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बड़े या छोटे बांध के निर्माण का निर्णय स्थिति के अनुरूप हो : सरयू
कोलकाता: झारखंड के खाद्य आपूर्ति मंत्री व दामोदर बचाओ आंदोलन के अध्यक्ष सरयू राय ने कहा है कि नदियों पर छोटे या बड़े बांध तथा तटबंध का निर्माण या निर्माण नहीं करने का निर्णय स्थिति के अनुरूप लिया जाये. इसके साथ ही जिन इलाकों से नदी गुजरती है, किसी निर्णय में वहां के लोगों की […]
कोलकाता: झारखंड के खाद्य आपूर्ति मंत्री व दामोदर बचाओ आंदोलन के अध्यक्ष सरयू राय ने कहा है कि नदियों पर छोटे या बड़े बांध तथा तटबंध का निर्माण या निर्माण नहीं करने का निर्णय स्थिति के अनुरूप लिया जाये. इसके साथ ही जिन इलाकों से नदी गुजरती है, किसी निर्णय में वहां के लोगों की पूरी भागीदारी हो. इसके साथ ही यह सुनिश्चित की जाये कि नदियों के जल का पर्यावरणी प्रभाव बरकरार रहे. नदियों की जैव विविधता व वनस्पतियां सुरक्षित रहें. तभी पर्यावरण संतुलन बना रह सकता है. किसी भी निर्णय के पहले तथ्यों की समीक्षा व विश्लेषण किया जाना बहुत जरूरी है. श्री राय ने यहां प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुभाष दत्ता से मुलाकात की.
श्री राय ने बताया कि 17-18 दिसंबर को रांची स्थित आर्यभट्ट सभागार में पूर्वी क्षेत्र के राज्यों के विकास व पर्यावरण विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया जायेगा. ‘युगांतर भारती’ व ‘नेचर फाउंडेशन’ के तत्वावधान में आयोजित होनेवाली संगोष्ठी के लिए झारखंड की राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू ने सलाहाकार समिति का प्रमुख संरक्षक बनना स्वीकार कर लिया है. प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुभाष दत्ता को भी सलाहकार कमेटी में शामिल किया गया है. झारखंड के विभिन्न विश्वविद्यालय : रांची विश्वविद्यालय, कोल्हन विश्वविद्यालय, विनोवा भावे विश्वविद्यालय, नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय, सिद्धू कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय व बिरसा मुंडा कृषि विश्वविद्यालय भी आयोजन के भागीदार हैं. इसमें पूर्वी राज्यों बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ व पश्चिम बंगाल के विभिन्न कॉलेजों व विश्वविद्यालयों के शिक्षक व प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे. आइआइटी, खड़गपुर के शिक्षकों से भी बातचीत चल रही है.
दामोदर बचाओ आंदोलन के अशोक सरकार को पश्चिम बंगाल का संयोजक बनाया गया है. उन्होंने कहा कि इस संगोष्ठी का उद्देश्य पर्यावरण का संरक्षण और निरंतर विकास की प्रक्रिया जारी रहने के प्रति जागरूकता पैदा करना है, क्योंकि पूर्वी भारत के राज्यों में 60-65 फीसदी प्राकृतिक संपदा है. विकास का सीधा प्रभाव प्राकृतिक संपदा नदियों, जंगल व पर्यावरण आदि पर पड़ता है. विकास के साथ-साथ प्राकृतिक संपदा को कैसे बचाये रखा जा सके, इस पर जोर दिये जाने की जरूरत है.
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