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सुंदरवन के बच्चों की चिकित्सा झोला छाप डॉक्टरों के भरोसे: डॉ. गुप्ता

कोलकाता. यूनेस्को ने सुंदरवन को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित कर रखा है. यूनेस्को, केंद्र व राज्य सरकार की ओर से सुंदरवन एवं वहां रहनेवाले लोगों के विकास के लिए प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं, पर हकीकत तो यह है कि सुंदरवन में रहने वालों का जीवन स्तर अभी भी काफी पिछड़ा हुआ […]

कोलकाता. यूनेस्को ने सुंदरवन को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित कर रखा है. यूनेस्को, केंद्र व राज्य सरकार की ओर से सुंदरवन एवं वहां रहनेवाले लोगों के विकास के लिए प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं, पर हकीकत तो यह है कि सुंदरवन में रहने वालों का जीवन स्तर अभी भी काफी पिछड़ा हुआ है. एक शोध के अनुसार यहां के बच्चों की हालत तो सबसे खराब है. स्वास्थ्य सेवा, प्रबंधन शोध एवं प्रशिक्षण के क्षेत्र में देश के अग्रणी शिक्षण संस्थानों में से एक आइआइएचएमआर यूनिवर्सिटी ( इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च ) द्वारा सुंदरवन में कराये गये एक शोध के अनुसार, आज भी यहां के 85 प्रतिशत बच्चे चिकित्सा के लिए झोला छाप डॉक्टरों पर निर्भर रहते हैं. आइआइएचएमआर यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष डॉ. एसडी गुप्ता ने बताया कि सुंदरवन में प्रत्येक तीन में से एक बच्चा कुपोषण का शिकार है. इनमें से 60 प्रतिशत एक से तीन वर्ष की उम्र की लड़कियां हैं. उन्होंने बताया कि आज की तारीख में बंगाल में 72-80 प्रतिशत बच्चों का जन्म अस्पतालों में होता है, पर वहीं सुंदरवन में आज भी 65 प्रतिशत बच्चे घर में जन्म लेते हैं. इलाके में अस्पताल एवं डॉक्टरों की भारी कमी का असर सुंदरवन में रहने वालों के जीवन स्तर को प्रभावित कर रहा है. बच्चों में कुपोषण का सबसे बड़ा कारण कम उम्र में शादी एवं जागरूकता की भारी कमी है. उन्होंने कहा कि सुंदरवन में बहुत सारी स्वयंसेवी संस्थाएं काम कर रही हैं, पर उनमें और सरकारी संस्थाओं के बीच समन्वय की भारी कमी के कारण इसका लाभ जरूरतमंद लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है. डॉ. गुप्ता ने बताया कि इस स्थिति से निबटने के लिए ग्रामीण अस्पतालों का विकास एवं डॉक्टरों की संख्या में वृद्धि आवश्यक है.

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