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यौनकर्मी चला रहीं अपना बैंक

कोलकाता: जिस राज्य में चिटफंड कंपनियों की धोखाधड़ी का शिकार होकर लाखों लोग अपना सब कुछ गंवा रहे हैं, वहीं एशिया के सबसे बड़े रेडलाइट एरिया की यौन कर्मी बेहद कामयाबी से अपना को-ऑपरेटिव बैंक चला रही हैं, जिसमें किसी घोटाले का कोई डर नहीं है. मकसद अपनी कमाई का सही प्रबंधन और बच्चों का […]

कोलकाता: जिस राज्य में चिटफंड कंपनियों की धोखाधड़ी का शिकार होकर लाखों लोग अपना सब कुछ गंवा रहे हैं, वहीं एशिया के सबसे बड़े रेडलाइट एरिया की यौन कर्मी बेहद कामयाबी से अपना को-ऑपरेटिव बैंक चला रही हैं, जिसमें किसी घोटाले का कोई डर नहीं है. मकसद अपनी कमाई का सही प्रबंधन और बच्चों का भविष्य बेहतर बनाना है.

सोनागाछी की यौन कर्मी न केवल अपना को-ऑपरेटिव बैंक चला रही हैं, बल्कि उन्होंने 2014 के लिए राज्य का सबसे अच्छा को-ऑपरेटिव बैंक का प्रतिष्ठित पुरस्कार भी जीता है. कम व्याज दर पर चलाये जा रहे इस उषा मल्टीपरपज को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड के 20 हजार सदस्य हैं और इसकी पूंजी 19 करोड़ रुपये हैं. यह एशिया में यौन कर्मियों के स्वामित्व व प्रबंधन वाला सबसे बड़ा आर्थिक संस्थान है. उषा को-ऑपरेटिव के साथ सक्रिय रूप से जुड़ी महुआ नामक एक यौनकर्मी ने बताया कि को-ऑपरेटिव बैंक शुरू करने से पहले हम लोग पूरी तरह साहूकारों और यहां व्यवसाय चलानेवाली मैडमों पर निर्भर थे. चूंकि यौन कर्मियों के पास कोई ठिकाना और पहचान का सबूत नहीं होता था, इसलिए बैंकों में उनके लिए अकाउंट खुलवाना असंभव था.

बैंक से ऋण लेकर खरीदी जमीन, बेटियों की शादी की
महुआ की तरह सीमा भी इस को-ऑपरेटिव की सदस्य हैं और उसने यहां से कई बार ऋण लिया है. सीमा ने बताया कि उषा को-ऑपरेटिव की सहायता से मुङो अपने पैसों का हिसाब-किताब रखने में काफी मदद मिल रही है और इसकी वजह से मैं जमीन का एक टुकड़ा खरीदने में भी कामयाब रही हूं. पहले हमारी कमाई का अधिकतर हिस्सा साहूकारों को भुगतान करने में चला जाता था. इस को-ऑपरेटिव बैंक ने इन यौन कर्मियों में सशक्तिकरण की एक भावना जगायी है. इसकी वजह से अब वह दलालों व मैडम के चंगुल से आजाद होने में भी सक्षम हो रही हैं. अपने इस बैंक की मदद से इन यौन कर्मियों ने अपने बच्चों को शिक्षित किया और अपनी बेटियों की शादी भी की है.
यहां तक कि वह अपनी संपत्ति तक खरीदने में सफल हो रही हैं. इस बैंक पर निर्भरता के कारण राज्य को हिला कर रख देने वाले चिट फंड घोटाले के प्रभाव से भी यौन कर्मियों को निकलने में मदद मिली है.
पर शुरुआत इतनी आसान नहीं थी. को-ऑपरेटिव के मुख्य सलाहकार डॉ समरजीत जाना आज भी उन पलों को याद कते हैं, जब इस बैंक को खोलने का निर्णय लिया गया था, तब उन्हें और यौनकर्मियों को भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था. डा. जाना ने बताया कि मुङो कई बार धमकी दी गयी थी, यहां तक कि मुझ पर बम भी फेंका गया था, पर मैं बच गया. लड़कियों पर सहकारी आंदोलन में शामिल नहीं होने का जबरदस्त दबाव था, पर आहिस्ता-आहिस्ता हम लोग महिलाओं को समझाने में सक्षम रहे और प्रत्येक वर्ष इसके सदस्यों की संख्या बढ़ने लगी.
आसान नहीं था बैंक शुरू करना : डॉ जाना
उषा को-ऑपरेटिव की शुरुआत 1995 में हुई थी. डॉ जाना ने बताया कि यौन कर्मियों द्वारा संचालित एक सोसाइटी का शुरू करना आसान काम नहीं था. इस मुद्दे पर पश्चिम बंगाल विधानसभा में बहस हुई थी और यौन कर्मियों को सहकारी बैंक शुरू करने में सक्षम बनाने के लिए सहकारी अधिनियम में संशोधन किया गया था. डा. जाना ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि 2015 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक संपूर्ण बैंक के रुप में काम करने के लिए हमारे इस को-ऑपरेटिव बैंक को लायसेंस प्रदान करेगा.
उषा को-ऑपरेटिव बैंक की सदस्यों का कहना है कि यहां अकाउंट खुलवाने के लिए हम किसी से पहचान पत्र नहीं मांगते हैं और हमारे यहां ब्याज की दर कई सरकारी बैंक की तुलना में भी कम है.

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