कोलकाता: जस्टिस अशोक गांगुली पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप औरपश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन पद से उनके इस्तीफे के बाद कलकत्ता हाइकोर्ट का माहौल बदला-बदला सा है.
कई वरिष्ठ वकील महिला लॉ इंटर्न और सहायक रखने से अप्रत्यक्ष रूप से कतराने लगे हैं. वर्षो से यहां प्रैक्टिस कर रहे बार काउंसिल के सदस्य व वरिष्ठ वकील शेख मोइनउद्दीन का कहना है कि वर्तमान परिस्थिति ने एक ङिाझक पैदा कर दी है. अधिकतर वकील महिला इंटर्न व महिला सहायकों से ङिाझक रहे हैं. यौन उत्पीड़न का आरोप लगते ही आपराधिक मामला दायर हो जाता है. अभी तो एक-दो मामले ही सामने आये हैं. भविष्य में और अधिक मामले सामने आये, तो स्थिति गंभीर हो जायेगी. सीनियर वकील एसएम हसन ने अब महिला इंटर्न रखने से तौबा कर लिया है. उनका कहना है कि हम सभी डर महसूस कर रहे हैं.
वर्षो तक अदालत में प्रैक्टिस करने के बाद बनी इज्जत एक आरोप के लगते ही धूल जाती है. ऐसे में कौन किसी महिला इंटर्न को साथ में रखने का साहस करेगा. पर, सीनियर वकील अगर कानून के छात्रों को मौका नहीं देंगे, तो नये वकील कहां से आयेंगे. कलकत्ता हाइकोर्ट के सीनियर वकील एवं कोलकाता के पूर्व मेयर विकास रंजन भट्टाचार्य का कहना है कि भले ही जस्टिस गांगुली ने पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन के पद से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्हें इस मामले में फंसाया गया था.
यह मामला एक सियासी साजिश का हिस्सा है. इस घटना के कारण सीनियर वकीलों व जजों के दिलों में महिला इंटर्न व महिला सहायकों के प्रति अविश्वास पैदा हो गया है, जो बेहद गंभीर मामला है.कोलकाता लॉ कॉलेज की एक छात्र ने बताया कि उसने इंटर्नशिप के लिए चार जगह आवेदन किया था, लेकिन कहीं से उसे कोई जवाब नहीं मिला है. उसकी इच्छा एक अच्छा वकील बनने की है, लेकिन अगर कोई सीनियर वकील इंटर्नशिप का मौका ही नहीं देगा, तो वह कानून के दावं-पेंच कैसे सिखेगी. उसकी कई साथी इस समस्या का सामना कर रही हैं.