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साधु-संतों की पद यात्रा प्राचीन परंपरा : रविपद्मसागरजी

कोलकाता. आचार्यश्री विजयसागर सूरीश्वरजी एवं मुनिश्री रविपद्मसागरजी द्वारा कोलकाता में चार्तुमास के समान के बाद उन्होंने अगले चार्तुमास के लिए नागपुर प्रस्थान किया. कोलकाता एवं हावड़ा में दो जैन मंदिरों का भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव जैन समाज के श्रावक-श्राविकाओं के लिए यादगार रहेगा. मुनिश्री रविपद्मसागरजी ने श्रद्धालु भक्तों को कहा कि चार्तुमास में आपने जो […]

कोलकाता. आचार्यश्री विजयसागर सूरीश्वरजी एवं मुनिश्री रविपद्मसागरजी द्वारा कोलकाता में चार्तुमास के समान के बाद उन्होंने अगले चार्तुमास के लिए नागपुर प्रस्थान किया. कोलकाता एवं हावड़ा में दो जैन मंदिरों का भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव जैन समाज के श्रावक-श्राविकाओं के लिए यादगार रहेगा. मुनिश्री रविपद्मसागरजी ने श्रद्धालु भक्तों को कहा कि चार्तुमास में आपने जो श्रवण किया उसको आचरण में उतारने का प्रयास करें. भगवान और धर्म को सदा अपने साथ रखेंगे तो कल्याण होगा. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में साधु-संतों द्वारा पद यात्रा (विहार) प्राचीन परंपरा है. लेकिन वर्तमान समय में पद यात्रा जैन समाज तक सीमित हो गयी है. उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य ने भी भारत में पद यात्रा की थी. प्राचीन समय में साधु-सन्यासी पद यात्रा करते थे. पद यात्रा-प्रवास में छोटे-छोटे गांव के लोगों को भी भगवान की वाणी श्रवण करने का लाभ मिलता है. प्रवचन श्रवण करने से लोगों के जीवन में परिवर्तन आता है. पद यात्रा स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत उपयोगी है. समाजसेवी विनीत रामपुरिया ने बताया कि आचार्यश्री विनयसागरजी विशाखापट्टनम में वोथरा परिवार के गृह मंदिर की प्रतिष्ठा करायेंगे. वहां से जगदलपुर होते हुए जबलपुर में जैन मंदिर की प्रतिष्ठा कराने के बाद नागपुर (महाराष्ट्र) चार्तुमास में प्रवेश करेंगे.

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