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हर्ट अटैक के शुरुआती लक्षण को न करें नजरअंदाज : डॉ मुखर्जी

कोलकाता. दिल की बीमारी को किसी समय में वृद्धावस्था की बीमारियों के रूप में जाना जाता था लेकिन अब यह आम जीवन शैली का हिस्सा बन चुकी है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में दिल की बीमारियों की दर पश्चिमी देशों के मुकाबले दोगुनी हो चुकी है. आज के समय में हमारी जीवन शैली ही […]

कोलकाता. दिल की बीमारी को किसी समय में वृद्धावस्था की बीमारियों के रूप में जाना जाता था लेकिन अब यह आम जीवन शैली का हिस्सा बन चुकी है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में दिल की बीमारियों की दर पश्चिमी देशों के मुकाबले दोगुनी हो चुकी है. आज के समय में हमारी जीवन शैली ही इसका सबसे बड़ा कारण है. हर्ट अटैक के अधिकांश मामलों में लोग इसके लक्षणों को पहचान नहीं पाते हैं, जिसके कारण मरीज की मौत हो जाती है.

सीने में दर्द के साथ जलन, दबाव की अनुभूति होना, सांस की समस्या, पीठ दर्द आदि हृदयाघात के मुख्य लक्षण हैं. इस समस्या को लोग गैस की समस्या समझ लेते हैं. ऐसे में उचित इलाज के अभाव में भी मरीज की मौत हो जाती है. ये बातें कार्डियोलॉजिस्ट डॉ सुनीप बनर्जी ने कहीं. वे बुधवार महानगर को के रोटरी सदन में सिग्नेचर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे.

40 के बाद करायें नियमित स्वास्थ्य जांच : डॉ बनर्जी ने बताया कि हर्ट की समस्या किसी भी व्यक्ति को हो सकती है, इसलिए इस बीमारी से बचने के लिए 40 के बाद नियमित स्वास्थ परीक्षण करवाना चाहिए. इससे अलावा खानपान व व्यायाम करना भी काफी जरूरी है.

अटैक के तुरंत बाद इलाज जरूरी : डॉ बनर्जी ने बताया कि हृदयाघात के अधिकांश मामलों में इलाज के अभाव में मरीज की मौत हो जाती है. उन्होंने बताया कि दिल के अाटरी अथवा धमनी में रक्त के जमने के कारण मरीज को दिल का दौरा पड़ता है. वहीं अटैक के दो घंटे बाद ब्लॉकेज हुए स्थान पर आटरी सड़ने लगती है जिससे मरीज की मौत हो सकती है, इसलिए अटैक के तुरंत बाद इलाज जरूरी है. वहीं अटैक के बाद हृदय में हुए ब्लॉकेज को देखते हुए मरीज की एंजियोप्लास्टी अथवा बायपास सर्जरी करनी पड़ती है.

दिल को स्वस्थ रखने के लिए इन्हें रखें दूर : डॉ बनर्जी ने बताया कि मधुमेह, उच्चरक्त चाप और धूमपान के कारण अधिकांश लोगों को दिल का दौरा पड़ता है, इसलिए दिल को स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम जरूरी है जिससे मधुमेह व रक्तचाप का स्तर सामान्य रहता है.

हृदयाघात के बाद एंजियोप्लास्टी से मरीज को बचाना संभव : डॉ बनर्जी ने बताया कि अटैक के तुरंत बाद मरीज का इसीजी व इकोकार्डियोग्राफी करवाया जाता है. इससे ब्लॉकेज की स्थिति का पता चलता है.

किसी भी उम्र में एंजियोप्लास्टी है संभव : डॉ बनर्जी ने बताया कि आज के मेडिकल साइंस के इस युग में किसी भी उम्र में मरीजो‍ं का एंजियोप्लास्टी करना संभव हो गया है. उन्होंने बताया कि हाल ही में एक 82 वर्षीय महिला का सफल एंजियोप्लास्टी किया गया है. उन्होंने बताया कि एंजियोप्लास्टी के दौरान मरीज की जान जाने का जोखिम बेहद कम होता है. हृदयघात से जूझ रहे लोगों के इलाज के लिए यह काफी फायदेमंद माना जा रहा है.

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