कोलकाता. हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि वेद भी भगवान को नहीं जानते, जिसमें भक्ति है वह भगवान को जाता है. श्रीराम तो तारणहार हैं. मानव सेवा ट्रस्ट की ओर से आयोजित श्रीराम कथा के सातवें दिन मनीषी कुंडलकृष्ण प्रभु (इस्कॉन) ने शुक्रवार को कहा कि जब श्रीराम और लक्ष्मण नदी पार करने पहुंचे तब केवट ने मन में सोचा कि जिसके छूने से पत्थर सुंदरी युवती में परिवर्तित हो जाता है और यदि श्रीराम लकड़ी की नाव को छुयेंगे तो हो सकता है कि वह भी सुंदरी युवती में तब्दील हो जायेगा. इसको लेकर केवट चिंतित हो गया. क्या श्रीरामजी को तैरना नहीं आता था. केवट यह भलीभांति जातना था कि यह साक्षात् परमब्रह्म हैं. उनके स्पर्श मात्र से जीवन धन्य हो जायेगा. केवट में भगवान श्रीराम को समझने की शक्ति थी. महाराजजी ने कहा कि भगवान दीन-दयालु हैं. वे स्वार्थ के लिए काम नहीं करते. वे विश्व, त्रिभुवन के देवता हैं. कलियुग में भगवान श्रीराम का नाम लेना ही काफी है, लेकिन आज के जमाने में लोग भजन-कीर्तन से मुंह मोड़ रहे हैं. यह तो कलियुग का असर है. जिस पर इसका असर नहीं है वे ही भगवत् भजन में ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करते हैं. जिसके मन में भक्ति है, वह तर जाता है. व्यस्त जीवन का एक दिन अंत होना ही है, जिनके समझ में यह आता है, उसका बेड़ा पार होना निश्चित है. कार्यक्रम का संचालन महावीर रावत ने किया, सांवरमल अग्रवाल ने अतिथियों का स्वागत किया. कृष्ण कुमार सराफ ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
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तारनहार हैं श्रीराम : कृष्ण प्रभु
कोलकाता. हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि वेद भी भगवान को नहीं जानते, जिसमें भक्ति है वह भगवान को जाता है. श्रीराम तो तारणहार हैं. मानव सेवा ट्रस्ट की ओर से आयोजित श्रीराम कथा के सातवें दिन मनीषी कुंडलकृष्ण प्रभु (इस्कॉन) ने शुक्रवार को कहा कि जब श्रीराम और लक्ष्मण नदी पार करने पहुंचे तब […]
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