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मार्क्सवादी हूं : दलाई लामा
कोलकाता: धर्मगुरु दलाई लामा का कहना है कि वह मार्क्सवादी हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि कई मार्क्सवादी नेता अब अपने सोच में पूंजीवादी बन गये हैं. जहां तक सामाजिक-आर्थिक थ्योरी की बात है, वह खुद को मार्क्सवादी मानते हैं. प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में विश्वशांति के विषय पर आयोजित लेक्चर में उन्होंने कहा कि यह सबकुछ प्रेरणा, […]
कोलकाता: धर्मगुरु दलाई लामा का कहना है कि वह मार्क्सवादी हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि कई मार्क्सवादी नेता अब अपने सोच में पूंजीवादी बन गये हैं. जहां तक सामाजिक-आर्थिक थ्योरी की बात है, वह खुद को मार्क्सवादी मानते हैं. प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में विश्वशांति के विषय पर आयोजित लेक्चर में उन्होंने कहा कि यह सबकुछ प्रेरणा, सोच पर निर्भर करता है.
उन्होंने कहा कि पूंजीवादी देश में अमीर और गरीब में खाई बढ़ गयी है. मार्क्सवाद में समान वितरण पर जोर है. यह उनके लिए महत्वपूर्ण है. इस मौके पर उन्होंने कहा कि भारत के मुसलिम पाकिस्तान के शियाओं से अधिक सुरक्षित रूप में रहते हैं. 21वीं शताब्दी को उन्होंने शांति की सदी के तौर पर बनाने का आह्वान युवाओं से किया. उनका कहना था कि पिछली सदी हिंसा की सदी थी. यदि इस सदी को बातचीत की सदी बना दिया जाये, तो यह शताब्दी शांति की हो जायेगी. यह वह अपने जीवनकाल में नहीं देखेंगे, लेकिन इस दिशा में कार्य करना जरूरी है. 30 वर्ष से कम उम्र के लोगों की पीढ़ी है यह शताब्दी. इच्छाशक्ति, दृष्टि और विवेक से हिंसा छोड़नी होगी. उन्होंने परमाणु हथियारों पर पूर्ण पाबंदी लगाने की मांग की. खुद को प्राचीन भारतीय दर्शन का संदेशवाहक करार देते हुए दलाई लामा ने कहा कि भारत गुरु है और लोग चेला हैं. हम चेले काफी भरोसेमंद हैं. गुरु के ज्ञान को हमने हजारों वर्ष से कायम रखा है. अब चेला का ज्ञान गुरु के ज्ञान से बेहतर है.
इधर, एमसीसी चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की ओर से आयोजित शिक्षा का मूल अर्थ व उसका उद्देश्य, विषयक परिचर्चा में दलाई लामा ने कहा कि केवल किताबी ज्ञान से मुख्य ज्ञान नहीं मिलता. जरूरत विषय को खुद परखने की है. तभी असली शिक्षा मिल सकेगी. जहां तक भक्ति की बात है, वह भी विज्ञान आधारित होना चाहिए.
भौतिक मूल्यों पर आधारित है वर्तमान शिक्षा
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के संबंध में उनका कहना था कि इसका लक्ष्य भौतिक मूल्यों की ओर रहता है. भौतिकता आधारित शिक्षा से ईष्र्या और अविश्वास आता है. ऐसी शिक्षा स्वस्थ और शांतिपूर्ण दिमाग प्रदान नहीं करती. आंतरिक मूल्यों का अभाव दिख रहा है, लेकिन इसके लिए किसी व्यक्ति विशेष को जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता. समूचा समाज ही इससे बाधित है. खुद को शिक्षित करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. भारतीय शिक्षा से धर्मनिरपेक्षता का संदेश पूरे विश्व को दिया जा सकता है. धर्म के नाम पर बांटना बहुत दुखद है. किसी एक व्यक्ति पर भरोसा न करके ज्ञान पर विश्वास करना चाहिए. दलाई लामा का कहना था कि सभी धर्म प्रेम व सहिष्णुता का ही संदेश देते हैं.
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