कोलकाता. भारत में गर्भाशय का कैंसर ( ओवरिअन कैंसर) तेजी से बढ़ रहा है. अपोलो ग्लेनिगल्स अस्पताल के कंसल्टेंट ओंको-सजर्न ( गायनाकोलॉजी) डॉ मानस चक्रवर्ती का कहना है कि गर्भाशय के कैंसर को साइलेंट किलर कहा जाता है. इसके लक्षण भ्रामक होते हैं.
अकसर लोग इसके लक्षण को नजरांदाज कर देते हैं. परिणामस्वरूपइसकी पहचान उस वक्त हो पाती है, जब रोग एडवांस स्टेज पर पहुंच जाता है. पेट में लगातार दर्द, सूजन, थोड़ा सा खाने पर भी पेट भरा हुआ महसूस होना, बार-बार पेशाब लगना एवं अत्यधिक थकान महसूस होना गर्भाशय कैंसर के लक्षण हैं. अगर महीने में 12 बार से अधिक ऐसा हो तो फौरन किसी डॉक्टर के पास जाना चाहिए. रोग के आरंभ में इलाज करवाने से जान बचायी जा सकती है, इसके लिए जागरूकता जरूरी है.
डॉ चक्रवर्ती ने बताया कि मोटापे और गर्भाशय कैंसर के बीच गहरा संबंध है. पर इनसान का खानपान गर्भाशय कैंसर को कितना प्रभावित करता है, यह साफ नहीं है. किसी विशेषज्ञ द्वारा अल्ट्रासाउंड स्कैन करवाये जाने से गर्भाशय के ट््यूमर का पता लगाया जा सकता है. अधिक संदेह हो तो सीटी स्कैन या एमआरआइ करवाने की जरूरत है, इससे अधिक जानकारी मिलती है. ट््यूमर मार्कर की जांच के लिए डाक्टर साधारण रक्त परीक्षण की भी सलाह देते हैं.
आरंभ में गर्भाशय कैंसर केवल एक अंडाशय तक ही सीमित रहता है. बाद में अन्य अंडाशय, पेट एवं अन्य अंग इस रोग से ग्रसित होते हैं. आमतौर पर कैंसर का पता एडवांस स्टेज में लगता है, पर वर्तमान में स्टेज 4 में भी कैंसर का इलाज संभव है. अगर यह पता चल जाये कि कैंसर केवल अंडाशय तक ही सीमित है तो इसका इलाज संभव है. इसके लिए बायोप्सी के साथ एक पूरी प्रक्रिया करनी पड़ती है. एक अनुभवी ओंको-सजर्न की देखरेख में एक अहम ऑपरेशन करना पड़ता है.
इलाज के बाद भी ओंको-सजर्न लंबी अवधि तक इसका इलाज जारी रखने की सलाह देते हैं. कैंसर की अधिक से अधिक कोशिकाओं को हटाने के लिए ऑपरेशन जरूरी है. अगर कैंसर अंडाशय से बाहर भी फैल चुका हो तब ऑपरेशन के छह महीने बाद तक कैमोथेरपी करवानी होगी. यह ऑपरेशन बेहद अहम व जटिल होता है, इसलिए जरूरी है कि ऐसे अस्पताल में ऑपरेशन करवाया जाये, जहां विशेषज्ञ डॉक्टरों व नर्सो की टीम के साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर भी हो.