.
राजनजी महाराज ने कहा कि अयोध्या कांड की खासियत यह है कि इसमें हर कोई तप रहा है. श्रीरामचंद्र जी 14 साल का वनवास काट रहे हैं. उनके साथ जानकी जी और भाई लक्ष्मण भी वन में तप रहे हैं. भरत जी कहते हैं कि जब मेरे भइया श्रीरामचंद्र और माता जानकी वन में रह रहे हों, तो भला मैं कैसे महल में रह सकता हूं. लिहाजा वह महल का त्याग कर नंदीग्राम में वनवासी का जीवन बिताते हैं. वह कहते हैं कि मेरे भइया जब जमीन पर सोते हैं, तो मैं भला जमीन पर उनकी बराबरी में कैसे सोऊं, लिहाजा वह धरती में गड्ढा खोद कर उसके अंदर सोते हैं. कुल मिला कर हम अयोध्याकांड को तप की कथा भी कह सकते हैं.
भोजपुरी गायक भरत शर्मा ने भजन पेश किये
रविवार को श्याम गार्डन में आयोजित नौ दिवसीय रामकथा के पांचवें दिन सुप्रसिद्ध भोजपुरी गायक भरत शर्मा ने कई भजन पेश किये, जिन पर भक्त झूमते रहे. रामकथा में यजमान की भूमिका में भोला प्रसाद सोनकर सपत्नीक उपस्थित रहे.
कार्यक्रम में संस्था की आयोजन समिति के मुख्य संरक्षक सुप्रसिद्ध समाजसेवी लक्ष्मीकांत तिवारी मौजूद रहे. इस दौरान संस्था के अन्य सदस्य प्रभात खबर (कोलकाता) के संपादक तारकेश्वर मिश्र, अशोक ठाकुर, श्रीमती देवी मिश्रा, रवि विष्णु चौमाल और शुभनारायण तिवारी विशेष रूप से सक्रिय रहे. अतिथियों में अरुण कुमार पांडे, भजन गायक हनुमान मिश्रा, डॉ एके पांडेय, अमर ठाकुर, पप्पू तिवारी, हृदय नारायण मिश्रा, संजय ठाकुर और संजय उपाध्याय मौजूद रहे. कथा का संचालन त्रिभुवन कुमार मिश्र ने किया.

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