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एक काला अध्याय
तारकेश्वर मिश्र समाज के हर तबके में कुछ लोग अपवाद होते हैं. और ऐसे अपवादों के कारण पूरी बिरादरी पर आरोप-प्रत्यारोप भी दागे जाते हैं. पत्रकारिता का पेशा भी इससे अलग नहीं है. लेकिन इस समय पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव के दौरान, खासकर बड़े पदों की शोभा बढ़ा रहे लोकसेवकों को हटाया जाना राज्य […]
तारकेश्वर मिश्र
समाज के हर तबके में कुछ लोग अपवाद होते हैं. और ऐसे अपवादों के कारण पूरी बिरादरी पर आरोप-प्रत्यारोप भी दागे जाते हैं. पत्रकारिता का पेशा भी इससे अलग नहीं है. लेकिन इस समय पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव के दौरान, खासकर बड़े पदों की शोभा बढ़ा रहे लोकसेवकों को हटाया जाना राज्य की जनता के बीच खूब चर्चे में है.
छह चरणों में होनेवाले मतदान का तीसरा चरण पूरा हो चुका है और अभी राज्य के सघन आबादी वाले इलाकों में तीन चरणों में मतदान होना बाकी है. चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुरूप कार्य नहीं करने के कारण विशिष्ट पदों से आधा दर्जन से अधिक लोकसेवक पदच्युत किये जा चुके हैं. इसी प्रकार राज्य पुलिस सेवा और प्रशासनिक सेवा से जुड़े लगभग दो दर्जन अन्य अधिकारी कर्तव्यहीनता के दोषी करार देकर पदों से हटाये जा चुके हैं.
राज्य में अब तक हुए पहले के चुनावों पर नजर डालें, तो इस बार इस मामले में एक नया रिकार्ड बन चुका है, जो इतिहास के पन्नों में एक काले अध्याय के रूप में जुड़ जायेगा. जी हां, भावी पीढ़ी इसे काला अध्याय के रूप में ही देखेगी. भारत की युवा पीढ़ी लोक सेवा आयोग की परीक्षा में चुना जाना एक सुनहरा सपना मानती है, लोकसेवक चुना जाना एक ऐसा गर्व बोध कराता है, जिससे सगे-संबंधी से लेकर टोले-मुहल्ले के लोग भी गौरवान्वित होते हैं. इस क्षेत्र में आज भी कई ऐसे नाम हैं, जिन्हें समाज के लोग बरबस याद करते रहते हैं. लेकिन इस समय जो हो रहा है, उससे समाज के आम लोगों के उस विश्वास को धक्का लग रहा है, जो लोकसेवकों की कई पीढ़ियों के त्याग और बलिदान की बदौलत राज्य के आम नागरिकों के मन में बसा हुआ था.
आज भी कोलकाता और पूरे पश्चिम बंगाल के लोग जांबाज आइपीएस अधिकारी विनोद कुमार मेहता को बड़े सम्मान से याद करते हैं, जिन्होंने पोर्ट इलाके में दहशतगर्दी खत्म करने के क्रम में अपने प्राणों की आहूति दे दी थी. हाल ही में सेवानिवृत्त हुए आइपीएस अधिकारी नजरूल इसलाम ने कोलकाता को सट्टा मुक्त करने के लिए रात-दिन एक कर दिया था और बाद में राजनीतिक दावंपेंच खेलनेवालों ने उन्हें अनुपयुक्त पदों पर रख-रख कर प्रताड़ित किया. ऐसे दर्जनों आइएएस और आइपीएस अधिकारी आज भी नयी पीढ़ी के लोक सेवकों के लिए आदर्श माने जाते हैं, जो राजनीतिक प्रताड़नाओं को झेलने के बावजूद अपने कर्तव्य से कभी नहीं डिगे. यह भी सही है कि देश के लोगों ने कुछ ऐसे भी लोक सेवक देखे हैं, जो किसी मुख्यमंत्री के सैंडल संभालते देखे गये या फिर सत्तारूढ़ दल के पक्ष में काम करते हुए अच्छे पदों पर पहुंच गये. परंतु, ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम ही हुआ करती थी, जिसे हम हर वर्ग और समाज में मौजूद अपवाद के रूप में मान लिया करते थे.
चिंता तो इस बात की है कि इस चुनाव के दौरान ऐसे अपवादों की संख्या इतनी अधिक दिखायी दे रहे हैं कि आज लोग भविष्य के बारे में चर्चा करने को विवश हो रहे हैं. कोलकाता पुलिस के कमिश्नर से लेकर जिला अधिकारी और जिला पुलिस अधीक्षक जैसे पदों पर तैनात अधिकारी को हटाया जाना सामान्य बात नहीं है.
जब सभी को पता है कि किसी भी राज्य में चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद सभी लोकसेवकों का कर्तव्य और अधिक बढ़ जाता है. इन लोकसेवकों के भरोसे ही संविधान ने चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान कराने और योग्य लोगों को नीति निर्धारक के रूप में चुने जाने की प्रक्रिया संपन्न कराने का कार्य सौंपा है. फिर हमारे कुछ लोकसेवक भ्रमित क्यों हो रहे हैं.
अगर सभी लोकसेवक किसी न किसी राजनीतिक दल की कृपा पाने के लोभ में कार्य करने लगें, तो फिर भारतीय संविधान के उस स्तंभ का क्या होगा, जिसके भरोसे आम जनता को न्याय मिला करता है. लोकतंत्र के हर स्तंभ को मिलनेवाली मजबूती ही समाज और राष्ट्र को विकृतियों से दूर रखने में सहायक हो सकती है.
अगर हम पीछे मुड़कर देखें, तो पता चलता है कि सत्ता में रहनेवाली राजनीतिक पार्टियां अकसर कुछ लोकसेवकों को अपने पक्ष में कार्य करने के लिए विवश करती रहती हैं. साथ ही हमारे पास सैकड़ों ऐसे उदाहरण हैं, जहां अपनी कर्तव्यनिष्ठा और सच्चाई के बल पर लोकसेवकों ने बड़े से बड़े राजनीतिक दलों के ऐसे कार्यों का खुलकर विरोध किया और उन्हें आम जनता का अपार जनसमर्थन भी मिला. अब हम सूचना क्रांति के युग में आ चुके हैं. सूचनाएं सही हों या गलत, तेजी से प्रसारित हो रही हैं और आम लोग भी सच-झूठ को समझने में ज्यादा माहिर हो चुके हैं.
ऐसे में लोकतंत्र के किसी भी खास स्तंभ के कर्णधारों के लिए और भी अधिक सतर्क तथा संयमित होकर कर्तव्य निर्वाह समय की मांग है. इस चुनाव में कुछ लोकसेवकों पर आयोग की कार्रवाई से इतिहास के पन्ने में एक काला अध्याय जुड़ चुका है. जनता को अब भी भरोसा है कि इस अध्याय में अब और नये पन्ने नहीं जुड़ेंगे.
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