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भारत-अमेरिकी परमाणु करार को चुनावी मुद्दा बनाने में नाकाम रहा वाम : येचुरी

कोलकाता/ नयी दिल्ली. अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के मुद्दे पर तत्कालीन संप्रग सरकार से वाम दलों के समर्थन वापस लेने के करीब सात वर्षो बाद माकपा ने रविवार को स्वीकार किया है कि वह कदम गलत समय पर उठाया गया था और पार्टी इसे चुनाव मुद्दा बनाने में नाकाम रही थी. माकपा के नवनिवार्चित […]

कोलकाता/ नयी दिल्ली. अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के मुद्दे पर तत्कालीन संप्रग सरकार से वाम दलों के समर्थन वापस लेने के करीब सात वर्षो बाद माकपा ने रविवार को स्वीकार किया है कि वह कदम गलत समय पर उठाया गया था और पार्टी इसे चुनाव मुद्दा बनाने में नाकाम रही थी. माकपा के नवनिवार्चित महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि वाम दलों को केवल भारत-अमेरिकी परमाणु संधि के मुद्दे पर संप्रग सरकार से समर्थन वापस नहीं लेना चाहिए था.

वाम दलों को तत्कालीन सरकार से समर्थन वापसी के कारण को महंगाई जैसे जनता के किसी मुद्दे को या संप्रग सरकार द्वारा ह्यआम आदमी के बारे में नहीं सोचे जाने जैसे मुद्दा बनाना जाना चाहिए था. महंगाई जैसा मुद्दा आम लोगों से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है. वर्ष 2009 के आम चुनाव में लोगों को परमाणु संधि के मुद्दे पर एकजुट नहीं किया जा सका था. वर्ष 2008 में संप्रग से नाता टूटने के बाद वाम दलों की स्थिति में गिरावट के मुद्दे पर वे अपना वक्तव्य रख रहे थे. ध्यान रहे कि वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव में वाम मोरचा को करीब 64 सीटें मिली थीं. संप्रग से नाता टूटने के बाद हुए चुनाव यानी वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में वाममोरचा को 24 सीटें मिली और वर्ष 2014 में वाम दलों की सीटों की संख्या महज 10 रह गयी है. हालांकि येचुरी इस बात पर कायम रहे कि परमाणु करार के विरोध का पार्टी का फैसला सही था.

परमाणु संधि के विरोध का कोई पछतावा नहीं है और यह विरोध सही भी है. उन्होंने कहा कि परमाणु संधि के मामले में आगे बढ़ना इस बात का संकेत था कि संप्रग वाम दलों को दरकिनार कर देना चाहती थी. भारत-अमेरिकी परमाणु संधि संप्रग के न्यूनतम साक्षा कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी. भारत पर विश्व में अमेरिका के रणनीतिक हितों का एक कनिष्ठ सहयोगी बनने के लिए अत्याधिक दबाव था. वामपंथी ऐसे फैसलों से दूर रहे हैं. वर्ष 2009 में माकपा की केंद्रीय समिति ने अपनी चुनाव समीक्षा में कहा था कि जब संप्रग सरकार ने परमाणु संधि को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया था, तब उससे समर्थन वापस ले लेने का फैसला उचित था.

उस वक्त यह हमारी समक्ष पर आधारित था कि पार्टी एक सरकार को समर्थन नहीं दे सकती है जो अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ एक समग्र रणनीतिक संबंध शुरू कर रही है और जिसमें परमाणु संधि एक मजूबत कारक है. हालांकि परमाणु मुद्दे पर वामपंथी लोगों को संगठित नहीं कर सके और चुनाव में उन्हें एकजुट नहीं कर सके. हाल ही में विशाखापत्तनम में आयोजित माकपा की पार्टी कांग्रेस में दी गयी दिशा के बारे में पूछे जाने पर येचुरी ने कहा कि माकपा भविष्य की पार्टी है और हमें उसी तरीके से आगे बढ़ना है. ध्यान रहे कि इस पार्टी कांग्रेस में ही येचुरी को पार्टी का महासचिव चुना गया था.

उन्होंने कहा कि आगामी तीन वर्षो तक पार्टी की प्राथमिकता इसकी स्थिति में आ रही गिरावट पर रोक लगाने की होगी और फिर इसकी प्राथमिकता लोगों का विश्वास इस पार्टी में दोबारा जगाने और दोबारा बहाल करने की होगी. पार्टी ने सांगठनिक पुनर्निर्माण का फैसला किया है और इसका इरादा अपनी स्वतंत्र शक्ति में सुधार लाने और नीतिगत मुद्दों पर राजनीतिक हस्तक्षेप करने का है. पार्टी ने इस साल के अंत में सभी सदस्यों की मौजूदगी में एक अहम बैठक करने का फैसला किया है जो इसकी सांगठनिक शक्ति को बढ़ावा देने पर चर्चा करने के लिए होगी.

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