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जो अपनी ओर देखे वह साधक : गिरीशानंद (फाइल फोटो)

कोलकाता. ईश्वर की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सदगुरु की प्राप्ति होती है. सदगुरु के बताये रास्ते पर चल कर ईश्वर तक पहुंच सकता है. मां सुनिती के कहने पर पांच वर्षीय बालक ध्रुव जी ईश्वर को पाने के लिए महल से निकल पड़ते हैं. ध्रुव जी का सौभाग्य देखिए कि नारद जी रूप […]

कोलकाता. ईश्वर की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सदगुरु की प्राप्ति होती है. सदगुरु के बताये रास्ते पर चल कर ईश्वर तक पहुंच सकता है. मां सुनिती के कहने पर पांच वर्षीय बालक ध्रुव जी ईश्वर को पाने के लिए महल से निकल पड़ते हैं. ध्रुव जी का सौभाग्य देखिए कि नारद जी रूप में उन्हें गुरु सहज रूप में मिल गये. इसका संकेत यही है कि यदि सचमुच हमारे अंदर ईश्वर को पाने की व्याकुलता हो तो कोई न कोई सहयोग के लिए आ जाता है. यदि गुरु के रूप में नारद जैसे ऋषि मिल जायें तो भगवान का मिलना तय है. ध्रुव जी नारद जी द्वारा बतायी गयी विधियों को अपना कर ईश्वर का दर्शन करने में सफल हो जाते हैं. नारायण ध्रुव जी को अपना दर्शन ही नहीं देते अपितु अपनी भक्ति भी देते हैं. अगर कोई सच्चा भक्त है तो वह ईश्वर के अलावा किसी को नहीं चाहता. अगर एक बार ईश्वर मिल गये तो भक्त की चाहत हमेशा के लिए मिट जाती है. भक्ति की महिमा यही है कि भगवान भक्त के वश में हो जाते हैं. अष्टांग योग के माध्यम से ईश्वर की कृपा प्राप्त की जा सकती है. यम, नियम, अहिंसा, आस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, शौच आदि के माध्यम से हम भगवान को प्राप्त कर सकते हैं. संसारी हमेशा दूसरे की ओर देखता जबकि साधक अपनी ओर देखता है. अपनी ओर देखना मतलब अपने स्वरूप को देखना है. जिसनें अपने स्वरूप को जान लिया वह अपने भीतर विराजमान ईश्वर का सहज दर्शन करने लगता है. ये बातें संगीत कला मंदिर ट्र्स्ट के तत्वावधान में ध्रुव चरित्र पर प्रवचन करते हुए स्वामी गिरीशानंद सरस्वती महाराज ने कला मंदिर सभागार में कहीं.

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