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मामला लगाम का
आनंद कुमार सिंह चुनाव में भइया बड़ा उलटफेर होता है. बड़े बड़ों पर लगाम लगायी जाती है. चुनाव आयोजित करनेवाले फरमान यदि कर दें, तो बड़े-बड़े नेताअों की जुबान पर लगाम लग जाये. एक ऐसे ही बड़े नेता हैं जिनपर नजरदारी का फरमान लगा दिया गया. एकदम दबंग टाइप के नेता. नजरदारी बोले तो फोर्स […]
आनंद कुमार सिंह
चुनाव में भइया बड़ा उलटफेर होता है. बड़े बड़ों पर लगाम लगायी जाती है. चुनाव आयोजित करनेवाले फरमान यदि कर दें, तो बड़े-बड़े नेताअों की जुबान पर लगाम लग जाये. एक ऐसे ही बड़े नेता हैं जिनपर नजरदारी का फरमान लगा दिया गया. एकदम दबंग टाइप के नेता. नजरदारी बोले तो फोर्स हमेशा दायें-बायें. हर कदम की वीडियो रिकॉर्डिंग. ऐसे में आदमी क्या करे. उनके बारे में चर्चा करते दो लोग मुझे चाय की दुकान में मिल गये.
एक उक्त नेता के समर्थक निकले, तो एक विरोधी. समर्थक ने जहां फरमान को नजायज करार दिया, वहीं विरोधी इसे सही बता रहा था. समर्थक का कहना था कि बावजूद फरमान के नेता साहब को कोई रोक नहीं सकता. वह पहले कौन-सा गलत काम करते थे कि नजरदारी से उन्हें कोई दिक्कत होगी. रही नजरदारी. क्या फर्क पड़ता है. विरोधी तो विरोधी ठहरा.
उसे कैसे हजम होगा यह तर्क. उसका कहना था अगर फर्क नहीं पड़ता नजरदारी का, तो भैया विरोध क्यों कर रहे थे. विरोध इसलिए, समर्थक ने अपना तर्क दिया, क्योंकि इससे विरोधियों को मौका मिल रहा है. अपनी रणनीति भई हम दूसरे के सामने क्यों चर्चा करें. दूसरे के सामने कहां, विरोधी का कहना था, ये चुनाव आयोग के नुमाइंदे हैं. इनके सामने क्या समस्या है बात करने में. कोई समस्या नहीं. भई मान तो रहे हैं. अब और आप क्या चाहते हैं.
खैर ये तो हुई नजरदारी की बात. चुनाव के दौरान वोटकर्मियों की भी मुसीबतें कम नहीं होतीं. वोटों का परिचालन जिनपर करने की जिम्मेदारी होती है, जिनपर सभी की नजरें टिकी होती हैं उनकी की भी समस्या कम नहीं. एक वाकया सामने आया जिसमें चुनाव के इलाके में पहुंचने पर वोटकर्मियों को गाड़ी ही न मिली. उन्हें भी आंदोलन का रास्ता अख्तियार करना पड़ा.
बेचारे धरने पर बैठ गये. आखिरकार उनकी समस्या का हल किया गया, उनके लिए गाड़ी पहुंची. सबकी समस्याओं पर बात तो हो जाती है, लेकिन मतदाताओं की बात जब होती है, तो वह सबसे निरीह साबित होते हैं. राज्य विधानसभा चुनाव की ही बात करें, तो दूसरे चरण में ही 16 हजार से अधिक मतदाताओं ने वोट देने में खतरा जताया है. यानी उन्हें डर है कि वे वोट देने जायेंगे, तो उनके साथ कोई समस्या हो सकती है.
ऐसे में उनका क्या होगा. क्या उन सभी 16 हजार लोगों के लिए सुरक्षा मुहैया की जायेगी? उन्हें मतदान केंद्र में लाने-ले जाने की व्यवस्था की जायेगी? जी बिल्कुल नहीं. उन सभी के तथ्य जरूर आयोग के पास रहेंगे. लेकिन अतिरिक्त व्यवस्था करने की गुंजाइश नहीं है. इतना जरूर है कि किसी विशेष इलाके से अधिक शिकायतें मिलती हैं, तो वहां पहले से सुरक्षा तगड़ी की जा सकती है. लेकिन शिकायतें विस्तृत क्षेत्र से आयें, तो ऐसी संभावना खत्म हो जाती है. बावजूद इसके चुनाव आयोग सुरक्षा की सभी तैयारियों पर ध्यान देता है. मतदान करना लोकतंत्र को मजबूत करना भी होता है. इसलिए मतदान जरूर करें.
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