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पत्रकारिता में नैतिक मूल्य बोध नहीं रहा : डॉ मिश्र

अपनी भाषा की ओर से जस्टिस शारदा चरण मित्र स्मृति भाषा सेतु सम्मान 2016 और हिंदी मीडिया और मीडिया में हिंदी विषयक एक राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र ने मीडिया में बढ़ती व्यावसायिकता को आड़े हाथों लेते हुए हिंदी पत्रकारिता के आदर्शों को याद किये जाने पर विशेष बल दिया. […]

अपनी भाषा की ओर से जस्टिस शारदा चरण मित्र स्मृति भाषा सेतु सम्मान 2016 और हिंदी मीडिया और मीडिया में हिंदी विषयक एक राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र ने मीडिया में बढ़ती व्यावसायिकता को आड़े हाथों लेते हुए हिंदी पत्रकारिता के आदर्शों को याद किये जाने पर विशेष बल दिया.

कोलकाता : पत्रकारिता अब मिशन नहीं प्रोफेशन है. आज पत्रकार वही है, जो पत्र के मध्यम से कार की और राज्यसभा के टिकटों की व्यवस्था कर ले. तटस्थ होकर किसी का मूल्यांकन करने की हिमाकत आज का पत्रकार नहीं करता. आज अखबारों का पेज और दायरा बढ़ा है. समाचार पत्रों में रंग-बीरंगी और मनमोहक सामाग्री की भी भरमार है. निश्चित रूप से अखबार के मालिक भी आज ऊंची-ऊंची कोठियों के मालिक हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या अखबारों का प्राण तत्व नैतिक मूल्य बोध बचा है? इसका उत्तर है कि आज के अखबार प्राणहीन हैं, उनमें नैतिक मूल्य बोध नहीं बचा. उक्त विचार प्रख्यात साहित्यकार डॉ कृष्णबिहारी मिश्र ने व्यक्त किये.

अपनी भाषा द्वारा जस्टिस शारदा चरण मित्र स्मृति भाषा सेतु सम्मान 2016 और हिंदी मीडिया और मीडिया में हिंदी विषयक एक राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने मीडिया में बढ़ती व्यावसायिकता को आड़े हाथों लेते हुए हिंदी पत्रकारिता के आदर्शों को याद किये जाने पर विशेष बल दिया. कार्यक्रम के प्रथम सत्र में रचनात्मक अवदान एवं अनुवाद कार्य द्वारा हिंदी व कश्मीरी के बीच सेतु निर्मित करनेवालीं साहित्याकार डॉ बीना बुदकी को जस्टिस शारदा चरण मित्र स्मृति भाषा सेतु सम्मान 2016 प्रदान किया गया.

भाषा परिषद सभागार में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ बीना बुदकी ने हिंदी कश्मीरी अनुवाद कार्यों को रेखांकित करते हुए कश्मीरी साहित्य परंपरा के गंभीर मुद्दों को उठाया.

कश्मीर की दुखद यथास्थिति पर खेद व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि विस्थापन तो एक समस्या है ही, पर उससे बड़ी समस्या है कश्मीरी साहित्य और संस्कृति का खत्म होना. प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि रहे हिंदी कश्मीरी संघ के अध्यक्ष और लेखक प्रो चमनलाल सप्रू ने कहा कि भारत में भले ही अनेक भाषाएं व बोलियां हैं, लेकिन उन सब की आत्मा एक है.

उन्होंने कश्मीर बचाओ देश बचाओं के नारे का भी उदघोष किया. इस दौरान संगोष्ठी सत्र को संबोधित करते हुए छपते-छपते के प्रधान संपादक विश्वंभर नेवर ने हिंदी के समाचार पत्रों में व्यक्त राष्ट्रीय दृष्टिकोण की सराहना करते हुए कहा कि मीडिया का काम जनता की समस्याओं को जनता के समक्ष रखना है. इस दौरान प्रभात खबर (कोलकाता) के संपादक तारकेश्वर मिश्र ने हिंदी के बढ़ते दायरे पर संतोष व्यक्त करते हुए क्षेत्रीय भाषाओं में बढ़ रहे समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर भी खुशी व्यक्त की. उन्होंने इसके लिए और कार्य करने की जरूरत पर बल दिया.

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ आशुतोष के स्वागत भाषण से हुआ. इस अवसर पर आचार्य विष्णुकांत शास्त्री स्मृति प्रतिमा सम्मान से सम्मानित विदुषी डॉ वसुमति डागा का भी सम्मान किया गया. कार्यक्रम का संचालन डॉ सत्यप्रकाश तिवारी व धन्यवाद ज्ञापन जीवन सिंह ने किया.

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