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आजीवन सजा पाने वाला बेकसूर करार

कोलकाता. आठ वर्ष तक जेल में रहने के बाद आखिरकार आजीवन सजा पाने वाले एक व्यक्ति को कलकत्ता हाइकोर्ट ने बेकसूर करार दे दिया. न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी व न्यायाधीश तापस मुखर्जी की खंडपीठ ने पूर्व मेदिनीपुर के विश्वरंजन मिद्दा चौधरी को बेकसूर करार दिया. उल्लेखनीय है कि 1996 में 50 वर्ष से अधिक के उम्र […]

कोलकाता. आठ वर्ष तक जेल में रहने के बाद आखिरकार आजीवन सजा पाने वाले एक व्यक्ति को कलकत्ता हाइकोर्ट ने बेकसूर करार दे दिया. न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी व न्यायाधीश तापस मुखर्जी की खंडपीठ ने पूर्व मेदिनीपुर के विश्वरंजन मिद्दा चौधरी को बेकसूर करार दिया. उल्लेखनीय है कि 1996 में 50 वर्ष से अधिक के उम्र वाले विश्वरंजन ने करीब 25 वर्षीय शेफाली से शादी की थी. उनके बीच किसी प्रकार के झगड़े का आरोप भी नहीं था. लेकिन बताया जाता है कि शेफाली अवसादग्रस्त थी. 1997 के 10 अक्तूबर को शेफाली की मौत जलने से हो गयी. शेफाली की मां ने खेजुरी थाने में इस बाबत शिकायत दर्ज करायी. उसी दिन पुलिस ने विश्वरंजन को गिरफ्तार कर लिया. आठ मार्च 2007 को तमलुक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने विश्वरंजन को शेफाली की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनायी. इसके बाद से ही विश्वरंजन जेल में था. इसके बाद उसने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. विश्वरंजन के वकील जयंत नारायण चटर्जी ने अदालत में कहा कि इस घटना में पुलिस ने बिल्कुल भी जांच नहीं की. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डॉक्टर ने मौत को आत्महत्या करार दिया था लेकिन जांच अधिकारी ने हत्या का मामला बताकर चार्जशीट जमा किया था. आग कैसे लगी और यह आत्महत्या है या फिर दुर्घटना, पुलिस ने इसकी भी जांच नहीं की. हत्या का कोई मकसद विश्वरंजन के पास नहीं था. घटना के दिन सप्तमी पूजा थी. मोहल्ले के पंडाल में विश्वरंजन तास खेल रहा था. घर में आग लगने की खबर मिलने पर वह पड़ोसियों के साथ मौके पर आया और आग बुझाने की कोशिश करने लगा. ऐसे में वह हत्या कैसे कर सकते हैं.

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