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सामाजिक समरसता का अप्रतिम उदाहरण है जैन तेरापंथ विद्यालय

कोलकाता. 14 मई 1916 को जैन श्वेतांबर तेरापंथी महाविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य समाज, शिक्षा एवं अध्यात्म को समर्पित था. अनेकों उतार-चढ़ाव को पार कर इस विद्यालय का गौरवशाली इतिहास श्रवकों की कर्मठता और दूरदर्शिता का अप्रतिम उदाहरण है. आज समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग यहां समान रूप से शिक्षा ग्रहण करते हैं जो […]

कोलकाता. 14 मई 1916 को जैन श्वेतांबर तेरापंथी महाविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य समाज, शिक्षा एवं अध्यात्म को समर्पित था. अनेकों उतार-चढ़ाव को पार कर इस विद्यालय का गौरवशाली इतिहास श्रवकों की कर्मठता और दूरदर्शिता का अप्रतिम उदाहरण है. आज समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग यहां समान रूप से शिक्षा ग्रहण करते हैं जो सामाजिक समरसता का अतुलनीय प्रयास है.

आज विद्यालय के 100 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित कार्यक्रम में राज्य के पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने ये बातें कहीं. आज स्थानीय विद्या मंदिर के सभागार में शताब्दी समारोह के प्रथम चरण में मंगल गीत एवं ओम अर्हम के साथ पूरा सभागार हजारों साल की तेरापंथ की गौरवशाली परंपरा के साथ ओत-प्रोत नजर आ रहा था. इस अवसर पर प्रकाशचंद्र सुराणा ने अपने भाव प्रवण उदगार से न सिर्फ समाज के लोगों बल्कि सभा में उपस्थित महापौर और मंत्री समेत प्रत्येक श्रोताओं को प्रभावित किया. उनके साथ महासभा के अध्यक्ष कमल दुग्गड़ ने अतीत की समीक्षा कर अनागत की ठोस योजना बनाने तथा भावी पीढ़ी को भविष्य निर्माण के लिए संस्कारों की मजबूती पर बल दिया.

साथ ही उन्होंने पूरे विश्व में फैले जैन समाज की शक्ति का उल्लेख करते हुए विभिन्न सामाजिक कार्यो के प्रति इस समाज की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला. उनके साथ साध्वी त्रिशला जी, मेयर शोभन चटर्जी, रूचिता गुप्ता, आई-लीड के चेयरमैन प्रदीप चोपड़ा, बाबूलालजी सिंघी, वृदराज भंडारी, गोदमलजी दुग्गड, विनोद वैद, सुरेन्द्र वोरठ, चमन सुराणा, प्रमोद वैद, शशि गांधी, भीकमजी पुगलिया आदि गणमान्य उपस्थित थे.

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